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30.1.12

नकल, एक और कालिख ?

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
निश्चित ही छत्तीसगढ़ विकास की दिशा में अग्रसर हो रहा है, लेकिन कई रोड़े भी नजर आ रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अनेक बदलाव के कारण यहां की प्रतिभाएं निखर कर सामने आ रही हैं। फिर भी शिक्षा नीति में कई बदलाव की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी जरूरत है, छग को नकल के कलंक से मुक्त करना। ऐसा लगता है, जैसे छत्तीसगढ़ का नकल से चोली-दामन का साथ हो गया है, तभी तो एक मामले को भूले भी नहीं रहते, नकल के दूसरे मामले आंखों के सामने आ जाते हैं। ऐसी स्थिति में नकल की प्रवृत्ति को खत्म करने सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए, तभी प्रदेश की प्रतिभाओं का भला होगा। नहीं तो, प्रतिभाओं के हिस्से को ‘मुन्नाभाई’ आकर चट करते रहेंगे और इससे कहीं न कहीं छग को ही नुकसान होगा। जाहिर सी बात है, ऐसे हालात में प्रतिभा पलायन भी होगा।
दरअसल, नकल का मामला एक बार फिर इसलिए गरमा गया है, क्योंकि पीडब्ल्यूडी सब इंजीनियर के लिए ली जाने वाली भर्ती परीक्षा में भी नकल के प्रकरण बने हैं और कई नकलची पकड़े गए हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई की बात कही गई है, मगर इतने भर से काम चलने वाला नहीं है, क्योंकि नकलचियों पर सख्ती नहीं बरतने का ही परिणाम है कि प्रतिभाओं का दम तोड़ने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। नकल को कहीं न कहीं हम नौकरी पाने तथा किसी परीक्षा में सफल होने के लिए ‘चोर दरवाजा’ ही मान सकते हैं। नकल के कारण प्रदेश की प्रतिभाएं ज्यादा बदनाम होती हैं, क्योंकि जब वे बाहर शिक्षा के लिए जाती हैं तो उन्हें हमेशा कमतर आंका जाता है, जिसका खामियाजा उन्हें अपने कॅरियर निर्माण में भी भुगतना पड़ता है। समय-समय पर सरकार तथा शासन में बैठे लोग भी स्वीकारते हैं, लेकिन नकल पर रोक लगाने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए जाते। लिहाजा, यह कृत्य रह-रहकर पुरानी बोतल से बाहर आते रहते हैं। नकल की दुष्प्रवृत्ति के घातक परिणाम से शिक्षाविद् आगाह भी करते हैं, लेकिन जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं, उससे तो लगता है कि नकल की प्रवृत्ति, एक तबके के खून में समा गई है, क्योंकि उन्हें अपनी वैतरणी पार लगाने के लिए कोई दूसरा सहारा नजर नहीं आता। कहीं न कहीं, पीडब्ल्यूडी की परीक्षा में नकल का मामला सामने आने से प्रदेश की परीक्षा तथा शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर कालिख पूत गई है।
ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में नकल के मामले पहली बार सामने आए हैं। कुछ बरसों की स्थिति को देखें तो प्रदेश में नकल की प्रवृत्ति ने व्यापक पैमाने पर पैर पसार लिया है। यही राज्य है, जहां बारहवीं व दसवी की बोर्ड परीक्षा की मेरिट सूची में गड़बड़ हो गई। इस प्रकरण से शिक्षा प्रणाणी तथा परीक्षा में बरती गई लापरवाही को लेकर प्रदेश का काफी छिछालेदर हुआ था। उससे पहले पीएससी की परीक्षा भी विवादों में रही है। इन मामलों के मध्य पर नजर डालें तो यही राज्य है, जहां पिछले साल प्री-पीएमटी की परीक्षा तीन बार आयोजित हुई। पीएमटी परीक्षा में फर्जीवाड़े ने सरकार को हिलाकर रख दिया, क्योंकि बिलासपुर जिले के तखतपरु में फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद कई नामचीन लोगों के नाम आए, जिन्होंने अपने बेटे-बेटियों को परीक्षा पास कराने लाखों रूपये दिए थे। फिलहाल इस मामले में पुलिस जांच कर रही है, कुछ परीक्षार्थी पुलिस के हत्थे चढ़ गए हैं तो कुछ अपने रसूख तथा भूमिगत होने के कारण बचे हुए हैं। कई को कोर्ट से जमानत भी मिल गई है।
कुल-मिलाकर कहना यही है कि प्रदेश की शिक्षा की नींव, नकल के कारण कमजोर हो रही है। इसे मजबूत बनाने के लिए नकल माफिया से प्रदेश को बचाना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में सतत् विकास हो रहा है, मगर जिस तरह नकल के सहारे तथा शॉर्टकट आजमाने की करतूत बढ़ती जा रही है। इसे विकास पथ पर अग्रसर प्रदेश के लिए बेहतर नहीं कहा जा सकता है। नकल पर लगाम लगाने के लिए सरकार को ध्यान देना होगा। प्रदेश के कई जिले हैं, जहां के प्रतिभावान छात्र इसलिए भी शंका की नजर से देखे जाते हैं कि वे उस जिले से ताल्लुक रखते हैं, जहां नकल की शिकायतें हैं। यहीं पर प्रतिभाओं का मनोबल टूटता है। ऐसी स्थिति में कहीं न कहीं सरकार और उनकी नीति जिम्मेदार मानी जा सकती है, क्योंकि देश, प्रदेश तथा समाज के हित में रोड़ा बन रही ‘नकल’ पर सरकार कहां रोक लगा पा रही है ? यदि ऐसा नहीं होता तो रह-रहकर नकल के मामले उजागर नहीं होते। सरकार की ढिलाई का ही नतीजा है कि ऐसे कृत्यों को बल मिल रहा है। आशा है कि सरकार, इस दिशा में सख्त निर्णय लेगी और प्रदेश की प्रतिभाओं को आगे लाने प्रयास करेगी, क्योंकि विकास के लिए शिक्षा की अहम भूमिका है, किन्तु ‘नकल’ बड़ा रोड़ा बनती जा रही है।

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