शंकर जालान
कोलकाता। शीर्षक पढ़कर चौकिए मत। इन दिनों यह नजारा आउट्रमघाट में देखने को मिल रहा है। देश के कोने-कोने से आए साधु, संन्यासी, संत व बाबा अपनी-अपनी कुटिया में बैठे भक्तों को पैसे की एवज में आशीर्वाद दे रहे हैं। मालूम हो कि अन्य राज्यों व नेपाल और बांग्लादेश से गंगासागर जाने के लिए महानगर पहुंचे साधु-संन्यासियों का अंतिम पड़ाव आउट्रमघाट होता है। वैसे तो मकर संक्रांति व गंगासागर के पुण्य-स्नान में अभी छह दिन शेष हैं, लेकिन यहां पहुंचे करीब छह दर्जन बाबाओं ने अपना करतब दिखाना शुरू कर दिया है।
भस्म रमाए, गांजा पीते, शंख बजाते ये बाबा नोट देखकर भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं। इन बाबाओं का कहना है कि गंगासागर के दौरान आठ-दस दिन के पड़ाव में उन्हें भक्तों से जो भेंट मिलती है उसी से उनका कई महीनों का राशन-पानी चलता है। फोटो बाबा के नाम से परिचित बाबा से जब पूछा गया कि बाबा साधुओं को तो मोह-माया से दूर रहना चाहिए, फिर भला आप आशीर्वाद देने के बदले पैसे की मांग क्यों करते हैं? प्रश्न का जवाब देने की बजाए बाबा ने कहा - जब भाग यहां से, मुझे बड़ा प्रवचन देने आया है।
इसी तरह अन्य बाबा भी नोट को पहचान कर अपना मुंह खोल रहे हैं। पांच या दस रुपए भेंट करने वाले सिर पर बाबा केवल हाथ रखते हैं। वहींस बीस या पचास रुपए चढ़ाने वाले भक्तों के माथे पर विभूति का तिलक भी लगा रहे हैं। पचास से ज्यादा या एक सौ रुपए देने वाले लोगों को बाबा सब मनोकामना पूरी जैसा आशीर्वाद दे रहे हैं।
9.1.12
पैसे दो, आशीर्वाद लो
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