दो दिन धमाके में गुजरे, आपको इन सब के बीच कोई कडी जुड़ती दिखी? मैं बात आतंकवादियों से जुडी कडी की नहीं कर रहा हूँ. बात है हमारी राजनीतिक कड़ियों की. धमाके हुए, लोग मरे, घायल हुए..................इन सब दुखद हादसों के बीच कुछ चिर-परिचित सी बातें दिखाई दीं. वैसे ये बातें लगभग हर आतंकी वारदात के बाद दिखाई देतीं हैं. आपको वैसे पता होगा पर हम लोग लग जाते हैं दुखी लोगों के दुःख में शरीक होने और इन बातों से अपना ध्यान हटा लेते हैं. आइये आपको फ़िर याद करवा देन वो बातें जो आतीं हैं ऐसे आतंकी मौकों के बाद.
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१- आतंकवादी हमारे हौसलों को कमजोर नहीं कर सकते.
२- हम पूरी सख्ती से आतंकवाद को कुचल देंगे.
३- जनता संयम से काम ले, स्थिति नियंत्रण में है.
४- देश तोड़ने की साजिश कभी सफल नहीं होगी.
५- आतंक को कुचलने के प्रयासों में कोई कमी नहीं आयेगी.
६- सरकार हर सम्भव अपराधियों को पकड़ने की कोशिश कर रही है.
७- आतंकवाद से डरे बिना लोगों का जीवन फ़िर अपने रास्ते पर.
८- ग़म को भुला कर फ़िर चल पड़ना भारतवासियों की ताकत है.
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ऐसे बयान इतने नहीं कई और भी हैं जो बताते हैं कि हम किस हिम्मत से आतंकवाद का सामना कर रहे हैं. मर रहे हैं, डर रहे हैं पर लोगों को दिखा रहे हैं कि हम न मर रहे हैं न डर रहे हैं.
इस मरने डरने के बीच कब तक चलेगी ये जिंदगी?
28.7.08
मरने-डरने के बीच जिंदगी
Posted by राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
Labels: आतंकवाद
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1 comment:
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर भाई,
जब तक पत्रकार लोग पत्रकारिता छोर कर लाला जी को सहलाते रहेंगे, लोग भी डरते रहेंगे. सहलाना छोर कर पत्रकारिता शुरू, डरना ख़तम क्यूंकि तब तो डराने वालों कि पत्रकार क्या क्या उतार देंगे ना, और हाँ कहें तो डराने वालों के नाम भी लिख दूं.
जय जय भड़ास
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