एकता कपूर बड़े परदे पर हाथ आजमाई और फ़िल्म बनाई रागिनी एमएमएस. फ़िल्म को सेंसर बोर्ड ने ग्रेड दिया 'ए'. नाम देखकर ऐसा लगा कि फ़िल्म में ब्लर ही सही कुछ न कुछ दिखाया जायेगा, ज्यादातर दर्शक यही सोचकर फिल्म देखने गए. मैं भी सिनेमा देखने गया, पत्नी के साथ. पूरी फ़िल्म देखी.
फ़िल्म देखे एक सप्ताह होने को है. सोचते सोचते परेशान होकर सोचना छोड़ दिया कि एकता कपूर ने क्या सोचकर फ़िल्म बनाई और लोगों को फ़िल्म के माध्यम से क्या मैसेज देना चाहती है. फ़िल्म में भूत और एमएमएस को मिलाने का जो फार्मूला उन्होंने लगाया वो मुझे समझ में आ गया. एक कहावत है शादी के लड्डू जो खाए सो पछताए जो न खाए वो ललचाये, फ़िल्म भी वैसे ही है न देखो तो मन ललचाये और देख लो तो पछताना पड़ेगा.
फ़िल्म देखने के बाद ऐसा लगा कि मैंने पैसा और समय ही बर्बाद ही नहीं किया बल्कि अपने दिमाग का बेजा इस्तेमाल कर लिया. काश दिमाग कहीं और लगाया होता तो कुछ न कुछ तो अच्छी बात होती ही.
देश में १२००० एकल पर्दा है और ७०० से ज्यादा मल्टीप्लेक्स हैं, एक एक सप्ताह करके भी अगर सभी पर्दों पर रागिनी एमएमएस दिखलाया जायेगा तो न जाने कितना पैसा, समय और दिमाग फिजूलखर्च में बर्बाद हो जायेगा. इसका अंदाजा एकता कपूर को क्यूँ नहीं है. ये फ़िल्म बनाकर देश का करोड़ों रुपये एकता कपूर ने बर्बाद करा दिया. काश छोटे परदे वाला दिमाग यहाँ न लगाई होती!
24.5.11
फ़िल्म बनाकर देश का करोड़ों रुपये एकता कपूर ने करा दिया बर्बाद
Labels: एकता कपूर, दीपक raja, रागिनी एमएमएस
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment