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3.9.10

भड़ास फॉर मीडिया पैर प्रकाशित सूचना के आधार पर उत्तराखंडी दिल्ली पहुंचे

गिरीश तिवारी गिर्दा का हमसे बिछड़ कर चले जाना जब तबियत ख़राब थी तो यशवंत भाई को बताया कि कुछ अच्छा नहीं लग रहा अगले ही दिन निधन का समाचार पता चला. एक जन कवी जिसने उत्तराखंड के लिए ही नहीं जनमानस के लिए बहुत कुछ लिखा साहस से कहा भी गया भी और गुनगुनाया भी. रामनगर गणेश रावत को फ़ोन किया उसके बाद जन कवी बल्ली सिंह चीमा को फ़ोन किया. विश्वास हो गया कि गिर्दा हमारे बीच नहीं रहे. अभी चंद रोज़ पहले देहरादून में राजपुर रोड पर होटल अजंता में बैठे थे. राजेन तोद्रिया, नरेंदर नेगी (नरु दा) बचरी राम कोंसवाल, लीलाधर जगूड़ी, और में एक कमरे में बैठ कर बतिया रहे थे. तोद्रिया जी ने नरु दा से कहा कि गिर्दा को हिमालय फिल्म से तर्रुनाम में ले आओ. मेरे को कुछ आर्डर किया. प्रेम तू जा और डिनर की तियारी देख कर आ. चलते चलते कुछ हो जाये. दुसरे होटल में डिनर था. लेकिन १ घंटे तक हुई गुफ्तगू के बीच कुछ बातें जरुर खुल रहीं थी. पदम् श्री को को लेकर काफी देर तक बहस चलती रही. नरेन्द्र नेगी को नहीं मिला. हम कौन हैं भाई. फिर भी मूड खुश मिजाज़ हो गया था. थोडा फ्रेश होना है यार. कोंसवाल जी ने कहा लगता दा का अब थोडा फ्रेश महसूस कर रहे हैं. बाथरूम से आने के बाद फिर एक बार बात चीत का सिलसिला शुरू हुआ. थोड़ी ही देर बाद शेखर पाठक जी का फ़ोन आ गया था कि डिनर के लिए आ जाएँ. डिनर के दौरान भी जन कवी गिर्दा की डिमांड बनी रही. हम एक ही टेबल पर बैठे थे. लेकिन बैटन ही बैटन में अहसास करवा दिया कि जिन्दगी जितने दिन की भी हो ख़ुशी से ही रहेंगे.
अक्टूबर में गिर्दा के लोक गीतों और एक कहानी के शूटिंग की बात नरु दा ने कही तो आखिर गिर्दा ने हाँ करी और अक्टूबर में शूटिंग तै हुई. ई टी वी से गोविन्द कपतियाल जी ने स्टूडियो आने का न्योता दिया. और फिर हम सब अपने अपने विश्राम की और चल दिए.
लेकिन किसी को भी एहसास नहीं हुआ कि आखिर गिर्दा क्यों मन कर रहे हैं. शायद उन्हें आभास था कि वोह जीते जी खुछ ही रहेंगे और खुछ ही रखेंगे.
लेकिन जब गिर्दा पञ्च तत्व में विलीन हो रहे थो तो सभी की ऑंखें नम थी रामनगर से गनेह्स रावत, प्रभात ध्यानी, हरी मोहन, मुनीश भाई, सलीम मालिक, काशीपुर से में और बाजपुर से बल्ली सिंह चीमा धूम कोट से मनीष सुन्द्रियाल हम सब भी पूरे रास्ते गिर्दा की बातें और कविताओं पर ही बातें करते रहे. कभी कभी बल्ली भाई कोई नज़म छेड़ देते. यह शायद कई लोगों को अटपटा लग रहा था कि राम नाम सत की जगह गिर्दा के जनगीतों की गूँज चरों और थी. राजीव लोचा दा, नवीन जोशी, पी सी तिवारी. शेखर पाठक सभी की ऑंखें नाम थी लेकिन सबने शब्प्थ भी ली कि गिर्दा तुम हमेशा अमर रहोगे. और हम तुम्हे हमेशा जीवित रखेंगे.
इश्वर हम सबको गिरीश तिवारी गिर्दा को अमर करने की शक्ति प्रदान करे
प्रेम अरोड़ा
काशीपुर
9012043100

अगर दो चार सम्पर्क नंबर भी प्रकाशित हो जाएँ में आना चाहता हूँ और इसका नजदीकी मेट्रो स्टेशन भी बताएं
प्रेम अरोड़ा
काशीपुर
9012043100
गिरीश तिवारी गिर्दा की याद में सेमीनार हॉल, दूसरा तल, राजेंद्र भवन, दीनदयाल उपाध्‍याय मार्ग, दिल्‍ली और दिन व समय है, 4 सितंबर, शनिवार शाम 5 बजे। कुछ महत्‍वपूर्ण वक्‍ताओं में गिर्दा के पुराने साथी प्रो. शेखर पाठक, राजीव लोचन शाह, मंगलेश डबराल, पंकज बिष्‍ट आदि होंगे। इसके अलावा उनकी कुछ कविताएं हम पढ़ेंगे और उन पर एक फिल्‍म का भी प्रदर्शन किया जाएगा। भड़ास फॉर मीडिया पैर प्रकाशित सूचना के आधार पर उत्तराखंडी दिल्ली पहुंचे

1 comment:

rakesh saxena said...

लेखन ही किसी के आतंरिक व्यक्तित्व के विचारों को उजागर करता है इसके लिए भड़ास जैसा ब्लॉग सबसे बड़ा माध्यम है जो अछे श्रेय का सदैव भागी रहेगा|