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17.5.11

मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा


रविकुमार बाबुल

नींद में कुछ ख्वाब,
पलटते रहे मुझे,
और कुछ पुरानी यादें,
मुझे सहलाती रही।
मेरे अश्क तेरे अक्स में,
भींग गये भीतर तक।
तुम फिर भी सूखी रहीं,
तपती दोपहरी की तरह।

परिदें लौटते हैं शाम को
यह सुन चाहा था मैंनें,
तुम्हें चिडिय़ा बनाना।
तुम चिडिय़ा बन जाना,
और लौटके आना सांझ तक,
मैं इंतजार करूंगा तुम्हारा,
दिल के आंगन में
तुम्हारी चहचहाट सुनने को?

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