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21.5.11

क्योंकि मैं एक लड़की थी.............


क्योंकि मैं एक लड़की थी.............

‘‘ऐ जिन्दगी ऐ मेरी बेबसी
अपना कोई ना था,
अपना कोई नहीं
इस दुनिया में हाय.............’’
सैंकड़ों लोगों के बीच पड़ी मैं यही सोच रही थी। मेरे लिए लड़ने वाले इन अनजान लोगों की भीड़ में भी मैं कितनी अकेली हूँ। मेरे लिए लड़ाई.................
सुनकर आप लोगों को लग रहा होगा कि जरूर ‘लड़की का कोई किस्सा या चक्कर होगा’। हँसी आती है मुझे ऐसी मानसिकता पर जहाँ ‘लड़की’ शब्द सुनते ही लोगों की नकारात्मक सोच उनके विकसित कहे जाने वाले व्यक्तित्व पर हावी हो जाती है। क्यों हम लड़कियों को अकेले इसी सांचे में फिट किया जाता है? 21वीं शताब्दी की इस पढ़ी लिखी, सुसंस्कृत, विस्तृत सोच वाली दुनिया के मानसिक विकास का दायरा इतना संकुचित क्यों है?
खैर! हम लड़कियों की अपने अस्तित्व की यह लड़ाई कभी न खत्म होने वाली है। न तो हमारे प्रश्नों का अन्त है और न ही हमारे प्रश्नों का उत्तर इस समाज के पास है। सच कहुँ तो मेरा यह प्रश्न इस समाज से पहले उस भगवान से है जो किसी पापी को सजा स्वरूप लड़की के रूप में पैदा होना निर्धारित करता है (ऐसा हमारे समाज में कहा जाता है कि भगवान जिसे सजा देना चाहते हैं उसे लड़की के रूप मेें धरती पर भेजते हैं)। एक तरफ लड़की को ‘माँ’ जैसे संवेदनशील शब्द से भावुक किया जाता है, देवी के रूप में पूजा जाता है, बहन के रूप में प्यार किया जाता है, विभिन्न रूपों में सम्मान दिया जाता है वहीं दूसरी ओर उसी लड़की को घृणित दृष्टि से देखा जाता है, बदनियति से उसका शोषण किया जाता है, उसके जन्म पर आँसू बहाये जाते हैं, घर में उदासी का ऐसा आलम छा जाता है कि जब तक वह लड़की एक घर से दूसरे घर तक नहीं पहुँच जाती तब तक लड़की होने के ताने दिये जातेे हैं और अगले घर की जिंदगी............................ इस जिंदगी से तो हर कोई वाकिफ है। समझ में नहीं आता हमारा अस्तित्व किससे जुड़ा है, उस पूजनीय रूप से या आज के इस कड़वे सच से? परन्तु यह तो तय है कि इन दोनों रूपों में से कोई एक हमें अवश्य छल रहा है।
छल.................... यह ‘छल’ हमारी जिन्दगी का एक अटूट हिस्सा बन गया है। पैदा होते ही माँ-बाप के आँसू देखकर अहसास हुआ कि शायद मुझे इस दुनिया में देखकर खुशी के कारण माँ-बाप की आँखों से ये अनमोल मोती गिर रहे हैं। शायद जो भाव वे शब्दों में बयाँ नहीं कर पा रहे, वे आँसूओं के रूप में प्रकट हो रहे हैं। मेरी भी इस दुनिया में आने की खुशी दुगनी हो गयी। परन्तु मेरी खुशी ने मुझे मेरी जिन्दगी का पहला धोखा दिया। मेरा भ्रम माँ-बाप के वो चार शब्द सुनते ही दूर हो गया जो मुझे दिल की गहराइयों तक छू गये। ‘‘ये तो लड़की है।’’
जी हाँ, मैं तो एक लड़की थी। पता नहीं क्यों मैं माँ-बाप के आँसूओं को देख भावनाओं के सूखे सागर में बह गई और जब उस सूखे सागर से बाहर आई तो मैं प्यासी ही रह गई। माँ-बाप के पहले स्पर्श की प्यासी, उनके पहले दुलार की प्यासी, उनके पहले अहसास की प्यासी, मुझे छूने के लिए उनके काँपते हाथों की प्यासी, उनके पहले शब्द की प्यासी, उनके चेहरे की मुस्कराहट की प्यासी। प्यासी, क्योंकि मैं एक लड़की थी.........................
मुझे ‘छल’ शब्द से नफरत होने लगी थी। मैं ‘छल’ को कोस रही थी कि क्यों ये मेरी जिन्दगी में आया। बहुत दुख होता है जब कोई अपनों से छला जाता है। पर जल्द ही मुझे पता लगा कि यह छल अब मेरी जिन्दगी भर का साथी होने जा रहा है।
मैं कुछ घंटों की बच्ची मेरे माँ-बाप पर भारी होने लगी थी। मेरे लड़की होने का गम वे और अधिक सहन नहीं कर पा रहे थे। तभी उन्हें एक कुटिल युक्ति सूझी। जिसे सुनकर मेरी रूह काँप उठी। मुझे वाकई अपने लड़की होने पर घृणा होने लगी। माँ-बाप की बात सुनकर मुझे वास्तव में यकीन हो गया कि लड़की होना कितना बड़ा पाप है।
‘पाप’ ही तो है। यदि लड़की होने के कारण एक माँ अपने कलेजे के टुकडे को फंेकने के लिए तैयार हो जाये तो वास्तव में यह पाप ही है। जी हाँ, मेरे माँ-बाप ने मुझे शहर से दूर कहीं फेंक देने की युक्ति सोची थी। कितने कष्टप्रद थे वे संवाद.....................।
माँ को ममता की देवी कहा जाता है। कहा जाता है कि एक माँ से ज्यादा अपने बच्चे को कोई और प्यार नहीं कर सकता। एक माँ ही है जो अपने बच्चों के बंद होठों की भाषा भी समझ लेती है। माँ से ज्यादा श्रेष्ठ इस दुनिया में किसी और को नहीं माना जाता। माँ से पहले इस दुनिया में कोई पूजनीय नहीं है।
परन्तु मेरी माँ....................... वो ऐसी क्यों नहीं है? मुझे मेरी माँ क्यों नहीं समझ रही है? मेरा स्पर्श मेरी माँ में ममता का संचार क्यों नहीं कर रहा है? मेरी माँ ने मुझे एक बार भी गोद में क्यों नहीं उठाया? वो मुझे फेंकने के लिए कैसे राजी हो गई? माँ................... तुम इतनी निष्ठुर कैसे हो गई?
नहीं माँ नहीं, मुझेे कुछ घण्टे और अपने साथ बिताने दो। मुझे इस तरह से मत फेंको......................
मेरी माँ ने मेरी एक ना सुनी। उनके मन में मेरे लिए इतनी घृणा थी कि उन्होंने मुझे किसी मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, अनाथालय या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर न फेंककर एक ऐसे स्थान पर फेंक दिया जहाँ से गुजरते हुए भी लोग अपनी नाक भौं सिकोड़ते हैं। जहाँ लागों को अपना रूमाल अपनी नाक पर रखने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जहाँ लोगोें का दम घुटता है। ऐसे कूड़े के ढेर पर मेरी माँ ने मुझे निर्ममता से फेंक दिया।
माँ........................ क्या आपको कभी आत्मग्लानि होगी? क्या कभी आपको मेरे दुख का अहसास होगा? माँ मुझे मेरा कसूर तो बता दिया होता?
फिर एक ‘छल’। परन्तु यह सब इतना दुखदायी था कि मुझे जीने की ही चाह न रही। मुझे खुद से घृणा होने लगी। मैं और नहीं जीना चाहती थी। मैं उस कुड़े के ढ़ेर पर अकेली पड़ी बिलख रही थी। देखने व सुनने वालों को लगा कि ‘बच्ची छोटी है इसलिए रो रही है।’ जबकि सच यह था कि मैं खुद पर रो रही थी। परन्तु आज की स्वार्थी दुनिया में कोई किसी के दर्द को नहीं समझता। परन्तु ऐसे मेें मेरा दर्द समझने वाला कोई था वहाँ। मोहल्ले के कुछ कुत्ते, जो भोजन की तलाश में वहाँ आये थे। मुझे देखते ही पाँच कुत्तों की उस टोली के मुँह में पानी आ गया। कुछ घण्टों का ताजा गोश्त। और फिर बिना एक पल गँवाये वे मुझ पर ऐसे टूट पड़े जैसे कई महीनों से भूखे हो। किसी को मेरा हाथ पसन्द आया तो कोई मेरे पैर नोंच रहा था। एक कुत्ते को तो मेरी नन्हीं आँखें ही भा गई। कोई मेरे पेट को चीर रहा था। तभी एक कुत्ते की नज़र मेरे धड़कते दिल पर पड़ी। जो गम के कारण इतना वजनी था कि उस कुत्ते का पेट ही भर गया। चित्थड़े- चित्थड़े हो गया मेरा वो नन्हा शरीर।
पर मुझे खुशी थी कि मेरे जीवन का मोल कुत्तों ने ही सही पर किसी ने समझा तो। और आज नहीं तो कल मुझे इसका सामना तो करना ही था। अन्तर सिर्फ इतना होता कि ये वास्तव में कुत्ते थे और बड़े होने पर मुझे ‘इन्सानी कुत्ते’ मिलते। पर परिणाम समान ही होना था। क्योंकि मैं एक लड़की हूँ..............................
पर इस घटना के बाद की हैवानियत पर मुझे हँसी आ रही थी। जी हाँ अब तक के गम मेरे लड़की होने के कारण मेरे अपने थे। पर अब मैं जो बताने जा रही हूँ वो समाज का गम है। समाज के गिरते स्तर का, लोगों की संकुचित मानसिकता का और समाज के पढ़े लिखे गवाँरों का इससे उन्मदा नमूना कुछ और नहीं हो सकता।
मेरे कुछ चित्थडे जिन्हें लेकर समाज के दो वर्ग अपने-अपने हथियार लिए एक दूसरे के सामने तैनात थे। जी हाँ, यह वही लड़ाई है जिसका जिक्र मैंने कहानी के आरम्भ में किया था। एक नन्हीं बच्ची के चित्थडों के लिए लड़ाई (न कि किसी लड़की से सम्बन्धित कोई और किस्सा)। मुझे हँसी इस बात के लिए आ रही थी कि जब मैं जीवित थी तक मेरे लिए किसी ने आवाज नहीं उठाई और अब जब मेरे कुछ अंश बचे हैं तो उनके लिए लड़ाई? बहुत विचित्र लग रहा है ये सब। समझ में नहीं आ रहा है कि ये माजरा क्या है?
ओेह! मैं अपने उस साथी को कैसे भूल गई जिसने मेरा हर पल साथ दिया। जिसके साथ मैं यहाँ तक पहुँच पाई। ‘छल’ आ ही गये तुम। अब तुम ही बताओ ये सब क्या चल रहा है? अब क्यों लड़ रहे हैं ये सब मेरे लिए?
छलः ‘छल’ के साथ रहती हो और ‘छल’ को नहीं समझ पाई। गलतफहमी है ये तुुम्हारी कि कोई तुम ‘लड़की’ के लिए लड़ रहा है। यहाँ जो भीड़ है वह दो समुदायों की है-हिन्दु व मुस्लिम। ये तुम्हारे बचे हुए चित्थड़ों के लिए लड़ रहे हैं। हिन्दुओं के अनुसार तुम्हारे चित्थड़े हिन्दु है और मुसलमानों के अनुसार वे मुसलमान के है। ये लड़ाई तुम्हारे लिए नहीं बल्कि दो सम्प्रदायों की है।
कितनी अभागी हो तुम! सच कहूँ तो आज मुझे तुमसे ये छल करते हुए भी शर्मिंदगी हो रही है। पर सच यही है यहाँ लड़ाई तुम्हारे लिए नहीं है। और लड़ाई तुम्हारे लिए हो भी कैसे सकती है? क्योंकि तुम तो एक लड़की हो..............................
मैंः सही कहते हो ‘छल’ तुम। ये लड़ाई मेरे लिए नहीं हो सकती। क्योंकि मैं एक लड़की हूँ..........................
मेरे लिए कोई समाज आगे नहीं बढ़ता। क्योंकि मैं एक लड़की हूँ..........................
मेरे लिए किसी की आँखों में आँसू नहीं आते। क्योंकि मैं एक लड़की हूँ.......................
मेरी पीड़ा किसी के लिए पीड़ा नहीं है। क्योंकि मैं एक लड़की हूँ..........................
मैं सिर्फ एक उपभोग की वस्तु बनकर रह गई हूँ। क्योंकि मैं एक लड़की हूँ................
पर यदि वास्तव में मेरा लड़की होना इतना बड़ा अभिशाप है तो क्यों आज समाज मेरे माँ, बेटी, बहन और बहु के रूप का कोई विकल्प नहीं ढूँढ़ लेता? वह मुझे इन रूपों में भी चाहता है और मेरे अस्तित्व भी समाप्त करना चाहता है। आखिर कब मुझे इस दोहरी मानसिकता वाले समाज से मुक्ति मिलेगी? आखिर कब???

8 comments:

Unknown said...

haalaanki ladki ki sthiti itni kharaab to nahin hai, jitni aapne varnit ki hai fir bhi chhal to hai..........aur ye chhal khatm ho..iski kaamna main bhi karta hoon.....

umda post......

padh kar achha laga

Neeraj Tomer said...

aapke comment k liye bhut bhut dhanaywad sir. kshama chahungi ki ki aapki baat se asahmt hu. ldkiyo ki sthiti isse bhi khi adhik khrab h. aap jin ldkiyyo ki klpna kr rhe h ve smppan privaro ki a.c. me baithi hui ldkiyan h jinhe dekhkr aaj ka bhramit smaj khta h ki "aadhi aabadi" ka vikas hua h. ytharth aaj bhi jhuggiyon me, mdhyam vrgiye smaj me siskiyan le rha h.

Neeraj Tomer said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

नही मिलेगी मुक्ति.कभी भी नही तुम्हारी शारीरिक संरचना सबसे बड़ा वरदान है तो भयावह श्राप भी. पैदा होते ही कोई दहेज नही मांग लिया तुमने,फिर भी सबके मुंह उतार जाते है क्षण भर के लिए ही सही एक बार तो खुशी नही होती तुम्हारे जन्म के नाम पर. हर पल भेडीयों से बचाने की चिंता जाने कब नोच खायेंगे तुम्हे.फिर...शादी के बाद लालची लोगों के हाथ ना पड़ जाओ.तुम्हारे साथ हर बार किसी ना किसी रूप में अत्याचार किया है समाज ने.डरती हूँ ...जन्म नही देना चाहती तुम्हे...तुम्हरे पैदा होने से जब तक तुम अपनी दुनिया में रच बस नही जाती इन सब की चिंता से बेहतर लगता है कि कुछ देर का दर्द सह लूं और ...गर्भ में खत्म कर दूँ तुम्हे. ना कहो हम किसी से कम नही .पढाई लिखाई ,पैरों पर खड़ा होने के बाद भी चारदीवारी के भीतर देखा है मैंने तुम्हे पिटते प्रताडित होते.बाहर मुस्करा कर दिखाती हो तुम ...कि तु दुनिया की सबसे ज्यादा खुशकिस्मत सुखी पत्नी,बहु माँ हो. इसलिए मुझे तुम्हारे गर्भ में हत्या कर दिए जाने का कत्तई अफ़सोस नही.सुन रही हो तुम? सब सुन रहे हैं? आदर्श्वादी बाते करने वालों को अकेले मिल जाओगी न तो.... वो छोड़ देंगे तुम्हे? हाथों से नही तो नजरो से भेद देंगे तुम्हे.
तुम्हारे खूबसूरत भावुक मन को कौन समझेगा यहाँ? तुम्हारे प्यार को कदम कदम पर छलेंगे..इसलिए बेहतर है तुम मर जाओ.तुम्हारा तिल तिल मरना मैं नही देख सकती.समझी तुम?जाओ मेरे पड़ोसी के घर जन्म ले लो भले ही.

kanupriya said...

is baat main koi doumat nahi ki ladkiton ki sththi kharab hai.par sirf aadha gilas mat dekhiye kahi na kahi sudhar bhi hua hai.bahut accha lekh hai neeraj ji apka.wese jinki sththi main sudhar hua hai wo ladkiyan bhi kahi na kahi kuch bhog hi rahi hai.....

M. Afsar Khan said...

sundar rachna
aapko dheron badhai,

Neeraj Tomer said...

aap sbhi ki pratikriyao k liye mai aabhari hu. Indu mam aapne ldkiyon ki vartman dainiye istithi ko bhaut sundr dhang se varnit kiya h. kaanupriya mam aap shi khti h aadha gilas jroro bhara h prantu whan tk ka sfar kitna kashto se bhra h ye aap aur hm bhlibhati smjhte h. kai gilaso k pani ki swachta bhi sandigdh h.

Neeraj Tomer said...

afsarpathan sir ami aapka bhi shukriya ada krti hu ki aapne is khani k bhavo ki anubhuti kr apni samvednao ko yha vyakt kiya