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30.1.12

सीनियर्स के संन्यास लेने की माँग........ अपरिपक्वता की निशानी।

दोस्तों, टीम इंडिया के इंग्लैंड दौरे के जख्म अभी भरे भी नहीं थे कि टीम इंडिया ने क्रिकेट प्रेमियों को एक और जख्म दे दिया।पिछले इंग्लैंड दौरे पर तो टीम एक भी मैच जिते बिना ही देश लौट आई थी।4 टेस्ट, 1 टी-ट्वेंटी और 5 वन-डे की सीरिज में टीम एक भी मैच जितने में असफल रही थी।और उस खराब प्रदर्शन के कारण टीम को टेस्ट मैचों में नंबर एक का ताज भी गंवाना पड़ा।ठीक उसी तरह की स्थिति अभी टीम इंडिया की ऑस्ट्रेलिया में भी है।4 टेस्ट मैचों की सीरिज में तो टीम का सफाया हो ही चुका है और अगर टीम के खिलाड़ियों ने प्रदर्शन में सुधार नहीं किया तो वो दिन भी दूर नहीं जब टीम को ऑस्ट्रेलिया से भी खाली हाथ लौटना पड़ेगा।टीम को अभी ऑस्ट्रेलिया से दो टी- ट्वेंटी मैचों की सीरिज और एक त्रिकोणीय सीरिज भी खेलनी है जिसकी तीसरी टीम श्रीलंका है।अगर टीम को ऑस्ट्रेलिया में अपनी लाज बचानी है तो आने वाले मैचों में निश्चित रूप से अच्छा प्रदर्शन करना होगा।
   टीम के ऑस्ट्रेलियाई दौरे में खराब प्रदर्शन पर सबसे ज्यादा आलोचना झेलना पड़ा सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण सरीखे त्रिदेव और कप्तान धोनी को।माना कि खराब दौर से तो सभी टीमों और कप्तानों को गुजरना पड़ता है लेकिन पिछले दो विदेशी दौरों पर टीम का प्रदर्शन सचमुच निराशाजनक रहा है।इस खराब प्रदर्शन के लिए किसी दो या तीन खिलाड़ी को जिम्मेदार ठहराना बिल्कुल गलत है।खासकर त्रिदेव और कप्तान धोनी पर ही सारा दोष डालना तो बेमानी होगी।पूरी टीम अगर एकजुट होकर अच्छा प्रदर्शन करती है तभी किसी टीम को जीत मिलती है, किसी एक या दो खिलाड़ियों के ही अच्छा प्रदर्शन कर लेने से टीम नहीं जीतती है।उसी तरह अगर टीम हारती भी है तो उसकी ज़िम्मेवार पूरी टीम है, न कि एक या दो खिलाड़ी।हाँ, यह बात अलग है कि जब टीम जीतती है तो अच्छा प्रदर्शन तो टीम के सभी खिलाड़ी करते हैं लेकिन सबसे ज्यादा क्रेडिट ले उड़ते हैं टीम के कप्तान।और इस बार जब टीम इंडिया लगातार दूसरे विदेशी दौरे पर टेस्ट मैचों में वाइटवाश हो चुकी है तो इसकी जिम्मेदार तो पूरी टीम है लेकिन एक कप्तान के रूप में सबसे ज्यादा जिम्मेदार धोनी ही हैं, जो उन्होंने स्वीकारी भी है।
   पहले इंग्लैंड और फिर ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर टीम के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद धोनी को टेस्ट टीम की कप्तानी से हटाने की माँग तेज हो गई।कपिल देव और सुनील गावस्कर सरीखे क्रिकेट के दिग्गजों ने भी धोनी को कप्तानी से हटाने की बात कही।अगर क्रिकेट बोर्ड धोनी को टेस्ट टीम के कप्तानी से हटा भी देती है तो वैसे भी टीम के खराब प्रदर्शन के बाद यह कोई आश्चर्यजनक फैसला तो होगा नहीं लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इससे कोई हल निकलने वाला है।अगर धोनी कप्तानी से हटा दिए जाते हैं तो मौजूदा टीम में मुझे तो कप्तानी के लिए कोई ठोस दावेदार नजर नहीं आ रहा है।धोनी के बाद आप किसे बनाओगे टेस्ट टीम का कप्तान?टीम के उपकप्तान सहवाग भी अपने उस रंग में नजर नहीं आ रहे हैं जिसके लिए वो जाने जाते हैं।वैसे तो धोनी के बाद सहवाग ही कप्तान के मुख्य दावेदार हैं लेकिन उनकी कप्तानी में भी वो बात नहीं है जो टीम के लिए फायदेमंद हो।युवाओं में अगर आप विराट कोहली की बात करें तो वो भी इस जिम्मेदारी के लायक नजर नहीं आ रहे हैं।सिर्फ एक पारी में उन्होंने शतक लगा लिया तो इसका यह मतलब नहीं कि वह टेस्ट टीम की कप्तानी के लायक हो गए।माना कि उनमें प्रतिभा है जिसपर किसी को संदेह नहीं है लेकिन उन्होंने भी पूरी सीरिज में अपनी प्रतिभा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं किया।इसलिए भलाई इसी में है कि धोनी को अभी और मौका देना चाहिए।
   अगर टीम के खराब प्रदर्शन की बात की जाए तो पूरी टीम अपनी रंग में नजर नहीं आई।बैटिंग, बौलिंग, किसी भी क्षेत्र में टीम खड़ी नहीं उतरी।बौलिंग में ईशांत शर्मा ने तो लुटिया ही डूबो दी।पूरे सीरिज में कभी भी वो रंग में नजर नहीं आए।आर. आश्‌विन को भी सिलेक्टर्स ने जिस उम्मीद से टीम में चुना था, वह भी सिलेक्टर्स की उम्मीद पर खड़े नहीं उतरे।बौलिंग तो टीम की लगभग ठीक ही रही क्योंकि टीम के गेंदबाजों ने कुछ मौकों पर ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को रन बनाने के मौके नहीं दिए।कुछ मौकों पर भारतीय गेंदबाजों ने ऑस्ट्रेलियाई टीम के शुरूआती विकेट झाड़ कर उनकी बल्लेबाजी की रीढ़ तोड़ दी।लेकिन वे पूरे सीरिज में निरंतर अच्छा प्रदर्शन करने में नाकाम रहे।टीम की बल्लेबाजी तो काफी शर्मनाक रही।टीम के बल्लेबाज कभी भी ऑस्ट्रेलियाई टीम से मुकाबला के मूड में नहीं दिखे।ऑस्ट्रेलियाई टीम के अनुभवहीन लेकिन प्रतिभाशाली गेंदबाजों के आगे हमारी वर्ल्ड-क्लास अनुभवी और प्रतिभाशाली बैटिंग लाइन-अप ने घुटने टेक दिए।विराट कोहली को छोड़ बाकी कोई भारतीय बल्लेबाज तो पूरी सीरिज में शतक भी नहीं लगा सके।गौतम गंभीर जिन्हें भारतीय टीम के बेस्ट ओपनरों में से एक माना जाता है, वो पूरे सीरिज में रन बनाने के लिए जूझते रहे।हमारे टीम के दोनों ओपनरों ने टीम को अच्छी शुरूआत देकर एक बड़े स्कोर की नींव रखने की अपनी जिम्मेदारी को बिल्कुल नहीं निभाया।सहवाग को देखकर तो लग ही नहीं रहा था कि ये वही सहवाग हैं जिन्होंने पिछले वेस्ट-इंडीज दौरे पर वन-डे इतिहास का दूसरा दोहरा शतक लगाकर आक्रामकता और टेक्निक के मेल का क्रिकेट इतिहास का सबसे अच्छा परिचय दिया था।कप्तान धोनी पूरे सीरिज के दौरान बल्लेबाजों को अच्छा प्रदर्शन करने के लिए बोलते रहे।कप्तान धोनी ने तो खुद भी पूरे सीरिज में बल्ले से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।
   टीम के खराब प्रदर्शन के बाद क्रिकेट फैंस ने हमारे त्रिदेव की जमकर आलोचना की।त्रिदेव ने तो खराब प्रदर्शन किया ही लेकिन टीम के युवाओं ने कौन सा अच्छा प्रदर्शन किया।क्या भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया में हमारे सीनियर्स की वजह से हारी है?नहीं।पूरी टीम ने मिलकर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तभी टीम हारी। हम आखिर किस मुँह से कहते हैं कि हमारे त्रिदेव को संन्यास ले लेना चाहिए?वे लगभग पिछले डेढ़ दशक से भारतीय क्रिकेट को अपनी सेवा दे रहे हैं।कठिन से कठिन परिस्थितियों में उन्होंने टीम का साथ निभाया है।कई मौकों पर उन्होंने टीम को जीत दिलाई है।भारतीय क्रिकेट की पहचान हैं हमारे त्रिदेव।ऐसे में एक या दो सीरिज से उनके प्रदर्शन को तौलना और उनके संन्यास लेने की माँग करना तो अपरिपक्वता और नासमझदारी भरी माँग है।भारतीय दर्शकों में यही दिक्कत है, अगर यह टीम जीत जाती तो सभी कहते कि यह सर्वश्रेष्ठ टीम है।जब टीम हार गई तो सभी हमारे त्रिदेव को संन्यास लेने की माँग करने लगे।माना कि त्रिदेव ने निराशाजनक प्रदर्शन किया लेकिन हार का सारा दोष उन पर डालना और उनके संन्यास की माँग करना तो बेमानी होगी।सुनिल गावस्कर हमारे सीनियर्स की आलोचना करते हैं तो वो तो उनका अधिकार है।वे भारतीय क्रिकेट के दिग्गज हैं।हमारे त्रिदेव के भी गुरु हैं।हम सभी उनका सम्मान करते हैं।इसलिए उन्होंने एक गुरू के नाते हमारे त्रिदेव को फटकार लगाई जो कि बिल्कुल सही है।लेकिन हम क्या उनके गुरु हैं कि हम उन पर संन्यास लेने का दबाव डाल रहे हैं?सचिन, द्रविड़ और लक्ष्मण हम से ज्यादा समझदार हैं और वो क्रिकेट को हमसे ज्यादा अच्छी तरह से जानते और समझते हैं।संन्यास का फैसला किसी भी खिलाड़ी का निजी फैसला होता है।हमें या बोर्ड को उन पर संन्यास का दबाव नहीं डालना चाहिए।वे इतने दिनों से क्रिकेट में हैं, वे अच्छी तरह से जानते हैं कि कब उनके संन्यास लेने का समय है।हम कहते हैं कि अब उनमें रन बनाने की क्षमता नहीं रह गई है।अरे! मैदान में वो खेलते हैं, वो हमसे अच्छी तरह से अपनी खेल की क्षमता को जानते हैं।त्रिदेव हमारे टीम का अभिन्न हिस्सा हैं, वे जो भी फैसला लेंगे टीम हित में ही लेंगे।
   कुछ लोग खराब प्रदर्शन का दोष आईपीएल को दे रहे हैं। माना कि आईपीएल में खिलाड़ी टेक्निक को भूलकर तेजी से रन बनाने में ही लग जाते हैं।लेकिन हार का एकमात्र कारण आईपीएल ही नहीं है।आईपीएल कोई खिलाड़ियों को जबर्दस्ती खेलने को नहीं कहता है।वो तो किसी खिलाड़ी की खुद की मर्जी है कि वह आईपीएल में खेलना चाहता है या नहीं।हार का कारण मुख्य रूप से टीम के सभी बल्लेबाजों का गैरजिम्मेदाराना तरीके से आउट होना और रन बनाने में बिल्कुल असफल होना है।टेस्ट मैचों में आपको विकेट पर टिककर खेलना होता है।आप अगर अपनी पारी के शुरूआती दस ओवर भी संभलकर डिफेंसिव मोड में खेल लेते हो तो ज्यादा संभावना है कि आप एक बड़ी पारी को अंजाम दे सकते हो।आप तीन-चार बड़े शॉट लगाकर एक अच्छी पारी टी-ट्वेंटी में खेल सकते हो, टेस्ट मैचों में नहीं।भारतीय टीम के खिलाड़ियों को रिकी पोंटिंग से सीख लेनी चाहिए।पिछले दो साल से उन्होंने टेस्ट में शतक नहीं लगाया था, और देखिए क्या शानदार वापसी की है उन्होंने।माइकल क्लार्क का भी कप्तानी करियर कुछ ठीक नहीं चल रहा था।पर उन्होंने भी जोरदार वापसी की।भारतीय क्रिकेट के बल्लेबाज भी उनकी तरह वापसी कर सकते हैं।
   भारतीय बल्लेबाजों को आलोचकों पर ध्यान न देकर अपने खेल पर ध्यान देना चाहिए।तभी वे वापसी कर पाएँगे।धोनी की कप्तानी में भारत जब हारने लगा तो ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में कुछ इस तरह की खबर आई कि धोनी की कप्तानी वन-डे क्रिकेट के लिए ठीक है, टेस्ट क्रिकेट के हिसाब से वे बेहद सुस्त हैं।ये मीडिया उस वक्त कहाँ थी जब भारत धोनी की कप्तानी में पहली बार टेस्ट में नंबर-वन बना था।धोनी भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ कप्तान हैं।उन्हें आलोचकों पर ध्यान न देकर अपनी वही चमक फिर से हासिल करनी होगी।अच्छे समय में तो सभी साथ देते हैं।बुरे वक्त में अपने भी साथ छोड़ जाते हैं।जब धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम पहली बार टेस्ट में नंबर-वन बनी थी तब तो किसी को धोनी से ऐतराज नहीं था।बस एक या दो सीरिज से ही आपलोगों ने भारत के सर्वश्रेष्ठ कप्तान को हटाने की माँग कर दी।धोनी जैसा कप्तान मिलना बहुत मुश्किल है।माना कि मौजूदा सीरिज में उनका प्रदर्शन बेहद ही साधारण रहा था लेकिन हम उन्हें इतनी आसानी से नहीं खो सकते।किस खिलाड़ी या कप्तान के बुरे दिन नहीं आए हैं?सभी को इस दौर से गुजरना पड़ता है।धोनी को अभी हमारे साथ की जरूरत है।मैं धोनी और पूरी टीम इंडिया के साथ हूँ।और आप? 

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