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25.1.12

झांकी


झांकी  

जब मैं भरत का भारत था. 
मुझ में-
शोर्य था, 
स्वाभिमान था, 
आदर्श चरित्र था, 
नीति और नियम
मेरे खून में थे,
सदविचार
मेरे ह्रदय में 
रोपे जाते थे, 
परोपकार
मेरे रग रग में था, 
जब मैं भरत का भारत था.
झूठ और फरेब से
कोसो दूर था, 
दुसरे का धन
मिटटी समान था,
सत्य और न्याय
मुझ में भरे थे, 
राजा हो या रंक
वचनों पर बंधे थे,
कथनी और करनी में 
कुछ भी फर्क न था, 
जब मैं भरत का भारत था.
मगर -
विधि कि विडम्बना 
कालचक्र कि गणना 
समझ से परे है. 
कुछ वर्षों से, 
इण्डिया देट इज  भारत हूँ .
अब -
कुत्तो से डरता हूँ 
सियारों से छिपता हूँ 
स्वाभिमान खो रहा हूँ 
झूठा बईमान हूँ 
क्योंकि,अब- 
इण्डिया देट इज  भारत हूँ .
मेरा चरित्र -जर्जर है 
नीति नियम- 
तार-तार है 
सदविचार-
तिनके-तिनके है 
संवेदना-
जार-जार है
क्योंकि,अब-  
इण्डिया देट इज  भारत हूँ .


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