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8.1.12

लातों के भूत अनशन से कहाँ मानते हैं, इतिहास गवाह है



अन्ना के अनशन की प्रासंगिकता : तीन दिन से ज्यादा का अनशन उचित नहीं


अनशन कोई नई चीज नहीं है ,


रामचरितमानस में श्री राम द्वारा भी सागर के सामने अनशन करने का जिक्र है .


यथा :---------------


इतिहास का पहला अनशन

भारतीय साहित्य में सबसे पहले अनशन का जिक्र आया है रामायण में.  


आप अधिकतर ने यह पढ़आ हुआ है, में केवल याद दिला रहा हूँ 


जब सुंदरकांड में भगवान राम ने मर्यादा पूर्वक सागर से रास्ता माँगा 


       
विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत। 

बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीत।।




तीन दिन बहुत विनय की , 

जब मूर्ख और  शठ  सागर के कान पर जूं नहीं रेंगी तो 

फिर श्री राम ने लक्षमन से कहा : मेरा धनुष लाओ . 

मुर्ख व्यक्ति विनय से नहीं मानता .

यानि जड़ लोग , विनय की भाषा नहीं समझते , उनके लिए धनुष की आवश्यकता होती ही है , 

आज का धनुष है चुनावों में सक्रिय योगदान.  यदि अपने लोग खड़े करने का होसला न हो तो कम से कम , सही उम्मीदवारों पर अपनी मोहर लगा कर , जनता को बदमाशी के चुनाव में एक विकल्प तो दे सकते हैं. 


पर जितना में चुनावों की प्रक्रिया के बारे में जानता हूँ, चूनावों के द्वारा किसी सही प्रत्याशी का आना , असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है , 

क्योंकि चुनाव बिना पैसे के लड़े नहीं जा सकते.  हाँ कुछ पैसे वाले भी ईमानदारों में हो सकते हैं, तब ये संभव है . 

जय श्री राम 

कुछ टिपण्णी आये जो विषयवस्तु कि तरफ से आवश्यक हैं. 

3 comments:


तेजवानी गिरधर said...
very nice
Dr. shyam gupta said...
---इससे पहले असली अनशन का उदाहरण...कठोपनिषद में है ....जब नचिकेता...तीन दिन तक यम के द्वार पर भूखा-प्यासा बैठा इन्तज़ार करता रहा था ..
I and god said...
सत्य वचन डा साहिब, इसीलिए ये ब्लॉग इत्यादि आपको भेजे जाते हैं. कि उनकी fine tuning हो सके. अनशन किसके सामने किया जाए , इसका फर्क देख लिया , जो समझदार है(यमराज), वो अनशन से द्रवित हो गया , और मुर्ख अनशन वाले को प्रताड़ित करने लगा, आपका बहुत बहुत धन्यवाद 

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