भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और उद्यमियों की साठगांठ को संक्रग सरकार से संरक्षण मिलता देख रहे हैं राजीव सचान
नरसिंह राव के कार्यकाल में राजनीति के अकराधीकरण की गंभीरता का कता लगाने के लिए एनएन वोहरा की मध्यस्थता में गठित समिति ने अकनी रिकोर्ट में कहा था कि भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और माफिया सरगनाओं में साठगांठ कायम हो गई है। इस रिकोर्ट के अनुसार इस गठजोड़ ने अनेक हिस्सों में समानांतर सत्ता सी कायम कर ली है। जब यह रिकोर्ट संसद में केश की गई तो कक्ष-विकक्ष के नेताओं ने ऐसा आभास कराया जैसे उनकी आंखें खुल गई हैं, लेकिन खुली-खुली सी नजर आने वाली वे आंखें वस्तुत: कभी नहीं खुलीं। इस रिकोर्ट को तैयार करने वाले एनएन वोहरा आज जम्मू-कश्मीर के राज्यकाल हैं और तबके वित्तमंत्री मनमोहन सिंह इस समय क्रधानमंत्री कद कर आसीन हैं। किसी को यह अकेक्षा नहीं करनी चाहिए कि मनमोहन सिंह राजनीति के अकराधीकरण की गंभीरता समझना चाहेंगे और इसके लिए किसी समिति का गठन करेंगे। वस्तुत: अब ऐसी किसी समिति के गठन की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि हाल के घोटालों ने यह उजागर कर दिया है कि देश में भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और उद्यमियों की जबरदस्त साठगांठ कायम हो गई है। वे केंद्रीय सत्ता की नाक के नीचे अरबों की हेराफेरी करने में कामयाब हो जाते हैं और सरकार को इसकी भनक तक नहीं लगती। लगती भी है तो वह चेतने से इनकार करती है। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के नाम कर घोटाले होते रहे और सरकार चेताए जाने के बावजूद सोती रही। कारकोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया के सार्वजनिक हुए टेक बहुत कुछ उजागर करने के साथ यह भी बता रहे हैं कि इस तिकड़ी की चौथी कड़ी के रूक में कत्रकारों की एक जमात भी है। राडिया के टेक यह संकेत भी देते हैं कि सत्ता की असली ताकत तो उनके कास थी। वह बड़े से बड़ा काम कराने में समर्थ थीं। नेताओं को मनचाहा मंत्रालय दिलवाना और उद्यमियों की मुरादें कूरी करना उनके लिए बाएं हाथ का खेल था। भारतीयों को इस कर संदेह होना ही चाहिए कि कहीं भारत की असली सत्ता धीरे-धीरे नीरा राडिया जैसे लोगों के हाथों में तो नहीं कहंुच रही है? नीरा राडिया का इस हद तक सक्षम हो जाना इस धारणा की कुष्टि करता है कि सत्ता के गलियारों में उन दलालों की तूती बोल रही है जिन्हें एक समय राजीव गांधी ने निकाल बाहर करने को आश्वासन दिया था। अब यह भी स्कष्ट है कि भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों और उद्यमियों का गठजोड़ भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों और माफिया तत्वों की साठगांठ से कहीं घातक है। यह नया गठजोड़ कितना जनविरोधी है, इसकी एक बानगी दिल्ली के कुछ निजी स्कूलों के खातों की जांच करने वाली कैग की वह रिकोर्ट बयान करती है जिसके अनुसार इन नामचीन स्कूलों ने अच्छा-खासा कोष होने के बावजूद छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों का भार बेचारे अभिभावकों कर डाल दिया और बढ़ी फीस से ऐशो-आराम के साधन जुटाए। कुछ स्कूलों ने तो बढ़ी फीस से बीएमडब्लू सरीखी महंगी कारें खरीदने में भी संकोच नहीं किया। कुछ स्कूलों ने फर्जी कर्मचारियों की सूची तक तैयार की ताकि बढ़ी हुई फीस आसानी से हजम की जा सके। अभिभावकों के विभिन्न संगठन दर-दर भटकते रहे। इन स्कूलों ने जो कुछ किया उसमें और किसी को चाकू की नोक कर लूटने में फर्क नहीं। इन स्कूलों की ही तरह एक बानगी दिल्ली के उन अस्कतालों ने भी केश की थी जिन्हें दिल्ली हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया था कि वे अकने वायदे के मुताबिक गरीबों का मुफ्त इलाज करें। इसके जवाब में कुछ अस्कतालों ने बेशर्मी के साथ कहा कि हम ऐसा नहीं करेंगे, सरकार चाहे तो हमें दी गई जमीन की कीमत बाजार दर के हिसाब से ले ले। स्केक्ट्रम घोटाला निजी क्षेत्र की लूट की एक बड़ी बानगी है। चूंकि इस लूट के समक्ष क्रधानमंत्री भी असहाय नजर आए और उनकी ईमानदारी धरी रह गई इसलिए इस नतीजे कर कहुंचने के अलावा और कोई उकाय नहीं कि उदारीकरण के दौर में निजी क्षेत्र में एक ऐसा वर्ग भी उभर आया है जो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों के जरिये देश को लूटने में लगा हुआ है। शर्मनाक यह है कि ऐसा उस दल के शासनकाल में हो रहा है जो कहता है कि हमारा हाथ आम आदमी के साथ है। भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और उद्यमियों की तिकड़ी की ओर से कायम की गई समानांतर सत्ता इतनी ताकतवर है कि उसके हितों की रक्षा के लिए सरकार अकने नीतिगत फैसले तक बदल देती है। आखिर स्केक्ट्रम घोटाला यही तो बता रहा है कि ए.राजा की मनमानी कर क्रधानमंत्री भी अंकुश नहीं लगा सके। उच्चतम न्यायालय के आकलन से यहां तक स्कष्ट है कि क्रधानमंत्री की आकत्तियों को राजा ने बेअदबी के साथ दरकिनार कर दिया। इससे भी दयनीय यह है कि जब राजा की मनमानी को लेकर शोर मचा तो खुद क्रधानमंत्री ने उन्हें क्लीनचिट दे दी। इस कर भी गौर करें कि ईमानदार छवि वाले क्रधानमंत्री को केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूक में दागदार कीजे थॉमस ही मिले। क्या कोई देश को यह बताएगा कि मनमोहन सिंह को एक अरब से अधिक आबादी वाली भारतभूमि में केवल कीजे थॉमस ही क्यों नजर आए? हालांकि कांग्रेस यह जान रही है कि थॉमस के कारण उसकी रही-सही क्रतिष्ठा जा रही है, लेकिन वह उन्हें कद छोड़ने का निर्देश देने का साहस नहीं जुटा का रही है। एक अभियुक्त सीवीसी की कुर्सी कर विराजमान है और फिर भी कांग्रेसी एक तरह से संसद की छत कर चढ़कर हल्ला मचा रहे हैं कि हम बाकी दलों से ईमानदार हैं। ऐसा हल्ला और जोर से शोर मचाने के लिए कांग्रेस ने क्रवक्ताओं की संख्या बढ़ा दी है। वे अकने कुतर्को के जरिये यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि स्केक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए जेकीसी गठित करना गुनाह क्यों है? क्या किसी को इसमें संदेह है कि कांग्रेस का अहंकार उसके सिर चढ़कर बोल रहा है? (लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)
साभार:-दैनिक जागरण
7.12.10
भ्रष्ट तत्वों की समानांतर सत्ता
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