उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा से निपटने के लिए डॉ.निशंक ने किए रात-दिन एक
खुद ले रहे है आपदा ग्रस्त क्षेत्रों को पहुंचायी जाने वाली मदद का जायज़ा
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आज पूरी दुनिया देख रही हैं कि उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा से हंसते-खेलते पहाड़ो का क्या मंजर है। यहां जीवन अपने उस पड़ाव पर पहुंच गया है। जहां से उसे फिर से शुरूआत करने के लिए एक लंबा सफर तय करना होगा। ऐसे समय में पहाड़ के जनमानस को कुछ ऐसे हाथों की आवश्यकता हैं,जो उसे सहारा दे सकें और दो कदम अपने साथ लेकर चल सके। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' इन दिनों रात-दिन इसी कार्य में लगे है। ताकि दो कदम अपने प्रदेश को वह इस आपदा की घड़ी में ले जा सके। वह खुद ही नहीं बल्कि अपने पूरे प्रशासनिक अमले से भी निवेदन कर रहे है कि इस समय,राजनिति नहीं,बल्कि आपदा ग्रस्त लोगों के सहयोग के लिए सब लोग आगे आएं। उनके उस जीवन को संवारे जो कल तक पहाड़ो में हस-खेल रहा था। उन्हें उन खंडहरों से बहार निकालें,जिनमें इस दैवीय आपदा ने उन्हें धकेल दिया है। डॉ.निशंक घर-घर,गांव-गांव जाकर इस आपदा के शिकार हुए लोगों से खुद मिल रहे है। उन्हें तत्काल राहत पहुंचाने के साथ-साथ भविष्य में जल्द से जल्द और अधिक सहयोग करने के लिए आश्वासन भी दे रहे है।
दूसरी तरफ कांग्रेस जिस तरह से इस आपदा के समय में भी खुद के लिए राजनितिक रोटियां सेकने में लगी है। इससे साफ जाहिर हो जाता हैं कि कांग्रेस किस कदर निशंक की छवि और निशंक के कार्य करने की शैली से घबरा गयी है। उत्तराखंड कांग्रेस जिस तरह की बायनाबाजी इस आपदा के समय में कर रही है,वह भी तब जब उसे केंद्र से आलाकमान ने भी उत्तराखंड कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को चेतावनी दी थी। लेकिन जब मुख्यमंत्री निशंक इस आपदा के समय में प्रदेश की जनता के साथ खड़े हो और उन्हें एक नयी विकास यात्रा से जोड़ने का प्रयास कर रहे है। ऐसे में कांग्रेस के माध्यम से उन पर किचड़ उछालना और राज्य सरकार के कामों में बधा पहुंचाने से प्रदेश की जनता ही नहीं,बल्कि खुद मुख्यमंत्री भी नाराज है। मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों विपक्ष और तमाम दूसरी पार्टीयों से अपील की थी 'विपदा की इस घड़ी में किसी को भी राजनीति नहीं करनी चाहिए। साथ ही कांग्रेस के नेताओं को अनाप-शनाप बयानबाजी से बचने की कोशिश करनी चाहिए,डॉ.निशंक लगातार कहते आ रहे है कि संकट के इस दौर में पीड़ितों को मदद की जरूरत है। इसके लिए हमने केंद्र को भी प्रस्ताव भेजा है। अब केंद्र को ईमानदारी के साथ आपदा राहत के तहत तत्काल धन भेजना चाहिए ताकि ठप पड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाई जा सके। यह तो सभी जानते है कि अभी तक राज्य सरकार अपने बूते पर प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य कर रही है लेकिन संसाधन सीमित होने की वजह से कई तरह की परेशानी भी हो रही है।
मुख्यमंत्री से जब हमने उत्तराखंड आयी इस दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों मिल रही सहायता के बारे पुछा तो,उन्होंने बताया कि, आपदा प्रभावित गांवों की हालत ठीक नहीं है। पहले से ही भूस्खलन से प्रभावित 100 से ज्यादा गांवों की शिफ्टिंग का काम अब तक नहीं हो पाया है। इन गांवों की शिफ्टिंग के लिए प्रचुर मात्रा में धन की आवश्यकता है जो बिना केंद्र के सहयोग से संभव ही नहीं है। इस बीच प्रदेश में नई विपदा आ गई है।निश्चित तौर से इस आपदा से उबरने के लिए प्रदेश को कई साल लग जाएंगे। हमने अपने स्तर पर पार्टी की ओर से प्रभावित क्षेत्रों की जिम्मेदारी विधायकों एवं दायित्वधारियों को सौपीं है। जो अपने-अपने स्तर पर प्रभावितों के लिए काम करे रहे। डॉ.निशंक ने बताया की इस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार है, और केंद्र के पास मदद के लिए ’केंद्रीय राहत निधि‘ ,’राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष‘ जैसे कई महत्वपूर्ण फंड है जिसके तहत केंद्र राज्य की मदद कर सकता है। जिसका हमें और प्रदेश की जनता को इंतजार है कि वह कितनी राशि राज्य को देता है।
प्रदेश में आयी इस दैविया आपदा को लेकर,निशंक सरकार ने शनिवार को योजना आयोग व वित्त मंत्रालय की केंद्रीय टीम को आपदा राहत के तहत 21,200.79 हजार करोड़ का प्रस्ताव दिया है। सरकार ने तत्काल सात हजार करोड़ रुपये की भी मांग की है। इधर केंद्रीय टीम राज्य सरकार के प्रस्ताव को लेकर नई दिल्ली रवाना हो गई है। टीम की अगुआई कर रहे गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव जीबी शर्मा ने कहा कि अब केंद्र अध्ययन के बाद ही यह तय करेगा कि कितनी राशि उत्तराखंड को देनी है। इस बारे मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ’निशंक‘ का कहना हैं कि पर्वतीय क्षेत्र की विषम परिस्थितियों को देखते हुए केंद्रीय राहत निधि (सीआरएफ) के मानक बदलने की दरकार है। सचिवालय में दैवीय आपदा का आकलन करने आई केंद्रीय टीम के सदस्यों के साथ मैने और विभागीय अधिकारियों ने मंत्रणा की। हमने टीम को बताया कि आपदा से पर्वतीय क्षेत्रों में भारी नुकसान हुआ है। हमने इस टीम को बता दिया हैं कि राज्य सरकार को 200 गांवों में हुई क्षति एवं उनके पुनर्वास के लिए लगभग 21,200.79 करोड़ की जरूरत है। साथ ही हमने कहा कि सीआरएफ का वर्तमान मानक बहुत कम है, जिसमें वृद्धि की जाए। हमने केंद्रीय टीम को यह भी बताया हैं कि 233 गांवों को दूसरी जगह शिफ्ट करना बेहद जरूरी है, जिसके लिए केंद्रीय सहयोग आवश्यक है। डॉ.निशंक ने बताया कि केंद्र द्वारा नदियों से चुगान करने पर रोक लगाई गई है, जिसके कारण नदियों में अधिक पानी आ गया और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।
केंद्रीय दल द्वारा दैवीय आपदा से राज्य को हुए नुकसान का प्रारंभिक आकलन करने के बाद अब खुद मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी वास्तविक बर्बादी की टोह लेने में जुट गए है। इसके तहत उन्होंने अवकाश होने के बावजूद रविवार को आपदा से प्रभावित देहरादून, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, हरिद्वार, उत्तरकाशी और टिहरी समेत सभी जिलाधिकारियों से नुकसान व राहत कार्यो की स्थिति की जानकारी मांगी। मुख्यमंत्री ने जनपदीय स्थिति के अनुसार ठोस कार्य योजना तैयार कर प्राथमिकताएं तय करते हुए कार्य करने के निर्देश भी दिए है। विशेषकर राज्य सरकार द्वारा बढ़ाई गई मुआवजा राशि के वितरण में पारदर्शिता बरतने का सख्त निर्देश दिए है। डॉ.निशंक ने राहत कार्य में किसी भी स्तर पर हीलाहवाली न बरतने की हिदायत देते हुए मातहतों से कहा है कि राहत कार्य के साथ-साथ लापरवाह अधिकारियों को भी दंडित किया जाए। हर पीड़ित तक राहत पहुंचे इसके लिए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस काम के लिए दिए जा रहे धन का सदुपयोग होना चाहिए। इस सामूहिक निर्देश के बाद मुख्यमंत्री ने हर जिलों के डीएम से अलग- अलग बात कर स्थिति की जानकारी ली और लगातार वह हर जिले के अधिकारियों से संम्पर्क में बने है।
उत्तराखंड में पिछले दिनों आयी विपदा से यहां के 40 से अधिक पुल क्षतिग्रस्त हुए है और 150 से अधिक सड़कें टूटी हैं। जिसका जायजा डॉ.निशंक खुद ले रहे है। साथ ही उनके आदेश से शासन द्वारा बढ़ाई गई मुआवजा राशि के मुताबिक वितरण भी शुरू कर दिया गया है। जिसके सही वितरण व लेखपालों पर नजर रखने के लिए उच्चाधिकारियों को प्रभारी बनाया गया है। फसलों को हुए नुकसान का सर्वे भी मुख्यमंत्री के माध्यम से कराया जा रहा है। इसी के साथ मुख्यमंत्री खुद हर प्रभावति क्षेत्रों में रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल और खाद्यान्न की आपूर्ति की व्यवस्था को लगातार देख रहे है। इस आपदा से क्षतिग्रस्त हुए जिन गांव का विस्थापन किया जाना जरूरी है,उन गांवों की रिपोर्ट जल्द से जल्द तैयार करने के भी मुख्यमंत्री ने निर्देश जारी किए है। प्रदेश की सभी प्रमुख सड़कों पर आवागमन शुरू कर दिया गया है। जो सड़के अभी भी टूटी हुई हैं,उन पर दिन-रात काम चल रहा हैं और मुख्यमंत्री खुद पल-पल की जानकारी इन सड़कों के बारे में ले रहे है। इसी का परिणाम हैं कि अपादा से प्रभावित प्रदेश की लगभग 70 फीसद सड़कों पर यातायात बहाल करने का काम चल रहा है। खाद्यान्न का कोई संकट नहीं है। आराकोट-मोरी क्षेत्र में गैस की कमी है, जिसे ठीक कर लिया जाएगा। वरुणावत का ट्रीटमेंट कर दिया गया है। इसी के साथ मुख्यमंत्री के माध्यम से प्रदेश में इस आपदा के बाद जिन-जिन जनपदों में बिजली-पानी की आपूर्ति ठ हो गयी थी। उनमें जल्द से जल्द इसे बहाल करने का कार्य तेजी से किया जा रहा है। इसी के साथ जिन जनपदों में आने-जाने का रास्ता या संड़के अभी भी बाधित हैं वहां खाद्यान्न आपूर्ति के लिए खच्चरों की मदद भी ली जा रही है।
उत्तराखंड के युवा और कर्मठ मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक' जिस तरह से अपने पूरे प्रशासनिक अमले के साथ रात-दिन उत्तराखंड को इस दैवीय आपदा के भंयकर प्रकोप से बहार निकालने में जुटे है। उससे राज्य का प्रशासनिक अलमा भी पूरे जोश में दिख रहा है। और खुद को पूर्ण रूप से इस आपदा में फंसे और परेशान लोगों के लिए समर्पित कर रात-दिन मुख्यमंत्री के साथ लगे है। ताकि जल्द से जल्द प्रदेश का इस दैवीय आपदा से जाल से बाहर निकाल जा सके और पहाड़ एक बार फिर से पहाड़ों में चहलकदमी कर सके।
- जगमोहन 'आज़ाद'
आज पूरी दुनिया देख रही हैं कि उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा से हंसते-खेलते पहाड़ो का क्या मंजर है। यहां जीवन अपने उस पड़ाव पर पहुंच गया है। जहां से उसे फिर से शुरूआत करने के लिए एक लंबा सफर तय करना होगा। ऐसे समय में पहाड़ के जनमानस को कुछ ऐसे हाथों की आवश्यकता हैं,जो उसे सहारा दे सकें और दो कदम अपने साथ लेकर चल सके। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' इन दिनों रात-दिन इसी कार्य में लगे है। ताकि दो कदम अपने प्रदेश को वह इस आपदा की घड़ी में ले जा सके। वह खुद ही नहीं बल्कि अपने पूरे प्रशासनिक अमले से भी निवेदन कर रहे है कि इस समय,राजनिति नहीं,बल्कि आपदा ग्रस्त लोगों के सहयोग के लिए सब लोग आगे आएं। उनके उस जीवन को संवारे जो कल तक पहाड़ो में हस-खेल रहा था। उन्हें उन खंडहरों से बहार निकालें,जिनमें इस दैवीय आपदा ने उन्हें धकेल दिया है। डॉ.निशंक घर-घर,गांव-गांव जाकर इस आपदा के शिकार हुए लोगों से खुद मिल रहे है। उन्हें तत्काल राहत पहुंचाने के साथ-साथ भविष्य में जल्द से जल्द और अधिक सहयोग करने के लिए आश्वासन भी दे रहे है।
दूसरी तरफ कांग्रेस जिस तरह से इस आपदा के समय में भी खुद के लिए राजनितिक रोटियां सेकने में लगी है। इससे साफ जाहिर हो जाता हैं कि कांग्रेस किस कदर निशंक की छवि और निशंक के कार्य करने की शैली से घबरा गयी है। उत्तराखंड कांग्रेस जिस तरह की बायनाबाजी इस आपदा के समय में कर रही है,वह भी तब जब उसे केंद्र से आलाकमान ने भी उत्तराखंड कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को चेतावनी दी थी। लेकिन जब मुख्यमंत्री निशंक इस आपदा के समय में प्रदेश की जनता के साथ खड़े हो और उन्हें एक नयी विकास यात्रा से जोड़ने का प्रयास कर रहे है। ऐसे में कांग्रेस के माध्यम से उन पर किचड़ उछालना और राज्य सरकार के कामों में बधा पहुंचाने से प्रदेश की जनता ही नहीं,बल्कि खुद मुख्यमंत्री भी नाराज है। मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों विपक्ष और तमाम दूसरी पार्टीयों से अपील की थी 'विपदा की इस घड़ी में किसी को भी राजनीति नहीं करनी चाहिए। साथ ही कांग्रेस के नेताओं को अनाप-शनाप बयानबाजी से बचने की कोशिश करनी चाहिए,डॉ.निशंक लगातार कहते आ रहे है कि संकट के इस दौर में पीड़ितों को मदद की जरूरत है। इसके लिए हमने केंद्र को भी प्रस्ताव भेजा है। अब केंद्र को ईमानदारी के साथ आपदा राहत के तहत तत्काल धन भेजना चाहिए ताकि ठप पड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाई जा सके। यह तो सभी जानते है कि अभी तक राज्य सरकार अपने बूते पर प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य कर रही है लेकिन संसाधन सीमित होने की वजह से कई तरह की परेशानी भी हो रही है।
मुख्यमंत्री से जब हमने उत्तराखंड आयी इस दैवीय आपदा से प्रभावित लोगों मिल रही सहायता के बारे पुछा तो,उन्होंने बताया कि, आपदा प्रभावित गांवों की हालत ठीक नहीं है। पहले से ही भूस्खलन से प्रभावित 100 से ज्यादा गांवों की शिफ्टिंग का काम अब तक नहीं हो पाया है। इन गांवों की शिफ्टिंग के लिए प्रचुर मात्रा में धन की आवश्यकता है जो बिना केंद्र के सहयोग से संभव ही नहीं है। इस बीच प्रदेश में नई विपदा आ गई है।निश्चित तौर से इस आपदा से उबरने के लिए प्रदेश को कई साल लग जाएंगे। हमने अपने स्तर पर पार्टी की ओर से प्रभावित क्षेत्रों की जिम्मेदारी विधायकों एवं दायित्वधारियों को सौपीं है। जो अपने-अपने स्तर पर प्रभावितों के लिए काम करे रहे। डॉ.निशंक ने बताया की इस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार है, और केंद्र के पास मदद के लिए ’केंद्रीय राहत निधि‘ ,’राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष‘ जैसे कई महत्वपूर्ण फंड है जिसके तहत केंद्र राज्य की मदद कर सकता है। जिसका हमें और प्रदेश की जनता को इंतजार है कि वह कितनी राशि राज्य को देता है।
प्रदेश में आयी इस दैविया आपदा को लेकर,निशंक सरकार ने शनिवार को योजना आयोग व वित्त मंत्रालय की केंद्रीय टीम को आपदा राहत के तहत 21,200.79 हजार करोड़ का प्रस्ताव दिया है। सरकार ने तत्काल सात हजार करोड़ रुपये की भी मांग की है। इधर केंद्रीय टीम राज्य सरकार के प्रस्ताव को लेकर नई दिल्ली रवाना हो गई है। टीम की अगुआई कर रहे गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव जीबी शर्मा ने कहा कि अब केंद्र अध्ययन के बाद ही यह तय करेगा कि कितनी राशि उत्तराखंड को देनी है। इस बारे मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ’निशंक‘ का कहना हैं कि पर्वतीय क्षेत्र की विषम परिस्थितियों को देखते हुए केंद्रीय राहत निधि (सीआरएफ) के मानक बदलने की दरकार है। सचिवालय में दैवीय आपदा का आकलन करने आई केंद्रीय टीम के सदस्यों के साथ मैने और विभागीय अधिकारियों ने मंत्रणा की। हमने टीम को बताया कि आपदा से पर्वतीय क्षेत्रों में भारी नुकसान हुआ है। हमने इस टीम को बता दिया हैं कि राज्य सरकार को 200 गांवों में हुई क्षति एवं उनके पुनर्वास के लिए लगभग 21,200.79 करोड़ की जरूरत है। साथ ही हमने कहा कि सीआरएफ का वर्तमान मानक बहुत कम है, जिसमें वृद्धि की जाए। हमने केंद्रीय टीम को यह भी बताया हैं कि 233 गांवों को दूसरी जगह शिफ्ट करना बेहद जरूरी है, जिसके लिए केंद्रीय सहयोग आवश्यक है। डॉ.निशंक ने बताया कि केंद्र द्वारा नदियों से चुगान करने पर रोक लगाई गई है, जिसके कारण नदियों में अधिक पानी आ गया और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।
केंद्रीय दल द्वारा दैवीय आपदा से राज्य को हुए नुकसान का प्रारंभिक आकलन करने के बाद अब खुद मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी वास्तविक बर्बादी की टोह लेने में जुट गए है। इसके तहत उन्होंने अवकाश होने के बावजूद रविवार को आपदा से प्रभावित देहरादून, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, हरिद्वार, उत्तरकाशी और टिहरी समेत सभी जिलाधिकारियों से नुकसान व राहत कार्यो की स्थिति की जानकारी मांगी। मुख्यमंत्री ने जनपदीय स्थिति के अनुसार ठोस कार्य योजना तैयार कर प्राथमिकताएं तय करते हुए कार्य करने के निर्देश भी दिए है। विशेषकर राज्य सरकार द्वारा बढ़ाई गई मुआवजा राशि के वितरण में पारदर्शिता बरतने का सख्त निर्देश दिए है। डॉ.निशंक ने राहत कार्य में किसी भी स्तर पर हीलाहवाली न बरतने की हिदायत देते हुए मातहतों से कहा है कि राहत कार्य के साथ-साथ लापरवाह अधिकारियों को भी दंडित किया जाए। हर पीड़ित तक राहत पहुंचे इसके लिए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस काम के लिए दिए जा रहे धन का सदुपयोग होना चाहिए। इस सामूहिक निर्देश के बाद मुख्यमंत्री ने हर जिलों के डीएम से अलग- अलग बात कर स्थिति की जानकारी ली और लगातार वह हर जिले के अधिकारियों से संम्पर्क में बने है।
उत्तराखंड में पिछले दिनों आयी विपदा से यहां के 40 से अधिक पुल क्षतिग्रस्त हुए है और 150 से अधिक सड़कें टूटी हैं। जिसका जायजा डॉ.निशंक खुद ले रहे है। साथ ही उनके आदेश से शासन द्वारा बढ़ाई गई मुआवजा राशि के मुताबिक वितरण भी शुरू कर दिया गया है। जिसके सही वितरण व लेखपालों पर नजर रखने के लिए उच्चाधिकारियों को प्रभारी बनाया गया है। फसलों को हुए नुकसान का सर्वे भी मुख्यमंत्री के माध्यम से कराया जा रहा है। इसी के साथ मुख्यमंत्री खुद हर प्रभावति क्षेत्रों में रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल और खाद्यान्न की आपूर्ति की व्यवस्था को लगातार देख रहे है। इस आपदा से क्षतिग्रस्त हुए जिन गांव का विस्थापन किया जाना जरूरी है,उन गांवों की रिपोर्ट जल्द से जल्द तैयार करने के भी मुख्यमंत्री ने निर्देश जारी किए है। प्रदेश की सभी प्रमुख सड़कों पर आवागमन शुरू कर दिया गया है। जो सड़के अभी भी टूटी हुई हैं,उन पर दिन-रात काम चल रहा हैं और मुख्यमंत्री खुद पल-पल की जानकारी इन सड़कों के बारे में ले रहे है। इसी का परिणाम हैं कि अपादा से प्रभावित प्रदेश की लगभग 70 फीसद सड़कों पर यातायात बहाल करने का काम चल रहा है। खाद्यान्न का कोई संकट नहीं है। आराकोट-मोरी क्षेत्र में गैस की कमी है, जिसे ठीक कर लिया जाएगा। वरुणावत का ट्रीटमेंट कर दिया गया है। इसी के साथ मुख्यमंत्री के माध्यम से प्रदेश में इस आपदा के बाद जिन-जिन जनपदों में बिजली-पानी की आपूर्ति ठ हो गयी थी। उनमें जल्द से जल्द इसे बहाल करने का कार्य तेजी से किया जा रहा है। इसी के साथ जिन जनपदों में आने-जाने का रास्ता या संड़के अभी भी बाधित हैं वहां खाद्यान्न आपूर्ति के लिए खच्चरों की मदद भी ली जा रही है।
उत्तराखंड के युवा और कर्मठ मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक' जिस तरह से अपने पूरे प्रशासनिक अमले के साथ रात-दिन उत्तराखंड को इस दैवीय आपदा के भंयकर प्रकोप से बहार निकालने में जुटे है। उससे राज्य का प्रशासनिक अलमा भी पूरे जोश में दिख रहा है। और खुद को पूर्ण रूप से इस आपदा में फंसे और परेशान लोगों के लिए समर्पित कर रात-दिन मुख्यमंत्री के साथ लगे है। ताकि जल्द से जल्द प्रदेश का इस दैवीय आपदा से जाल से बाहर निकाल जा सके और पहाड़ एक बार फिर से पहाड़ों में चहलकदमी कर सके।
- जगमोहन 'आज़ाद'
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