रविकुमार बाबुल
ग्वालियर शहर को विकास के बहानेे भुज बना दिया गया और टैक्स में जनता से उगाहे गये पैसों के दम पर ठेकेदार से मिल-बांट कर, शहर में तमाम सड़कें बना दी गईं। चिकनी सड़कों पर चमचमाती कार में बैठ, फर्राटे मारते युगल जोड़ों को देख कर सहसा उनके नसीब को पढऩे का जी हो उठता है, लेकिन तभी जीवाजी विश्व विद्यालय के दीवार के सहारे बने फुटपाथ पर रेंगने वाला जोड़ा उनका नसीब पढऩे के चक्कर में बार बार उस टेम्पो का नम्बर ही पढऩा भूल जाता है, जो उन्हें ढ़ोकर उस जगह छोड़ दें, जहां यह दोनों भी अपने भविष्य को गढ़ सके? कार में सवार बाला को उसके प्रेमी ने भले ही अपनी अमीरी के रूबाव के चलते सिर से नख तक अर्धनग्न फैशन से ढांक दिया हो, लेकिन दौलत के जुनून में या फिर इश्क के सुरूर में वह सिटी सेन्टर स्थित कॉफी-डे की सीढ़ीया मुश्किल से लांघ पायी, और उसके वहां डले सोफा पर बैठने की स्टाइल देखकर तो ऐसा लगा कि जैसे वह सिटी ट्रान्सपोर्ट की किसी बस का इंतजार, बस-स्टॉप में रखी सीमेन्ट की उन सरकारी कुर्सियों पर बैठ कर रही हो, जिस पर प्यार-मुहब्बत के तमाम दु:ख-दर्द लिखे मिल जाते हैं, पढ़ कर टाईम पास करने के लिये? जी... सच है यह कि जब किसी को अमीरी का साइड इफैक्ट होता है तो ऐसा ही दृश्य देखने को मिल जाता है? लेकिन टेम्पों के सहारे जिस चौपाटी पर जाकर अपनी मुहब्बत को आलू के भल्ले की तरह कतरा-कतरा करके खाना है या पाना है, वह चमचमाती कार में बैठ कर इश्क करने वाले भला क्या जाने? सच कहा जाये तो आर्थिक विषमता प्रेम के मायने को ही जब बदल कर रख दे, तब यह तय हो चलता है कि चौपाटी का प्रेम शायद सदैव साथ रहेगा। क्योंकि दोनों ने ही अपनी-अपनी जरूरतों को कम करके, जोड़े गये एक रूपये के कलदार से कुछ पल के ही लिये सही आज का जश्न तो मनाया। चौपाटी में मनाये गये इस जश्न के हिसाब के रुप में, जब बांट कर खाये गये एक आलू भल्ला का बिल चाट वाले को सांझे में अदा किया जाता है तब दोनों ही अपने-अपने हिस्से का नसीब सिक्कों की शक्ल में गिनते है। और जब वह दूसरे की हथेली पर यह सिक्का रखते है, तो यह सिक्का नहीं पूरा का पूरा एहसास, एतबार और विश्वास होता जो सिक्के की शक्ल में दूजे को सौंप देते हैं? जी... इसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि हथेली छूकर मुहब्बत को सदियों तक अपने करीब रखा जा सकता है? लेकिन जब अपने इश्क के सामने जींस के बैक पॉकेट से पर्स निकालकर बिल चुकाया जाये और वापसी के पैसों को छूने से परहेज करते हुये टिप की रस्म अदायगी की जाये, तब लगता है सिर्फ प्रेम को छोड़, किसी का पूरा जिस्म आसानी से पाया जा सकता है, लेकिन उस हथेली की-सी मुहब्बत नहीं? यह अलग बात है कि किसी का चिल्लर जोड़कर आलू भल्ला खाना तो किसी का कोल्ड कॉफी पीकर टिप दे जाना इश्क का नसीब तो कहा जा सकता है, लेकिन इसे इश्क का इम्तिहान तो नहीं माना या कहा जायेगा? पर समझ नहीं आता है कि अक्सर इस इम्तिहान में कार वाले क्यूं फेल हो जाते है? सड़क पर कभी ऐसे जोड़े को देख खुद को गाईड मान कर देखियेगा, आपको यकीन हो चलेगा कि इस पर थीसीस तो लिखी जा सकती है?
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