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24.5.11

plitical dairy of seoni disst. of M.P.

अजय सिंह के चन्द शब्दों से अपनी अपनी पार्टी में आरोपों के घेरे में आये शिवराज और हरवंश क्या बचाव की मुद्रा में आयेंगें?

जले की भाजपायी राजनीति में इस बात को लेकर काफी उत्सुकता देखी जा रही हैं कि गौ संवंर्धन बोर्ड के अध्यक्ष मेघराज जैन के राज्य सभा सदस्य बन जाने के बाद क्या उनका स्थान पूर्व विधायक नरेश दिवाकर लेंगेंर्षोर्षो इस हेतु उन्होंने लॉबिंग भी शुरू कर दी हैं। सियासी हल्कों में यह भी चर्चा हैं कि अपने किसी गुप्त राजनैतिक ऐञ्जेंड़े के चलते शिवराज जिले में कोई लालबत्ती देने के मूड में नहीं हैं। अजय सिंह के चन्द शब्दों के कारण आरोपों के घेरे में आये शिवराज और हरवंश दोनों ही बचने के प्रयास में दिख रहें हैं। जहां एक तरफ जिले में रहते हुये भी हरवंश सिंह ने शिवराज की उपस्थिति में हुये मोगली उत्सव में शामिल होने से परहेज किया वहीं दूसरी ओर इसी महोत्सव के दौरान दूसरे कार्यकाल में केवलारी विस क्षेत्र, जो कि हरवंश सिंह का क्षेत्र हैं, में उनके ना आने का रोना जब प्रभात झा के सामने रोया गया तो तत्काल है उन्होंने 21 मई को केवलारी आने की स्वीकृति दे दी। लेकिन अन्तत: आये नहीं।बीते सप्ताह की एक और महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा द्वारा पड़ोसी जिले बालाघाट के कबीना मन्त्री गौरीशंकर बिसेन को विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के निर्वाचन क्षेत्र केवलारी का प्रभारी बनाने की मानी जा रही हैं।अपने अपने फन में माहिर ये दोनों नेताओं में गोदे में कौन किसे चित करेगार्षोर्षो यह तो वक्त ही बतायेगा।

क्या मेघराज जैन की जगह ले पायेंगें नरेशर्षोर्षोे -जिले की भाजपायी राजनीति में इस बात को लेकर काफी उत्सुकता देखी जा रही हैं कि गौ संवंर्धन बोर्ड के अध्यक्ष मेघराज जैन के राज्य सभा सदस्य बन जाने के बाद क्या उनका स्थान पूर्व विधायक नरेश दिवाकर लेंगेंर्षोर्षो इस हेतु उन्होंने लॉबिंग भी शुरू कर दी हैं। पता चला हैं कि अपने कुछ समर्थकों के साथ इस हेतु उन्होंने भोपाल जाकर मुख्यमन्त्री और प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य नेताओं से भेण्ट करके भी आ गये हैं। कुछ भाजपा नेताओं का यह भी मानना हैं कि नरेश को किसी निगम का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनाने के बजाय किसी आयोग का सदस्य बना कर लाल बत्ती तो थमा दी जायेगी लेकिन फिर वे संवैधानिक पद पर रहने के कारण भाजपा की सक्रिय राजनीति से बाहर हों जायेंगें और इसके लिये जिले के सभी भाजपा नेताओं में सहमति भी बन सकती हैं। प्रदेश के नेताओं ने कैसा रिसपान्स दियार्षोर्षो ये तो वे ही जाने लेकिन भाजपा में ही एक वर्ग का यह मानना हैं कि नरेश की यह कवायत भी वैसे ही बेकार जायेगी जैसे नीता पटेरिया की मन्त्री बनने की कवायत बेकार गई थी। राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना हैं कि नरेश की टिकिट काट कर विधायक बनने वाली पूर्व सांसद नीता पटेरिया अपने सम्पंर्कों का लाभ लेकर किसी भी कीमत पर नरेश को लाल बत्ती नहीं लेने देंगीं। भाजपा ने चुनाव में अपने चार सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाया था जिसमें से तीन कबीना मन्त्री बन गयें हैं लेकिन नीता पटेरिया का दावा मुख्यमन्त्री ने ना जाने क्यों सिरे से नकार दिया था। आज वे प्रदेश महिला मोर्चे की अध्यक्ष हैं। भाजपा के ही एक वर्ग का यह भी मानना हैं कि जिन कारणों से नरेश दिवाकर की टिकिट कटी थी वे कारण ही लाल बत्ती ना मिलने के पर्याप्त हैं। हाल ही में सागर की पूर्व विधायक सुधा जैन और छिन्दवाड़ा के सन्तोष जैन को लाल बत्ती देकर निगम मंड़ंलों में नियुक्त किया गया हैं। ऐसे हालात में जातीय समीकरण भी नरेश के पक्ष में नहीं माने जा रहें हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना हें कि भूरिया के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने से घबराये शिवराज आदिवासी विधायक शशि ठाकुर या कमल मर्सकोले में से किसी को मन्त्री बना कर आदिवासी वोटों को थामे रखने की कोशिश भी कर सकतें हैं। सियासी हल्कों में यह भी चर्चा हैं कि अपने किसी गुप्त राजनैतिक ऐञ्जेंड़े के चलते शिवराज जिले में कोई लालबत्ती देने के मूड में नहीं हैं। यह सब तो कयासबाजी हैं लोग अपने अपने तरीके से प्रयास तो कर रहें हैं लेकिन वास्तविकता क्या हैंर्षोर्षो यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा।

आखिर नहीं आये शिवराज हरवंश के क्षेत्र केवलारी में -राजनीति में यह माना जाता हैं कि बड़े नेता के मुंह से निकले चन्द शब्द ही बवाल खड़ा कर देतें हैं। ऐसा ही कुछ सिवनी जिले की इंका और भाजपायी राजनीति में दिखायी दे रहा हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि नेता पेति पक्ष अजय सिंह ने भोपाल में आयोजित स्वागत समारोह हजारों कार्यकत्ताZओं के समने यह कह दिया था कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो हम सब बना लेंगें यदि हमारे वरिष्ठ नेता ठाकुर हरंश सिंह शिवराज सिंह को सहयोग करना बन्द दें। उनके मुंह से निकले इन चन्द शब्दों ने कांग्रेसी तबेले में तो बवाल मचा ही दिया था लेकिन अब इन चन्द शब्दों की आग की चपेट में शिवराज विरोधियों ने उन्हें भी घेर लिया हैं। अजय सिंह के चन्द शब्दों के कारण आरोपों के घेरे में आये शिवराज और हरवंश दोनों ही बचने के प्रयास में दिख रहें हैं। जहां एक तरफ जिले में रहते हुये भी हरवंश सिंह ने शिवराज की उपस्थिति में हुये मोगली उत्सव में शामिल होने से परहेज किया वहीं दूसरी ओर इसी महोत्सव के दौरान दूसरे कार्यकाल में केवलारी विस क्षेत्र, जो कि हरवंश सिंह का क्षेत्र हैं, में उनके ना आने का रोना जब प्रभात झा के सामने रोया गया तो तत्काल ही उन्होंने 21 मई को केवलारी आने की स्वीकृति दे दी। जिले के संगठन मन्त्री सन्तोष त्यागी और लिा भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन ने क्षेत्र के कार्यकत्ताZनों को उत्साहित करने के लिये केवलारी आने का आग्रह किया था। लेकिन मुख्यमन्त्री का तो शासकीय कार्यक्रम तो आया ही नहीं उसके बजाय वे सभी कार्यक्रम जिन्हें शिवराज सिंह को अपने दौरे में करना था वे सभी प्रभारी मन्त्री जगन्नाथ सिंह और विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के द्वारा सम्पन्न करा लिये गये। इससे तो अब ऐसा लग रहा हैं तीन साल बाद मुख्यमन्त्री का पहली बार बना दौरा स्थगित नहीं वरन रद्द ही हो गया हैं और शायद अब चुनाव तक वे इस क्षेत्र की सुध भी नहीं लेंगें।

क्यों प्रभारी बने गौरी भाऊ केवलारीं केर्षोर्षो-बीते सप्ताह की एक और महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा द्वारा पड़ोसी जिले बालाघाट के कबीना मन्त्री गौरीशंकर बिसेन को विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह के निर्वाचन क्षेत्र केवलारी का प्रभारी बनाने की मानी जा रही हैं। राजनैतिक विश्लेषक प्रभात झा के इस फैसले के तरह तरह के अर्थ निकाल रहें हैं। कुछ का मानना हैं कि गौरीशंकर खुद कई दिनों से प्रभारी बनने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें सफलता और इसलिये भी मिल गई कि पिछले प्रभारी बने आदिवासी मन्त्री जयसिंह मरावी प्रभार मिलने के बाद से एक बार भी क्षेत्र में नहीं आये थे। गौरी शंकर क्यों प्रयास रहे थेर्षोर्षो इसे लेकर भी कई चर्चायें सियासी हल्कों में चल रहीं हैं। भाजपाइयों ने ही केवलारी में भाजपा की हार के छीण्टे भाऊ के दामन पर भी उछाले थे। वैसे एक बात तो सभी मानते हैं कि हरवंश और गौरीशंकर बिसेन दोनों ही राजनीति के मैदान के हरफन मौला खिलाड़ी हैं। कौन किस पर कब भारी पड़ जायेर्षोर्षो इसे कोई भी दावे से नहीं कह सकता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में गौरीशंकर अपनी पत्नी रेखा बिसेन को लोस की टिकिट दिलाना चाहते थे। पैनल में पूर्व मन्त्री डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन का नाम भी था। गौरी भाऊ किसी भी कीमत पर डॉ. बिसेन को नहीं चाहते थे। इसलिये अन्त में उन्होंने के. डी. देशमुख के नाम पर अपनी सहमति देकर उन्हें टिकिट दिला दी थी। अब उनकी पत्नी जिला पंचायत का चुनाव भी हार चुकीं है। सियासी हल्कों में यह चर्चा है कि कांग्रेस इस बार बालाघाट लोस से हरवंश सिंह को भी चुनाव लड़ा सकती हैं। इसे भाम्प कर हरवंश सिंह ने भी बालाघाट में अपनी आमद रफ्त बढ़ा दी हैं। राजनैतिक कार्यक्रमों के अलावा वे शादी विवाह में हाजिर हो रहें हैं। इसीलिये शायद गौरी भाऊ हरवंश सिंह पर दवाब बनाने के लिये प्रभार लेना चाहते थे। वे डम्पर कांड़ और धारा 307 के मुकदमे का खेल भी देख चुके हैं। अपने अपने फन में माहिर ये दोनों नेताओं में गोदे में कौन किसे चित करेगार्षोर्षो यह तो वक्त ही बतायेगा।

पुच्छल तारा-शिवराज की जगह आये प्रभारी मन्त्री के कार्यक्रम में बोथिया में पंड़ाल का उड़ना और हरवंश सिंह का कार्यक्रम में शामिल होने बजाय रेस्ट हाउस में बैठे रहना सियासी हल्कों में चर्चित हैं। राजनीति में हर विधाओं का उपयोग करना आज कल आम बात हो गई हैं। ऐसे में इस घाटना को लेकर तरह तरह की चर्चायें होना स्वभाविक ही हैं। यह तो ईश्वर की कृपा ही हैं कि सिर्फ दो लोग घायल हुये और कोई बड़ी दुघZटना होने से बच गई।





नगर विकास का पैसा लील रही है सफेद हसफेद हाथी साबित हो चुकी भीमगढ़ जलावर्धन योजना

13 करोड़ 76 लाख 10 हजार रुपये बिजली बिल बकाया

विकास के 20 लाख काट रही है प्रदेश सरकारर

सिवनी।महत्वाकांक्षी भीमगढ़ जलावर्धन योजना सफेद हाथी साबित हो चुकी है।नगर विकास के लिये मिलने वाले बीस लाख रुपये सरकार काट कर बिजली बिल में समायोजित करा रही है। 30 अप्रल 2011 तक इस योजना का बिजली का पालिका पर 13 करोड़ 76 लाख 10 हजार रुपये बकाया हैं। पालिका अध्यक्ष, विधायक, सांसद और सरकार सभी भाजपा के हैं लेकिन ना तो वे इस घटिया योजना की जांच ही करा रही हैं और ना ही अनुदान देकर पालिका को राहत पहुंचा रही है।

कांग्रेस शासनकाल में बनी महत्वाकांक्षी भीमगढ़ जलावर्धन योजना शुरूसे घटिया पाइप लाइन उपयोग में लाये जाने के कारण दुगनी बिजली खपत के बाद भी आधा पानी देने के लिये विवादों में रही हैं। कई बार मांग उठने के बाद भी ना तो कांग्रेस सरकार और ना ही भाजपा सरकार इसकी जांच कराने का साहस जुटा पायी हैं। इसी कारण यह योजना सफेद हाथी साबित हो चुकी हैं।

इस योजना का बिजली का बिल 30 अप्रेल 2011 तक सरचार्ज मिला कर 13 करोड़ 76 लाख 10 हजार रुपये हो गया हैं। इसमें श्रीवनी का बकाया 6 करोड़ 17 हजार रु. है जबकि सुआखेड़ा का 7 करोड़ 75 लाख 93 हजार रु. बकाया है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हे कि इस योजना की कुल लागत 18 करोड़ 15 लाख रु. है।

करोड़ों के बकाया बिल में पालिका हाई कोर्ट के निर्देश के बाद मात्र 5 लाख रु. प्रतिमाह पटा रही थी। जिली बोर्ड के दवाब के चलते प्रदेश सरकार जून 2010 से नगर विकास के लिये मिलने वाली राशि में से प्रतिमाह 20 लाख रु. काटकर बिजली बिल में समायोजित कर रही हैं। इस तरह मई 2011 तक 2 करोड़ 40 लाख रु. बिजली बिल में समायोजित हो चुकें है जो नगर विेकास में लगते तो मुख्यमन्त्री के चुनाव के समय दिखाये गये कुछ सपने तो पूरे हो सकते थे।

यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि नगर के लिये बनायी गई इस योजना से मार्च 1999 से 16 गांवों को भी पानी दिया जा रहा है। गांवों को पेयजल उपलब्ध कराने का काम पी.एच.ई. विभाग का हैं। लेकिन इस योजना से ग्रामीण क्षेत्रों को जो पानी दिया जा रहा है उसमें बिजली के बिल का 8.40 प्रतिशत हिस्सा पंचायतों द्वारा वहन किया जाना था। योजना का हर महीने 31 लाख 17 हजार रु. बिल आ रहा है।इस तरह 12 साल तीन महीने में पंचायतों को देने वाली बिजली बिल की राशि 38 लाख 48 हजार 7 सौ 54 रु. होती हैं जो कि आज तक वसूल नहीं की गई हैं।

पालिका चुनाव के दौरान रोड़ शो करने आये मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह ने जनता को बहुत सब्ज बाग दिखाये थे लेकिन शिव की नगरी सिवनी को कुछ देने के बजाय जो मिल रहा था उसी में कटोती करके जनता के साथ क्रूर मजाक कर रहें हैं।



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