अतुल कुशवाह
मुम्बइया सिनेमा को इन दिनों पंख लग गए हैं. वह हवा के रथ पर सवार अपनी अनगढ़ कहानियों के सपने सात समंदर पार बेच रहा है और चंहु ओर रुपये धुन रहा है. काले-गोरे, पढ़े- कम पढ़े, बच्चे- बूढ़े, अमीर-गरीब सभी हिन्दुस्तानी रुपहले परदे के इस जादू से खुश हो तालियाँ बजा रहे हैं.
मुम्बइया फिल्में उस गरम मसाले की तरह चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैण्ड, में चर्चित हो रही हैं, जिसने कभी पूरी दुनिया को अपने स्वाद की चपेट में ले लिया था. हिन्दुस्तानी फिल्म उद्योग की दिन दूनी रात चौगुनी बढती तरक्की की वजह आज भी हिंदी फिल्मों का जमीनी लगाव है.
अंगरेजी फिल्मों से इतर आज भी मुम्बइया फिल्मों में न तो तकनीक की मारामारी है और न ही स्टंट का वह खेल जिस पर स्पाइडरमैन से लेकर जुरासिक पार्क तक के रीयल से लगने वाले रील कारोबार ने कब्ज़ा जमा रखा है. हमारी फिल्मों में आज भी समाज जिन्दा है, बड़े परिवार जिन्दा हैं, सामाजिक बुराइयाँ - भ्रष्ट राजनीति और उन सब पर पार पाने वाला हीरो जिन्दा है. संगीत आज भी हमारी फिल्मों की जान है. मलाइका मल्लिका के लटके झटके अब भी उतने ही मौजूं हैं जितने कभी हेलन व् बिंदु के थे.
बड़ा कैनवास, खूबसूरत विदेशी लोकेशन, हसीन हीरोइनें, मीठी नोंकझोंक और अच्छी कहानी के बीच हमारे फिल्मकारों ने मार्केटिंग भी सीख ली है. याद करिए 'लगान' के आस्कर नामिनेशन के वक्त आमिर खान द्वारा फिल्म के फेवर में की गई लाम्बिंग को. फिल्म ने आस्कर अवार्ड भले ही नहीं जीता, पर रुपयों की बरसात से प्रोड्यूसर की झोली लबालब भर गई. 'देवदास', 'ब्लैक', 'हम दिल दे चुके सनम' वीरजारा, कल हो न हो, वाटर, कहो ना प्यार है से लेकर प्रोवोक्ड और क्रश तक हिन्दुस्तानी सिनेमा ने जितनी शोहरत अपनी धरती पर कमाई, उस से कहीं ज्यादा विदेशों में कमाई.
इस वजह से ऐश्वर्या राय, रानी मुखर्जी, प्रीती जिंटा, शिल्पा शेट्टी, बिपाशा बासु, नंदिता दास, काजोल से लेकर शाहरुख़ खान, सलमान खान, आमिर खान, संजय दत्त, सैफ अली खान और जान अब्राहम की पहचान देश के साथ-साथ विदेशों में भी बनी. बतौर फ़िल्मकार करण जौहर, रवि चोपरा, संजय लीला भंसाली, महेश भट्ट की पोपुलैरिटी किसी भी तरह से विदेशों में राज कपूर और गुरुदत्त से कम नहीं है.
'चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो'......''से लेकर 'चाँद सिफारिश जो करता हमारी.....''जैसे सुरीले गानों की शोहरत देश की सरहद को पार कर गई.
आखिर क्या है वजह मुम्बइया फिल्मों के इस उछाल की? दरअसल, देश में बढ़ते माली बदलाव, घरों में टेलीविजन की घुसपैठ, बेहतर पढाई-लिखाई, डाक्टरी व् कंप्यूटर से जुडी नौकरियों की विदेशों में भरमार ने हिन्दुस्तानियों को दुनियाभर में फैला दिया. पहले जहाँ हजार -दो हजार लोग कारोबार की तलाश में विदेश जाते थे , उस से कई गुना ज्यादा तो अब पढाई के लिए चले जाते हैं. सिंगापूर, दुबई, बंगकोक, अबूधाबी, पर्थ, एम्सतर्दम, यार्कशायर, सिडनी, मास्को. न्यू यार्क, वाशिंगटन, ओहियो, कैलिफोर्निया, ह्यूस्टन, लन्दन, पेरिस, जोहान्सबर्ग, तक शायद ही कोई जगह हिन्दुस्तानियों की पहुँच से अछूती हो.
हिन्दुस्तानी जहाँ भी गए अपने साथ अपना संगीत, सिनेमा, खानपान औए संस्कृति भी लेते गए. इसीलिए हिन्दुस्तानी फिल्में जितना कारोबार देश में करती है उससे कुछ ही कम विदेशों में. विदेश यानी ओबरसीज के फिल्मों के राइट भी एकमुश्त बिक जाते हैं. यूरोप, अमेरिका व् आस्ट्रेलिया के साथ-साथ अरब देश
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