
सिर्फ तेरा ही उमड़ना ,
देखने की जिद हमें थी ,
डूबकर तुझमें उतरना
पूरे काव्य संग्रह में लिखी हर कविता में वो सब है जो साधारण कवि की कल्पना से अक्सर बाहर ही होता है .. जिंदगी भर के संघर्ष, प्यार,नफरत, और सहन शीलता की झलक है इसमें..
आप किताब की भूमिका पढेंगे तो आपको एकबारगी लगेगा कि यह किताब मात्र एकतरफा ही होगी जो कवि के जीवन को ही गौरवान्वित करने का प्रयत्न करेगी.. लेकिन आपको काव्य रचनाये पढते समय भूमिका को भूलना पड़ेगा.. क्योकि भूमिका में कवि ने अपने जीवन की उन घटनाओं का उल्लेख किया है जिसने हर हल , हर समय कवि के जीवन को झकझोर दिया है ... यह किताब पढते वक्त आपको कवि के पूरे जीवन के अनुभव कि झलक मिलेगी ...
खास बात यह है कि इस किताब को लिखने एवं सारी घटनाओं को कलमबद्ध करते - 2 , अपने नए सुख-दुःख- प्यार-नफरत को पिरोते हुए ३ दशक लंबा वक्त लगा है...

मैंने कुछ ही कविताएं अभी तक पढ़ी है कुछ ही इस लिए कह रहा हूँ कि एक दो अभी शेष बची है. सम्पूर्णता लिए इस काव्यग्रंथ को जबतक पूर्ण रूप से पढ़ न सकूंगा तब तक शायद जिंदगी के गूढ़ अनुभवों को अनुभव न कर सकूंगा इसीलिए ...मैंने कुछ ही कविताएं कही है ... (कविताओ को पढकर जिंदगी की सम्पूर्णता पर बहस की जा सकती है, कि कैसे कैसे स्वरुप है प्यार के, प्यार भरे संघर्ष के.. जो जीवन के चरित्र को रोमांचित कर देती है .अभी तक मेरे द्वारा पढ़ी गई प्रेमकाव्यग्रंथों में से सर्वश्रेष्ठ)
मेरी नज़र में यह निर्विवाद रूप से बेहद उम्दा काव्यग्रंथ है.. हम यह नहीं कह सकते कि कौन सी कविता ज्यादा अच्छी है.. और पढ़ना शुरू करने के बाद चाहकर भी हम इससे दूर नहीं भाग सकते . क्योकि इन कविताओ में जीवन का रोमांच छिपा हुआ है. ,
मैंने इसे अपने ब्लॉग पर इसलिए भी लिखा है क्योकि मेरी नजर में जीवन के सुख-दुःख प्यार नफरत को कविताओं में माध्यम से जीवंत करने का इससे बेहतर नजरिया हो ही नहीं सकता.. आखिर इसीलिए तो माना जाता है कि "जीवन एक संघर्ष" है जिससे जीत हासिल करना और जीत हासिल करके भी न जीतना … सबकुछ सीखना पड़ता है ..
(मेरी यह टिप्पणी अयन प्रकाशन (महरौली) द्वारा प्रकाशित "गीतों के बादल" पुस्तक के लिए है .. जिसके रचनाकार श्री तुषार देवचौधरी जी है, किताब का अंकित मूल्य ३५० रुपये है .. बेहतरीन कृति के लिए तुषार जी को हार्दिक बधाई..)
1 comment:
शुक्ला जी का धन्यवाद इस खबर के लिए.
पुस्तक का एक पॉकेट बुक संस्करण (सस्ता) भी होता तो बहुत लोग पढ़ पाते .
अशोक गुप्ता , दिल्ली
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