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16.8.11

वीरांगना मैना को शत-शत बार प्रणाम !


वीरांगना मैना को शत-शत बार प्रणाम !

विद्रोह   -चिंगारी  फ़ैल चुकी  थी बन  दावानल ;
आहूति दे रहे वीर,  आजादी-यज्ञ -पावन .

क्रूर फिरंगी लगे हुए थे इसे कुचलने ; 
सभी  देशभक्तों को अब वे लगे पकड़ने .

बिठूर छोड़ नाना का जाना हुआ जरूरी  ;
पुत्री को कैसे छोड़े?ये थी मजबूरी .

नाम था ''मैना'' नाना की वह बड़ी दुलारी ;
धधक रही थी उसके भी उर में विद्रोह चिंगारी .

कहा पिता  से मैना ने यह काम कीजिये ;
आप  सुरक्षित स्थल को प्रस्थान कीजिये .

मैना ने मन में ठाना था यह काम करूंगी ;
राजमहल में रहकर क्रांति-दूत बनूंगी .

कुछ सेवक सेवा हेतु नाना ने छोड़े ;
और कदम जाने को फिर अपने मोड़े .

नाना के जाते ही बड़ी विपत्ति आई ;
अंग्रेजों ने कुटिल चाल चलकर दिखलाई .

गुप्तचरों की पा सूचना ''हे'' बड़ा मुस्तैद हो गया ;
मार के छापा राजमहल पर  ,हर सेवक को कैद कर लिया .

किन्तु तब भी 'मैना' जब हाथ न आई ;
राजमहल को ध्वस्त करो -आदेश था भाई  .

महल-झरोखे से मैना तब प्रकट  हुई थी ;
महल-ध्वस्त मत करना -ये विनती की थी .

सेनापति 'हे' से मैना थी परिचित ;
'हे'की पुत्री सखी थी मैना की चर्चित .

यह बात ''हे' से भी नहीं छिपी हुई थी ,
मैना सखी की मृत्यु पर दो दिन भूखी ही रही थी.

इसीलिए मैना से रखता था हमदर्दी ,
महल गिराने में उसने कुछ देर थी कर दी .

सरकारी आदेश था ; पालन बड़ा जरूरी ,
किन्तु मानवता थी 'हे' की मजबूरी .

तभी वहां जनरल 'आउटरम' हुआ उपस्थित ;
दिया कड़क आदेश था जिसमे अंग्रेजों का हित .

मैना को गिरफ्तार करो और महल गिरा दो ;
विद्रोही इन देशभक्तों को मज़ा चखा दो .

आउटरम को पड़ी थी किन्तु मुह की खानी ;
महल गिरा पर बच निकली थी मैना रानी .

आउटरम चला गया समझ मैना को मृत ;
निकली रात में तलघर से मैना संतप्त .

देख महल की दशा आँख में आंसू आये ;
रो-रोकर उस प्रिय महल को वो समझाए .

नहीं देखता मुझको कोई मैना ने सोचा ;
पर अंग्रेजी प्रहरी ने उसको था देखा .

कैद किया मैना को अंग्रेजी पिंजरे में
आउटरम के समक्ष लाये  फिर पहरे में .

बता हमें है कहाँ पे  नाना और सभी  ;
वर्ना  कर  देंगे तेरे  टुकड़े  यहीं  अभी .

डर से न मानी तो फिर प्रलोभन देते ;
कर देंगे आजाद और देंगे हम भेंटे .

किन्तु विचलित नहीं हुई वह वीर किशोरी ;
छोड़ नहीं सकती थी वह आन की डोरी .

'ब्रिटिश राज के पतन का कारण ये  ही होगा '
'मेरी मृत्यु 'से देश का हित  शीघ्र ही होगा .

देख ये तेवर मैना के -आउटरम जल  उठा ,
क्रूर हुक्म दे डाला ,लज्जित हुई मानवता .

'बांध के इस लडकी  को वृक्ष-चिता बना दो
निस्संकोच उसमे फिर तुम आग लगा दो '

जब पहुंची  मुख तक ज्वाला -तब चली ये युक्ति ;
पता बता दे मिल जाएगी सजा से मुक्ति .

किन्तु डरी नहीं वह देशभक्त -दीवानी
जलती रही आग में मैना,दे दी अपनी कुर्बानी .

ऐसी भारत की नारी को शत-शत बार प्रणाम ,
जिसने आजादी की खातिर उत्सर्ग कर दिए प्राण .

                             शिखा कौशिक









1 comment:

Shalini kaushik said...

बहुत बहुत आभार शिखा जी .आपका ये प्रयास हमारे लिए बहुत उपयोगी है.और ज्ञानवर्धक भी .थैंक्स