जो चिकने घड़े हैं
हाथ जोड़कर दांत निपोरते खड़े हैं
जो जुल्म करने वालों को मसीहा
और जुल्म को अपनी नियति समझते हैं
जो समझते हैं कि अपनी चमड़ी बचाने के लिये
तलुए चाटना बहुत जरूरी है
जो लड़ाई के हर मोर्चे पर सबसे आखिर में
और प्रसाद पाने के लिये सबसे पहले खड़े पाये जाते हैं
जो बिकट गंदी से गंदी गालियों को भी श्रद्धापूर्वक
प्रसाद की तरह ग्रहण करते हैं
नंगा कर देने पर भी जिनका खून नहीं खौलता
थूक कर चाटने की विधा को जिन्होंने
ललित कला का दर्जा दिलाया है
जो मक्खन से ज्यादा मुलायम और
बर्फ से भी ज्यादा ठंडे हैं
जिनकी रीढ़ की हड्डी
आस्था से तर्क की तरह गायब है
ऎसे बिलबिले
गिलगिले
लिजलिजे केंचुऒं से
डर तो नहीं लगता
पर घिन बहुत आती है ।
दिनेश चौधरी
12.7.08
जो चिकने घडे़ हैं
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2 comments:
रोएं खड़े कर दिये भाई.....
भावना को सशक्त शब्द दिये हैं आपने.
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