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30.5.11

भारत और स्वदेशी , कितना संभव

देसी विदेशी , एक मनोरंजक चर्चा.

चर्चा शुरू हुई : इस विषय से :

ॐ सनातन परमोधर्म ॐ जो लोग भारतीय राष्ट्रवाद का दंभ भरते हैं और पाखंड रचते हैं, वे भी आज वृहत्तर भारत और अखंड भारत की हितचिंता से कोई सरोकार नहीं रखते और विदेशियों का साथ देते आसानी से देखे जा सकते हैं।

फिर होते होते यहाँ तक पहुंची .
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आदरणीय डा साहिब,

आपके देश प्रेम के सामने मैं नतमस्तक हूं.

मेरा निवेदन इतना मात्र था , कि जीविका के लिए मैं जरूर विदेश व्यापार कर रहा हूं, पर यथासंभव अपने देश का लाभ ही ऊपर रखने का प्रयास रहता है, अपना माल अधिक से अधिक मूल्य पर बेचना व उनकी चीजें कम कीमत पर लाने का प्रयास ही रहता है , और मैं यह व्यापार करके यथासंभव देश के मुनाफे को गलत लोगों के हाथों से बचाने का प्रयास ही करता हूं.

पर सरकारी लोग व नेता हमारे जैसे लाख प्रयासों को अपने एक सोदे से ही बराबर कर देते हैं.

इसके लिए हमें सब लोगों को जागरूक करना परेगा .

जब तक आप जैसे बुद्धिजीवी आगे नहीं आयेंगे , इस देश को बचाना कठिन है .

आपका
अशोक गुप्ता,
दिल्ली
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2011/5/30 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>
स्वयं का विदेश से व्यापार करना या विदेशी वस्तुयें जो आपके पास उपलब्ध नहीं हैं उनका प्रयोग करना ( यद्यपि यथासम्भव विदेशी वस्तुओं के प्रयोग से बचना चाहिये) एक अलग बात है..... विदेशी कम्पनी जो अपने यहां आकर धन्धा कर रही है वह तो आपके देश के धन का शोषण करती ही है और कुछ हिस्सा आपको देती है अत: निश्चित ही आप भी भागीदार हुए....निश्चय ही आपने सही कहा...यद्यपि एलोपथिक दवायें सब देश में ही बनती हैं...एलोपथिक ग्यान का उपयोग होता है...परन्तु वास्तव में ही यह आदर्श स्थिति नहीं है......हमें निश्चय ही आयुर्वेदिक तन्त्र का विकास करना चाहिये जिससे अरबों-अरबों की मुद्रा की बचत होगी.....परन्तु यह आज़ादी से पहले की व तुरन्त बाद बात है जब हमारे पास अधिक विकल्प नहीं थी और हम तीब्र विकास के राही थे.....आज स्थित अलग है हम विदेशी वस्तुयें...धन...सन्स्क्रिति...विचार...कम्पनियों को बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं..

आदरणीय डॉक्टर साहिब ,

यदि मेरी कम्पनी विदेश व्यापार करती है , तो इसमें गलत क्या है , हमारी सेनाएं बिना विदेशी हथियारों के बेकार हैं. आपकी कार में विदेशी पट्रोल डलता है . यह जी मेल विदेशियों के द्वारा चलाया जा रहा है .

यदि आप डाक्टर हैं तो विदेशी दवाइयों से ही इलाज कर रहे होंगें.

मेरा फोन नं . ९८१०८ ९०७४३ है, यदि आप देना चाहे तो अपना नंबर लिखिए, तो चर्चा करके शायद में कुछ जान पाऊं , जो मुझे अभी तक ज्ञात नहीं है .

भवदीय
अशोक गुप्ता
दिल्ली
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2011/5/29 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>
आपके पते व पद वर्णन से नहीं लगता कि आप स्वतण्त्र व्यापारी हैं अपितु बहुराष्ट्रीय कं में सेवा-योजित होने का भाव लगता है।


2011/5/29 arun gupta <richmond.intel@gmail.com>
आदरणीय डॉक्टर साहिब,

मैं पिछले ३० वर्षों से विदेशों के साथ व्यापर कर रहा हूं. विदेश व्यापार करना कोई देश को लुटाना नहीं है. सत्य नारायण की कथा में भी विदेश व्यापर का जिक्र है.

आपसे बात करके खुशी होगी .

अशोक गुप्ता
दिल्ली


2011/5/26 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>
-----आप स्वयं एक बहुराष्ट्रीय क. में कार्य रत होकर विदेशी कम्पनी को देश की सम्पदा समेटने में सहयोग दे रहे हैं.....


2011/5/25 arun gupta <richmond.intel@gmail.com>
आदरणीय डा साहिब

मैं समझा नहीं मेरी किस बात पर आपने यह कोममेंट्स किया है.

धन्यवाद

अशोक गुप्ता , दिल्ली

2011/5/24 Dr shyam gupt <drshyamgupta44@gmail.com>
Then why the hell you are working for a videshee firm...to help them to extrect money from your country by helping these corrupt people, to make them more corrupt.

2011/5/23 arun gupta <richmond.intel@gmail.com>


आदरणीय जमाल भाई ,


क्या इस विषय में आप अपने विचार लिखेंगे / भेजेंगे

शुक्रिया

अशोक गुप्ता

danger to hindus from muslims or from within themselves ?हिंदू को खतरा मुसल्मानूं से या हिंदुओं से

हिंदुओं को खतरा मुसलमानों से या अपने अंदर की मूर्खता से !


यह नीचे लिखा लेख हिंदुओं को मुसलमानों की बढ़ती आबादी से खतरे के बारे में है.

मगर मेरा यहाँ कहना है कि मुसलमानों में कितने आतंकवादी होंगें.

वे कितना नुक्सान कर पाएंगे .

मगर, ये जो नेता और I A S की फ़ौज हिंदुओं व देश का नुक्सान कर रही है , वह तो मुसलमानों के नुक्सान के आगे नगण्य है.

आप क्या कहते हैं.

दूसरा सबसे बार नुक्सान उस जनता से है जो नाम से , पैदाइश से , तो हिंदू है , पर न तो वो हिंदू हैं . न मुसलमान , वे केवल हिंदुइ़त के नाम पर कलंक हैं.

न तो वो हिंदू के हैं , न देश के.

वे अपनी खुद की हवस के लिए , हिंदुओं को , अपने देश को , अपने जमीर को ( जो है ही नहीं ) बेचे हुए हैं.

ये कलमाड़ी , राजा , करूणानिधि , उसी प्रकार के जैचंद व हिंदू हैं.

इसका इलाज यह है कि यदि कुछ बुद्धिजीवी हिंदू संत या नेता बचे हों तो वे हिंदुओं को वास्तविक हिंदू बनाने का अभियान युद्ध स्तर पर छेरें .

और इन हिंदुओं से मुसलमानों को डरने की जरूरत न होगी. क्योंकि उन हिंदुओं का विश्वास अपने असली धर्म , में , भगवान में, श्री गीता जी में होगा .

जो कहती है कि अन्याय, अत्याचार नहीं सहेंगे , मगर हर जीव में भगवान को देखेंगे. (गीता अध्याय ५ श्लोक १८ :

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥५- १८॥

ज्ञानमंद व्यक्ति एक विद्या विनय संपन्न ब्राह्मण को, गाय को, हाथी को, कुत्ते को
और एक नीच व्यक्ति को, इन सभी को समान दृष्टि से देखता है।

आप क्या कहते हैं, मैं कितना गलत हूं !

1 comment:

तेजवानी गिरधर said...

चर्चा तो काफी सार्थक है, इससे कम से कम स्वदेशी की रट लगाने वालों को तो कुछ अक्ल आएगी, विशेष रूप से उन स्वदेशी भक्तों को अक्ल आनी चाहिए, जो उपयोग में तो विदेशी वस्तुएं लाते हैं और दिखाने मात्र के लिए स्वदेशी पर भाषणबाजी करते हैं