-रवि कुमार बाबुल
आजकल प्रेम के मायने ही बदल गये है। वह चाहना छोड़कर अब सिर्फ पाना हो चला है, अगर जिसे पा लिया वह प्रेम है, और अगर जिसे नहीं पा सके तो बर्ताव ऐसा कि जैसे कभी उसे चाहा ही नहीं था? और फिर ऐसे में इस स्थिति को देखने वाले भला कहां समझ पायेगें यह सब? प्रेम में डूबकर या उतराकर व्यक्ति जब खुद का दिल-दिमाग दोनों ही नहीं समझ पाता है और न ही देख पाता हैं? अतिथि देवो भव: के इस युग में जो आया उसका स्वागत हुआ, जो छोड़ गया या छूट गया उसे कभी याद रखने की जहमत ही नहीं उठायी गयी? सच-झूठ, सही-गलत, विश्वास-फरेब जब प्रेम का हिस्सा बन चलें हों, और इसी के आसरे रिश्ता भी? तब ऐसे में भला इस प्रेम को आर्चीज या हॉलमार्क प्रेम से क्यूं न देखते और कार्ड के आसरे बिकते प्रेम को बाजार बनाते?
प्रेम सदैव कुछ कहने की नहीं, महसूस करने की हिदायत देता है, लेकिन जब रिश्ते कह कर, तय शर्तो पर स्वीकारें जाते, और निभाये जाते हों? यत्र-तत्र बिखरा प्रेम शेयर बाजार की तर्ज पर नफा-नुकसान के आसरे पास और दूर जाता हो, तो फिर अगर आर्चीज या हॉलमार्क को ऐसे में ही यह यकीन हो गया हो कि बेजुबान प्रेमियों को महंगे और सस्ते कार्डो के जरिये, गहरा और हल्का प्रेम जताने के लिये उसकी यानी प्रेम की तरह ही बिकने या बेचने की जब जरूरत आन पड़ी है, तो भला ऐसे क्षण में वह क्यूं नहीं प्रेमियों के साथ होता? कार्ड छापने वाली कम्पनियों ने ढेरो कार्ड छापे हों, राखी के दिन छोड़ कर रोज यह कार्ड धड़ल्ले से बिकते भी है, जी... जरूरी नहीं है कि 11 फरवरी प्रपोज-डे, या 14 फरवरी वेलेण्टाइन-डे का इंतजार किया जाये?
लेकिन जनाब... कम्पनी जानती थी, कि अगर गर्ल फ्रैण्ड को दिये जाने वाले कार्ड, और राखी के दिन भाइयों के हाथ बहिनों के लिये, खरीदे जाने की उम्मीद में बेचने के लिये रखे गये कार्ड, भावनाओं से इतर, जो साईज और कीमत में एक से दिखतें हंै अगर राखी के दिन बिना बिके ही रह जाते हैं तो कोई बात नहीं। जनाब... यह बिकेगें जरूर? हॉलमार्क या आर्चीज को यह यकीन यूं ही नहीं था, उन्हें पता था कि जब उनकी दुकान से खरीदा गया प्रेम खरीदने की चाह लिये कोई कार्ड किसी नाकाम प्रेम का दस्तावेज बन जायेगा तब नाकाम प्रेमियों के रिश्ते को भाई-बहन में बदलने के लिये इन कार्डो की जरूरत जरूरत आन पड़ेगी? जी... बहन को दिया जाने वाला कार्ड प्रेमिका को दिये जाने वाले कार्ड की जगह ले लेगा, अमूमन जो साईज और कीमत में एक जैसा ही होता हैं?
शहर को सुन्दर बनाने की जिद् में हाइकोर्ट स्थित आर्चीज गैलरी को भले ही जमीं दोज कर दिया गया हो, खाप में खपाने का दुस्साहस जुटाने वाले या प्रेमिकाओं के डुपट्टे में कूंदा-फांदी करने वाले तमाम सेनाओं की निगेहबानी से बे-परवाह प्रेमियों के बीच कार्ड का जो महत्व है शायद उसी वजह से आज भी तमाम रिश्ते इधर से उधर होते हुये आसानी से देखे जा सकते है।
शायद यही वजह है कि राखी के दिन छोड़कर, राखी के कार्ड साल भर खरीदे जाते है, और अजीब इत्तेफाक है कि वेलेण्टाइन-डे को छोड़ कर प्रेम भी साल भर बिकता रहता है एक कार्ड के आसरे। सच तो यह है कि प्रेम घाटे का सौदा रहा ही नहीं कभी, किसी भी चीज पर प्रेम का मुल्लमा चढ़ा कर इससे अपनी तिजोरी भी भरी जा सकती है और मन भी। पर दिल की बात न कीजियेगा, दिल तो बच्चा है जी...।
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