शंकर जालान
कोलकाता। बीते दिनों दक्षिण कोलकाता के ढाकुरिया स्थित एंडवास मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एएमआरआई) अस्पताल में घटी अग्निकांड की घटना ने एक बार फिर बड़ी इमारतों, अस्पतालों, सामुदायिक भवनों व सरकार कार्यालयों की अग्निशमन व्यवस्था की पोल खो दी है। निजी भवनों व कार्यालयों की तो बात ही क्या, कई सरकारी अस्पतालों व भवनों की अग्निशमन व्यवस्था को भी पुख्ता नहीं कहा जा सकता। हालांकि सरकार इस बार जरा सचेत दिख रही है और इस बाबत कमिटी बनाकर अग्निशमन व्यवस्था की पड़ताल शुरू हो गई है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कमिटी के सहारे या फिर विभिन्न इमारतों का जायजा लेने भर से अग्निशमन व्यवस्था दुरूस्त नहीं हो सकती। कहना गलत नहीं होगा कि जब तक लोगों में जागरूकता नहीं आएगी, किसी कमिटी, किसी कानून और किसी निरीक्षण के बल पर अग्निशमन व्यवस्था ठीक नहीं हो सकती।
सनद रहे कि न्यू हावड़ा ब्रिज एप्रोच रोड स्थित नंदराम-काशीराम ब्लॉक मार्केट, पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट और मल्लिकबाजार फूल मंडी व हावड़ा के मछली बाजार में लगी आग के बाद भी तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा कमिटियां बनाई गई थी, लेकिन सभी के नतीजे ढाक के तीन पात वाली कहावत को चरितार्थ करते दिखे।
हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि एएमआरआई अस्पताल में आग लगने की घटना ने कई सवाल खड़े किए। कहीं आग की सुरक्षा व्यवस्था तो कहीं दमकल विभाग की हालत को लेकर तरह-तरह की बातें का खुलासा हुआ है। हजारों की संख्या में शहर की सरकारी और गैरसरकारी इमारते हैं, जो काफी पुरानी हो चुकी हैं। इन इमारतों में अग्निशमन उपकरणों की तो कोई व्यवस्था है ही नहीं, झुलते बिजली के तार आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।
गैरसरकार इमारतों की बात तो छोड़िए, आश्चर्य की बात यह है कि कई सरकार इमारतों का नक्शा भी पुलिस थाने में उपलब्ध नहीं है। राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग की बात की जाए या फिर खाद्य भवन, न्यू सेक्रेटेरिएट बिल्डिंग लगभग सभी की एक सी स्थिति है। ध्यान रहे कि राइटर्स बिल्डिंग में कई दफा आग लग चुकी है। आग की लपटों ने कई बात अदालतों को भी अपनी चपेट में लिया है।
एक सर्वे के मुताबिक महानगर की 75 फीसद से ज्यादा बहुमंजिली इमारतें, अपार्टमेंट, मार्केट और नर्सिंग होम आदि में अग्निशमन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कुछ जगहों पर अग्निशमन उपकरण तो हैं, लेकिन वे खराब पड़े हैं। ज्यादातर बेसमेंट (भूतल) में मानकों की अनदेखी की जा रही है। सोचने वाली बात यह है कि संबंधित विभाग के अधिकारी किसी आधार पर अनापत्ति पत्र (एनओसी) दे देते हैं।
इस बारे में चिंतित लोगों का कहना है कि कई अस्पतालों समेत विभिन्न स्थानों के शासकीय व निजी इमारतों में आपदा प्रबंध की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। राज्य सरकार को इसके लिए कानून बनाना चाहिए। लोगों का कहना है कि पहले सिनेमा घरों, अस्पतालों में आग बुझाने का छोटा-सा सयंत्र व दो बाल्टी रेत भरी नजर आती थी, पर अब वह नहीं दिखती।
स्वयंसेवी संस्था प्रेम मिलन (कोलकाता) के सचिव ने बताया कि अस्पतालों में अग्निशमन के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। इतना ही नहीं कोई बड़ा हादसा होने पर उस पर तत्काल काबू पाने के लिए कोई रणनीति भी तैयार नहीं है। रोजाना सरकारी समेत निजी अस्पतालों में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा को लेकर न तो कोई तैयारी है और न ही कोई व्यवस्था...। उन्होंने कहा कि कुछ निजी अस्पतालों में जरूर कई स्थानों पर आग पर काबू पाने के लिए छोटे यंत्र लगे हैं, लेकिन उससे किस हद तक काबू पाया जा सकता है, यह प्रश्न बना हुआ है।
2.1.12
क्या सचमुच अग्निशमन उपकरण के लिए सचेत हैं लोग
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