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19.7.11

वाह री, भारत सरकार, क्या खूब कहा


अभी हाल ही में मैंने किसी न्यूज चैनल में कुछ ऐसा देखा की मेरा आप सा खो गया मन ही मन खूब कोस रहा था भारतीय शासको को.
जो इस देश की हुकूमत पर अपना एकल स्वामित्व समझते हैं और इस देश को सोने का अंडे देने वाली मुर्गी की संज्ञा के रूप में देखते हैं.
उस न्यूज में कुछ किसी परिवार के बारे में बता रहे थे की कोई परिवार पिकनिक के लिए गया था और एक दे से नदी में पानी का स्तर बढ़ जाने की वजह से 5 लोगो के परिवार में से सिर्फ दो ही लोग जिन्दा बचाए गए. और सरकार का इसपे ये कहना था की "ऐसे हादसे साल में एक दो तो होते ही हैं".
अब मुद्दा ये था की सरकार जब इन लोगो की मदद नही कर सकी तो उन्हें ये बोलने का भी हक़ नहीं था की "ऐसे हादसे साल में एक दो तो होते ही हैं".
अब सरकार को ये नहीं पता की जिन हादसों को ये स्वाभाविक बता रही हैं उन हादसों में जिन-जिन लोगो की भी मृत्यु हुई हैं उन लोगों के भी चाँद वोट शामिल हैं जिन्होंने ये सोचकर उन्हें वोट किया होगा की सरकार हमारे बारे में जरूर सोचेगी. पर यहाँ तो नदी उलटी ही बह रही हैं उल्टा सरकार तो ऐसे तेवर दिखा रही हैं जैसे की हमपे अहसान कर रही हैं ........

अब आप ही बताये आखिर क्या बीती होगी उस परिवार के बचे हुए लोगो पर जिन्होंने अपनों के खोने का दुःख झेल रही हैं और साथ ही साथ ऐसे कटु वाक्य सुनने के बाद क्या बीती होगी उन बचे हुए लोगो पर..

वाह री, भारत सरकार, क्या खूब कहा 

1 comment:

रविकर said...

जरुरी है मनो भावों
को प्रकट करना ||
खूब ||