उसके बाप ने माँ का साथ नहीं निभाया। गाने बहुत गाए, इधर-उधर साथ उड़ते फिरे, और वादे भी बहुत किए मगर जब निभाने की बारी आई तो नदारद। बाप का साया नहीं तो कम से कम माँ की ममता तो मिल जाती। मगर कमबख़्त को...
जैसे-जैसे दिन बीतने लगे और पंखों का रंग और गले का सुर बदलने लगा तो खुली असलियत। और जैसे ही उन्हे समझ आया कि जिस अण्डे को उन्होने अपने पेट की गर्मी से सेया और पाल-पोस कर उड़ने लायक़ बना दिया वो तो कोई कौआ नहीं बल्कि कोयल है। बस उसी वक़्त लात मार घोंसले से गिरा दिया।
ये हादसा हर कोयल की ज़िन्दगी में होता है। किसी की ज़िन्दगी में जल्दी, किसी की ज़िन्दगी में देर से। कोई घोंसले से गिर कर भी बाद में कुहकुहाने के लिए बच जाता है किसी की जीवनरेखा ज़रा छोटी होती है। गिरने के बाद, बिना किसी माँ-बाप, भाई-बहन, और दूसरे सामाजिक सम्बन्धों के कोयल अकेले इस बेरहम दुनिया में अपना आबोदाना खोजती है। और जब जान का आसरा हो जाता है तो भीतर की कुदरत बहार आते ही जाग जाती है। और नर कोयल खोजने लगती है मादा कोयल को। हर जगह पुकारती फिरती है। और नर के इसरार का क्या करे, और कब करे, मादा कोयल तौलती है। फिर किसी मौक़े पर दिल के द्वार खोलती है। मगर एक घनचक्कर में फंसे ये पखेरू फिर उसी इतिहास को दोहराते हैं। और अपना एक घोंसला बनाने से मुकर जाते हैं। इस तरह हादसों का सिलसिला चलता रहता है।
मैं अक्सर सोचता था कि क्यों कोयल ही प्रेम के गीत गाती है। और कौवों के प्रेम की हवा किसी को नहीं मिल पाती है। शायद कह सकते हैं कि कोयल का तो शादी में यक़ीन ही नहीं और कौओं के समाज में अरेन्ज्ड मैरिज की परिपाटी है।
google buzz par abhay tiwari/nirmal aanand ki post
1 comment:
कोयल अपना कर्तव्य नहीं निभाती फिर भी सबकी प्रिय है और कौव्वा दूसरों के बच्चों को भी पालता है तो भी बुरा है। कारण है उसकी बोली, एक मिठास वाली है तो दूसरी कर्कश।
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