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14.1.12

दिल्ली....


-  अतुल कुशवाह 
मैनें जब भी देखा है 
एक छोटे बच्चे के तबस्सुम की तरह
पुरानी चीजों को विदा कर दिया तूने,
तू पुरानी से नई हो गई
दरख्तों के जंगल जला दिए
इमारतों का हिसार खड़ा करके
चारो तरफ बेशुमार चेहरे
तुझमें आने को, तुझसे जाने को
यहाँ एक-दो नहीं हजार मोहरे
अब रह ही क्या गया है
इन ऊंची इमारतों के शिवा
जंगलों की कब्र में दफ़न
हैं ताजी खुशफरास हवा..
और बचा ही क्या है अब इसके शिवा....
पता चले तो बताना..कि
कहाँ है इस शहर में उन पुरानी 
बहारों का आशियाना...

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