वीरांगना मैना को शत-शत बार प्रणाम !
विद्रोह -चिंगारी फ़ैल चुकी थी बन दावानल ;
आहूति दे रहे वीर, आजादी-यज्ञ -पावन .
आहूति दे रहे वीर, आजादी-यज्ञ -पावन .
क्रूर फिरंगी लगे हुए थे इसे कुचलने ;
सभी देशभक्तों को अब वे लगे पकड़ने .
बिठूर छोड़ नाना का जाना हुआ जरूरी ;
पुत्री को कैसे छोड़े?ये थी मजबूरी .
नाम था ''मैना'' नाना की वह बड़ी दुलारी ;
धधक रही थी उसके भी उर में विद्रोह चिंगारी .
कहा पिता से मैना ने यह काम कीजिये ;
आप सुरक्षित स्थल को प्रस्थान कीजिये .
मैना ने मन में ठाना था यह काम करूंगी ;
राजमहल में रहकर क्रांति-दूत बनूंगी .
कुछ सेवक सेवा हेतु नाना ने छोड़े ;
और कदम जाने को फिर अपने मोड़े .
नाना के जाते ही बड़ी विपत्ति आई ;
अंग्रेजों ने कुटिल चाल चलकर दिखलाई .
गुप्तचरों की पा सूचना ''हे'' बड़ा मुस्तैद हो गया ;
मार के छापा राजमहल पर ,हर सेवक को कैद कर लिया .
किन्तु तब भी 'मैना' जब हाथ न आई ;
राजमहल को ध्वस्त करो -आदेश था भाई .
महल-झरोखे से मैना तब प्रकट हुई थी ;
महल-ध्वस्त मत करना -ये विनती की थी .
सेनापति 'हे' से मैना थी परिचित ;
'हे'की पुत्री सखी थी मैना की चर्चित .
यह बात ''हे' से भी नहीं छिपी हुई थी ,
मैना सखी की मृत्यु पर दो दिन भूखी ही रही थी.
इसीलिए मैना से रखता था हमदर्दी ,
महल गिराने में उसने कुछ देर थी कर दी .
सरकारी आदेश था ; पालन बड़ा जरूरी ,
किन्तु मानवता थी 'हे' की मजबूरी .
तभी वहां जनरल 'आउटरम' हुआ उपस्थित ;
दिया कड़क आदेश था जिसमे अंग्रेजों का हित .
मैना को गिरफ्तार करो और महल गिरा दो ;
विद्रोही इन देशभक्तों को मज़ा चखा दो .
आउटरम को पड़ी थी किन्तु मुह की खानी ;
महल गिरा पर बच निकली थी मैना रानी .
आउटरम चला गया समझ मैना को मृत ;
निकली रात में तलघर से मैना संतप्त .
देख महल की दशा आँख में आंसू आये ;
रो-रोकर उस प्रिय महल को वो समझाए .
नहीं देखता मुझको कोई मैना ने सोचा ;
पर अंग्रेजी प्रहरी ने उसको था देखा .
कैद किया मैना को अंग्रेजी पिंजरे में
आउटरम के समक्ष लाये फिर पहरे में .
बता हमें है कहाँ पे नाना और सभी ;
वर्ना कर देंगे तेरे टुकड़े यहीं अभी .
डर से न मानी तो फिर प्रलोभन देते ;
कर देंगे आजाद और देंगे हम भेंटे .
किन्तु विचलित नहीं हुई वह वीर किशोरी ;
छोड़ नहीं सकती थी वह आन की डोरी .
'ब्रिटिश राज के पतन का कारण ये ही होगा '
'मेरी मृत्यु 'से देश का हित शीघ्र ही होगा .
देख ये तेवर मैना के -आउटरम जल उठा ,
क्रूर हुक्म दे डाला ,लज्जित हुई मानवता .
'बांध के इस लडकी को वृक्ष-चिता बना दो
निस्संकोच उसमे फिर तुम आग लगा दो '
जब पहुंची मुख तक ज्वाला -तब चली ये युक्ति ;
पता बता दे मिल जाएगी सजा से मुक्ति .
किन्तु डरी नहीं वह देशभक्त -दीवानी
जलती रही आग में मैना,दे दी अपनी कुर्बानी .
ऐसी भारत की नारी को शत-शत बार प्रणाम ,
जिसने आजादी की खातिर उत्सर्ग कर दिए प्राण .
शिखा कौशिक
1 comment:
बहुत बहुत आभार शिखा जी .आपका ये प्रयास हमारे लिए बहुत उपयोगी है.और ज्ञानवर्धक भी .थैंक्स
Post a Comment