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2.7.08

पत्रिका को बिच्छू डॉट कॉम का साधुवाद

बिच्छू डॉट कॉम की समीक्षा से पत्रिका मैनेजमेंट इतना आहत होगा, इसका अंदाजा हमें नहीं था। हमने तो सुना था की राजस्थान की माटी में बहुत सहनशीलता है और ग्राहता का भाव भी, लेकिन ऐसा नहीं है। यह तब लगा, जब पत्रिका के कर्मचारियों ने बिच्छू सर्च किया, तो स्क्रीन पर पत्रिका प्रकट हुई। जब पत्रिका भू-पल्लवित हुई, तब बिच्छू डॉट कॉम ने पत्रिका के प्रयोगों का स्वागत किया, खबरों की तारीफ की। कालांतर में पत्रिका के नवजात, प्रौढ़ और थके-थकाए सम्पादकीय साथियों ने जब खबरों में तथ्यात्मक गलतियाँ की या पुरानी खबरों को री-ड्राफ्ट किया या छपी-छपाई खबरों को ज्यों का त्यों परोसा, तो उनकी खिंचाई भी हमने की। इससे खूटी पर टंगे लोग, सूली पर टंगे लोग, कोहनी पर टंगे लोग, बरगद की बात करते हैं गमले में उगे लोग, यानि बोनसाई पत्रकारों को इससे बुरा लगा और उन्होंने पत्रिका के कंप्यूटर पर बिच्छू बंद करवा दिया। धन्यवाद् गुलाब कोठारी साहब !

कोठारी जी, तीन माह पूर्व जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार ने राजस्थान में आपके अख़बार का बहिष्कार किया था, तब अपने राजस्थान पत्रिका के प्रथम पेज पर विशेष सम्पादकीय में लिखा था, कि बूढे़ मुर्गे अख़बार पढ़ना बंद कर देंगे, तो इससे कोई फर्क नही पड़ेगा। लेकिन युवा चूजों को संघ परिवार कब तक अख़बार पढ़ने से रोकेगा? वे संघ परिवार के बूढे मुर्गों के सामने नहीं, छुप-छुपकर पत्रिका पढेंगे।

इसी तर्ज पर मैं आपसे कहना चाहता हूँ, कि आपके यहाँ के नाकाबिल, थकी-थकाई मानसिकता वाले पत्रकार अपनी आलोचना सहन नहीं कर सकते, लेकिन जो नई पीढी है, जो पत्रकारिता में अपने लाभ-शुभ के लिए नहीं आई है, उसे बिच्छू देखने से कैसे रोकेंगे ?

वैसे भी अच्छे टाँगे वाले अपने घोड़ों को झांप बाँध कर दौड़ते है। लेकिन पत्रकारिता तांगे की रेस नहीं, विचार-आलोचना-समालोचना का आईना है। इस आईने में शायद पत्रिका की 'सम्पादकीय बहुंयें' स्वयं को बद-सूरत पा रही होंगी।

अवधेश बजाज

संपादक

बिच्छू डाट काम

5 comments:

gurudatt tiwari said...

Respected Bajaj sir,
right now I am in mumbai, but I worked in all major daily published from Bhopal, So I know you very well. I have a great regard for you please send me URL of Bichchu.com

santosh said...

आदरणीय, बजाज साहब
पत्रिका ही क्‍यों, आप जब भी किसी के बारे में आलोचना करते है तो वह बिच्‍छू के डंक से ज्‍यादा मारक होती है। पत्रिका ही नहीं, भोपाल के ही एक अन्‍य अखबार में अपने यहां इसी तरह बिच्‍छू डॉट काम को बेन कर दिया है। मेरा अपना अनुभव है कि भोपाल के 95 फीसदी रिपोर्टर अपनी खबर कंपोज करने से पहले वह मीडिया मीमांसा देखते हैं। खैर बगैर किसी की चिंता किए मीडिया मीमांसा में अखबारों का पोस्‍टमार्टम करते रहे। इतना जरुर आग्रह है कि मीडिया मींमासा सुबह- सुबह पढने को मिल जाए तो बेहतर होगा। तीन बजे तक का इंतजार क्‍यों करना पडे
एस कुमार भोपाल

priyankakhat said...

adarniya bajaj ji,
baat khari ho to sab ko chubhti hai. apaki kalam ki dhar yuhin paini rahe. jis par pratibandh lagta hai wahi suna aur dekha jata hai aur lokpriya bhi ban jata hai.

priyanka kaushal
Lokmat samachar.

gurudatt tiwari said...

I am not happy with the way my letter was translated and published in Bichchu.com. As I am member of bhadas so I wrote it for this blog only, If I have respect for someone, It doesnt mean that I will like what alll he do. I dint said anything about Bichchu.com, but as journlist I have regard for my senior.

Unknown said...

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