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25.10.10

नवदुर्गा का पांचवा स्वरूप है स्कंदमाता अर्थात अलसी

नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है। स्कंद माता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है। अलसी एक औषधि से जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है। इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है।
स्कंदमाता अर्थात् अलसी के संबंध में शास्त्रों में कहा गया है-
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
अर्थात् वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीडि़त व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए।
नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार
नवरात्रि में माँ दुर्गा के औषधि रूपों का पूजन करें
माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं। माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बैठाकर संसार के प्रत्येक दुख से दूर करके सुखी रखती है।
जानिए नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने भक्तों को कैसे सुख पहुँचाते हैं। सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा। भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि रूप दे रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है। ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ हैं।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमा‍तेति षुठ कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौ‍र‍ति चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।

ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है।
ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है। इस समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं को काल कहा जाता है।


अलसी का वानस्पतिक नाम LINUM USITATISSIMUM
परिवार LINACEAE
अन्य नाम
संस्कृत  Atasi, Auma, Budrapatni, Chanaka, देवी, Haimwati सैन, Kshauma, Kshaumi, Ksuma, Madagandha, Madotkata, Malina, Masina, Masrina, Masrind, Masrna, Masruna, Masuna, Mauverchala, Nilapushpi, Nilapushpika, Nilapuspi, पार्वती, Pichhila, Sunila, Tailottama, उमा, Lika
हिंदी Alsi, Tisi, Tisi-ka-दूरभाश, Alsi-ka-दूरभाष
उर्दू Alasi, Alsee, Katan, Alsi nim bariyan, Alsi, Roghan alsi
अरबी Kattan, Bazarulkatan, Bazarutkattan, Bazrul-Kattan, Dhonul-Kattan
असमिया Tisi Goch
कन्नड़ Alashi, Alasibija, Alsi, Agase naaru, Alashiberu, Athasi gida, Seeme agase beeja, Agase beeja, Agase gida, Alasee beeja, Athasee gida, अलसी enne
MALYALAM » Akasi, Cerucana, Cheru-chanattinte-vitta, Cheruchanavittintevilta, Kayavu
मणिपुरी Thoiding-amuba
मराठी Javas, Alashi, Javasa, Alsi-sanbyam
PERSIAN Zaghu, Zaghir, Kutan, Bazarug, Kuman, Tukhmekatan, Tukhme-zaqhir, Tukhme-zaghir, Tukhme-katan, Roghane-katan, Roghane-zaghir
तमिल Alivirai, Alshi, Alishi-virai, अली, अली vittu, Alici vitai, Alishivirai, Alisi virai, Alleverei, Serroo sanulverei, Alci, Alici, Cantiracura
TELGU Atasi, Avisi, Madana-ginjalu, Madanginjalu, Ullusulu, Madanaginja, अली, Athasee, Avishi, Madanaginjalu, नल्ला agisi, avisi नल्ला
आयुर्वेदिक गुण
गुना (गुणवत्ता)
रस (स्वाद)
VIPAK (चयापचय)
VIRYA (शक्ति)
PRABHAV (प्रभाव)
गुरू Snigdh, Pichil
मधुर, Tikt
कटु  Ushan
Mriduvirechan
औषधीय कार्रवाई Immunosuppressive, एनाल्जेसिक, tribolium castaneum के खिलाफ Repellant गतिविधि
चिकित्सीय का उपयोग करता शुक्राणु विध्वंसक • Micturitive • रेचक Pittaj vikaar • मूत्र पथ के संक्रमण
योगों (योग) Gojihvadi kvath churna Sarsapadi pralepa
विरोधी मूर्ख हो जाना (निवारण द्रव्य) उपलब्ध नहीं

 

1 comment:

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी जानकारी है। धन्यवाद।