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11.8.11

जितने लोग उतने विचार


जितने लोग उतने विचार

दिनांकः-11-8-2011
आज हमारे समाज मे खास कर एक ही मुद्दा लोकपाल विधेयक और उस पर होने वाले आरोप प्रत्यारोपों की ही भरमार दिखाई दे रही है समाज मे कुछ ना कुछ तो होते ही रहना चाहिए नही तो समाज निर्जीव हो जाएगा। इसी कड़ी मे एक तरफ अन्ना हजारे तो दूसरी तरफ बाबा राम देव जितनी मुहं उतनी बाते जितनी मस्तिष्क उतने विचार अनन्त है यह सिलसिला कब और  कहां पर खत्म होगी किसी को पता नही है। कोई कहता सिविल सोसाईटी की लोकपाल विधेयक समान्तर सरकार चलाने वाली जैसी बात होगी। कोई कहता सरकारी लोक पाल सिर्फ एक कागजी दस्तावेज मात्र है। कोई कहता है इसमे समान्तर सरकार चलाने जैसी कोई बात नही है। वास्तव मे देखा जाए तो अभी तक स्पष्ट रुप से विल के दस्तावेजों का देश के बौद्धिक और पढ़े लिखे वर्गो के अलावा किसी भी सामान्य व्यक्तियों को भली-भांती इसके मसौदे के वारे मे सही जानकारी नही है कि आखिर यह बिल मसौदा क्या चिज है बहुत से लोगों को यहां तक  कहते, पुछते, बोलते देखा जा सकता है कि अरे भईयां यह बिल किस चिज का है क्या सांप, विच्छू या चूहे का बिल हमारे देश मे कहां पर निकला। यह सुनकर बहुत अफसोस होता है कि हमारे देश का साधारण व्यक्तिओं की शिक्षा दिक्षा के अभाव मे उनके सोच और तार्किक शक्ति मे क्या उन्नती हुई है कि वे लोकपाल विधेयक बिल के वारे मे जानते या उसके बारे मे सोच पाते कि इसमे क्या गलत और क्या सही है, वैसे देखने में यही आता है कि सही चिज अधिक्तर लोग को पसंद होता है या उसे ही अपनाते है, जिसे वृहद जन समुह द्वारा अपनया या यही माना जाता है उसे ही हम सही मान लेते हैं। वैसे कुछ एक मुद्दे या विषय ऐसे भी होते है कि जिस पर लोगों के राय, समझ और नजरिया अलग अलग अवश्य होते हैं, लेकिन कुछ एक विषय बस्तुओं पर हमारे समाज मे अपने आप ही एक आम राय का निर्माण हो जाता है। कुछ एक विषय वस्तुओं को छोड़ कर लगभग वाकी सभी विषयों पर एक आम राय और नजरीया अवश्य बन जाता या होता है। जैसा कि टीम अन्ना की मुख्य मांग है कि लोकपाल बिल के दाएरे में न्यायपालिका और प्रधानमंत्री को अवश्य रखा जाना चाहिए। इस मांग को मनवाने को लिए अन्ना और उनके समर्थक मिल कर आंदोलन चला रहे हैं। और इसी आंदोलन को और आगे ले जाते हुए सोलह अगस्त को पुनः अनसन करने वाले हैं। लोकपाल विधेयक बिल जिसे कि लोकसभा मे पेश किया गया हैँ, इसी परिपेक्ष मे टीम अन्ना द्वारा वर्तमान सरकार पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि वह एक मजबूत लोकपाल बिल लाने के पक्ष मे नही है। और इसी के चलते अन्ना के इस आंदोलन को सरकार असफल करने के द्रष्टी कोण से उनके सरकारी नौकरी के दरमियान चारित्रीक भूमिका अभिलेखों की गहनता से जांच करने मे जुट गई है। जैसा कि बाबा राम देव और उनके सहयोगी बाल कृष्ण के अभिलेखो मे पाए गए त्रुटियों के आधार पर उनलोगों के आंदोलन को कमजोर करने मे सफलता मिली उसी तरह की कामयाबी अन्ना के आंदोलन मे भी पाना चाहती है, इसके लिए सरकार ने उनके हिंद स्‍वराज ट्रस्ट के सभी दस्तावेजो को खंगालने के लिए राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी जन शक्ति के अध्यक्ष के माध्यम से 26 अप्रैल को एक शिकायत दर्ज करया जिसमे उनके ट्रस्ट मे वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया गया है, लेकिन पुणे के चैरिटी कमिश्नर ने अन्ना के ट्रस्ट को क्लीन चिट दे दिया। इस तरह यह साफ है कि आखिरकार सरकार एक मजबूत बिल लाने के पक्ष मे क्यों नही है और अगर उनके द्वारा पेश बिल मे कुछ खास बातें हैं तो उसको वह क्यों नही उजागर कर रही है। इससे य़ह स्पष्ट हो रहा है कि इस बिल मे जरुर कुछ छुपी हुई बाते हैं जिसको सरकार सार्वजनिक नही करना चाहती है। इस बात पर यदि अन्ना हजारे यह कह रहें हैं कि कंग्रेस लोगों को गुमराह कर रही है तो इसमे वेजा क्या है।

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