मित्रों,जब हिटलर को मरे कई साल बीत गए तब उसकी शासन-प्रणाली पर आदत से लाचार भाई लोगों ने शोध करना शुरू किया.अब तक बेचारे नाख़ून क्यों बढ़ते है,हजामत का पैसा कैसे बचाया जाए;जैसे बेकार के विषयों पर शोध करते चले आ रहे थे.हिटलर का शासन नया विषय तो था ही रोमांचक भी था.लेकिन हर किसी के पास पैसा होता कहाँ है जो जर्मनी की अध्ययन-यात्रा कर सके और हर किसी की सत्ता तक पहुँच भी नहीं होती जिससे सरकारी पैसों पर बर्लिन में बैठकर गुलछर्रे उड़ा सके.मैं बचपन से ही सुनता आ रहा था कि ईश्वर बड़ा दयालु है.अब विश्वास भी करने लगा हूँ.क्यों न करूँ विश्वास?अगर वह दयालु नहीं होता तो गरीब शोधार्थियों पर कृपा करके भारत में हिटलर का अवतरण नहीं करवाता.आप सोंच रहे होंगे कि वर्तमान भारत के किस महामानव को स्वनामधन्य हिटलर का अवतारी होने का सौभाग्य प्राप्त है तो इसके लिए दिमाग के न्यूरोन्स पर ज्यादा दबाव डालने की जरुरत बिलकुल भी नहीं है.हिटलर का भारतीय संस्करण होने का सौभाग्य किसी और को नहीं मिला है;मिल भी नहीं सकता.वे महामहिला हैं बहुजनवाद से सर्वजनवाद तक सारे वादों की तेज राजनैतिक यात्रा करनेवाली माननीया मायावती.
मित्रों,भारतीय गणतंत्र के सभी राज्यों को संविधान की नौवीं अनुसूची और प्रथम संविधान संशोधन के द्वारा यह अधिकार प्राप्त है कि राज्य सरकार जब चाहे जनहित में किसी की भी जमीन का अधिग्रहण कर सकती है.यह अधिकार अपरिमित है और इसे न्यायालय में चुनौती भी नहीं दी जा सकती.सौभाग्यवश आज तक सारी राज्य सरकारें इसका उपयोग सिर्फ जनहित में करती आ रही थी.बहनजी की बड़ी-सी खोपड़िया में यह आईडिया सबसे पहले आया कि इस अधिकार का दुरुपयोग कर अगर कृषि-योग्य भूमि को बिल्डरों के हाथों में सौंप दिया जाए तो बहुत सारा माल बनाया जा सकता है.सो लगा दी बुद्धि और छीन ली नोयडा से आगरा तक सड़क किनारे बसे सभी किसानों की जमीन कौड़ियों के सरकारी दाम पर और दे दिया जे.पी. कंपनी को बाजार भाव पर बेचने के लिए.कहना न होगा कि बढती जनसँख्या के चलते इस समय रियल स्टेट क्षेत्र सबसे ज्यादा फायदा पहुँचाने वाला क्षेत्र बन चुका है.अब दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री भी पैसा कमाने के लिए इस फ़ॉर्मूले का उपयोग करते हैं या नहीं यह तो समय ही बताएगा.इस महाघमंडी नेता को जनता की रत्ती-भर भी चिंता नहीं है.यह सरकारी दाम पर अधिग्रहण का विरोध करने पर किसानों पर गोलियां चलवा देती हैं;घरों और खेतों को जलवा देती है.यहाँ तक कि इसके पुलिसवाले घायल किसानों की तस्वीर लेने की कोशिश करने पर बी.बी.सी. रिपोर्टर राजेश जोशी पर भी राईफल तान देते हैं.यानि यह माया के पीछे भागनेवाली स्वनामधन्य देवी सत्ता के बल पर किसानों से जीने का अधिकार तो छीन ही रही है;पत्रकारों की अभिव्यक्ति के अधिकार का भी इसके मन में कोई सम्मान नहीं.
मित्रों,मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि एक बार किसी राज्य की रानी नदी किनारे स्नान करने जाती है.जाड़े का समय रहता है इसलिए खुले में नहाने के चलते थर-थर कांपने लगती है.वह बिना कुछ सोंचे-विचारे अपने अंगरक्षकों को नदी किनारे स्थित झोपड़ियों में आग लगाने का आदेश देती है और उसके ताप से अपने को सेंकती है.जब राजा को इस घटना के बारे में पता चलता है तो वह आगबबूला हो जाता है और दंडस्वरूप रानी को झोपड़ियों के निर्माण में श्रम करने की आज्ञा देता है.इस कहानी में तो रानी को नियंत्रित करने के लिए एक राजा था लेकिन इस लोकतंत्र की बेलगाम देवी को कौन दंड देगा?प्रजातंत्र में राजा तो होता ही नहीं और प्रजा अगर इतनी ही समझदार होती तो इसे कुर्सी पर बिठाती ही क्यों?उधर केंद्र सरकार भी जानबूझकर कुछ न देख पाने का बहाना कर रही है;न तो भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित संवैधानिक धाराओं में ही संशोधन कर रही है और न ही उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन ही लगा रही है.वह ऐसा कर भी कैसे सकती है?उसकी सरकार को समय-समय पर बचाने में यह जालिम मदद जो करती रही है.अभी पी.ए.सी. रिपोर्ट मामले में भी तो बसपा ने केंद्र की भ्रष्टतम सरकार का साथ दिया.ऐसे में उत्तर प्रदेश के लोगों को इस अत्याचारी से सिर्फ नारायण ही बचा सकते हैं.हाँ,जो भाई अर्थाभाव के कारण जर्मनी जाकर हिटलर के शासन और उसके शासन में जनता की स्थिति का अध्ययन कर सकने में असमर्थ हैं वे निश्चित रूप से एक बार यथाशीघ्र उत्तर प्रदेश की शोध-यात्रा कर लें;यक़ीनन उन्हें निराश नहीं होना पड़ेगा.
मित्रों,मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि एक बार किसी राज्य की रानी नदी किनारे स्नान करने जाती है.जाड़े का समय रहता है इसलिए खुले में नहाने के चलते थर-थर कांपने लगती है.वह बिना कुछ सोंचे-विचारे अपने अंगरक्षकों को नदी किनारे स्थित झोपड़ियों में आग लगाने का आदेश देती है और उसके ताप से अपने को सेंकती है.जब राजा को इस घटना के बारे में पता चलता है तो वह आगबबूला हो जाता है और दंडस्वरूप रानी को झोपड़ियों के निर्माण में श्रम करने की आज्ञा देता है.इस कहानी में तो रानी को नियंत्रित करने के लिए एक राजा था लेकिन इस लोकतंत्र की बेलगाम देवी को कौन दंड देगा?प्रजातंत्र में राजा तो होता ही नहीं और प्रजा अगर इतनी ही समझदार होती तो इसे कुर्सी पर बिठाती ही क्यों?उधर केंद्र सरकार भी जानबूझकर कुछ न देख पाने का बहाना कर रही है;न तो भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित संवैधानिक धाराओं में ही संशोधन कर रही है और न ही उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन ही लगा रही है.वह ऐसा कर भी कैसे सकती है?उसकी सरकार को समय-समय पर बचाने में यह जालिम मदद जो करती रही है.अभी पी.ए.सी. रिपोर्ट मामले में भी तो बसपा ने केंद्र की भ्रष्टतम सरकार का साथ दिया.ऐसे में उत्तर प्रदेश के लोगों को इस अत्याचारी से सिर्फ नारायण ही बचा सकते हैं.हाँ,जो भाई अर्थाभाव के कारण जर्मनी जाकर हिटलर के शासन और उसके शासन में जनता की स्थिति का अध्ययन कर सकने में असमर्थ हैं वे निश्चित रूप से एक बार यथाशीघ्र उत्तर प्रदेश की शोध-यात्रा कर लें;यक़ीनन उन्हें निराश नहीं होना पड़ेगा.
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