एक थे नेता जी वो ग़लत काम करते थे। आतंकियों को मॉल देना उन्हें शरण देना उनकी दिनचर्या में शामिल था. एक दिन एक युवक को जोश आया और उसने नेता जी को मार डाला बस क्या था नेता जी अमर हो गए. और सौभाग्य बस नेता जी जब मूर्ती गांव में लगी और उनके आत्मशांति के लिए गांव वाले एकत्रित हुए तो उस युवक को ही उन्हें माल्यार्पण करने का मौका मिला. पता है उस युवक ने क्या किया. नेता जी को माला पहनते हुए कहा की ये जनता है इसकी यादास्त कमज़ोर है. आज माला पहनते हुए सब ताली बजा रहे हैं. पर कल आपकी इस प्रतिमा पर चिडिया और कबूतर अपना डेरा ज़मायेंगे और इस मूर्ती का इस्तेमाल अपने टॉयलेट के लिए करेंगे. यही नही तब कोई इस जनता के बीच से निकलकर इसकी सफाई करने नही आयेगा. आपको बता दूँ ये कहानी मैंने एक फ़िल्म में घटती देखी है. पर अब समझ में आ रहा है की ये नेता और जनता का नाता कितना पुराना है. कोई रैली हुयी तो जनता कुकुरमुत्ते की तरह किसी शहर की व्यवस्था चौपट करने पहुँच जाती है. उसे भी पता है की नेता जी किसी विपक्ष के नेता को गली देंगे और उस पर ताली बजाना है. मूंगफली वाले की मूंगफली छीनकर खाते हैं किसी फल वाले को पीटकर उसका फल खा जाते हैं और नेता जी की रैली को सफल बनाकर घर वापस आ जाते हैं. ये है हमारे देश की राजनीति जिसमे १०० भ्रस्ट नेता चुनाव ने खड़े होते हैं जनता को उसमे से एक सबसे अच्छे भ्रस्ट नेता को चुनना होता है. यहाँ के लचर कानून के कारन बहुत से नेता जी तो जेल में ही रहकर चुनाव जीत जाते हैं. सभी को पता है इनसे देश का उद्वार नही होने वाला पर किसे इसकी परवाह है. किसी भी तरह से पैसे बनने के लिए देश को गर्त में धकेलते जा रहे हैं. अब आज कल चल रहे राजनीतिक उठापठक को ही देख लीजिये जनता द्वारा देश की विकास के लिए तैयार नेता जी लोग संसद में अपनी मंदी लगाये बैठे हैं और अपनी कीमत फिक्स करने के बजाय जितना अधिक मिल जाए उसके आसरे बैठे हैं. मुझे तो लगता है की क्यूँ ना हम एक बार देश की तकदीर बदलने के लिए सामने आयें इस बिकावू राजनीति को दूर करके स्वस्थ भारत का निर्माण करें क्यूंकि युवा ताकत ही ऐसा कर सकती है, अब कब तक भगवान के पास जाने को तैयार ख़त्म हो चुके निर्बल लोग इस देश का भविष्य तय करेंगे.
अमित द्विवेदी
20.7.08
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान
Labels: देश नेता और जनता
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2 comments:
अमित भाई,इसके लिये भगवान जिम्मेदार नहीं है,हमने ही सत्यानाश करा है....
बडे भाई,
अपना किया धरा क्यों भगवान के सर फ़ोर रहे हो। भगवान को बेचने वालों कि कमी नही है। बात सिर्फ़ जिम्मेदारी की है।
जय जय भडास
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