पहले मेरी बहन को एक घंटा लगता था
साड़ी पहननें मैं
पहननें के बाद भी
ठीक होती ही रहती थी जब तक .............
कितना चिढ़ती थी
मेरे चिढ़ाने पर और
प्रसन्न होते थे घर वाले यह देख कर
मगर फिर आधा घंटा
पन्द्रह मिनट
अंततः झटपट
अब भी मैं चिढ़ाता हूँ
पर अब वह नहीं चिढ़ती वह
वरंच हंसती है
सूखे होठो पर जबरन
ओढ़ी गई हँसी
फँस जाती है मेरे भीतर तक
20.7.08
बहन
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1 comment:
भावापूर्न अभिवयक्ति है ओर झकझोरने वाली भी
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