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9.7.08

हाय हेलो के बाद कहें क्या समझ नहीं पाये

हाय हेलो के बाद कहें क्या समझ नहीं पाये
मितृ हमारे संबंधों मे ऎसे पल आये
कुशल छेम हारी मजबूरी दर्द नही पूंछे
जीवन रस के पातर् हो गये असमय ही छूंछे
अवसादी घन उमङ घुमङ मन ऑगन पर छाये

2 comments:

Anil Kumar said...

मानो या ना मानो, यही कलियुग का कटु सत्य है. भारत में फिर भी लोग मिल जायेंगे जो आपका हाल चाल पूछ लेंगे. लेकिन भारत से बहार बहुत बुरा हाल है. लोग प्लास्टिक की मुस्कान तो देते हैं, हाल चाल भी पूछते हैं, लेकिन जब मैं अपना हाल चाल बताने लगता हूँ, तो उनके पास सुनने के लिए समय नहीं होता. जय हो कलियुग बाबा की.

Anonymous said...

पथिक जी,
बेहतरीन लिखा आपने, सच में आज कल के हमारे मन मस्तिष्क के मुताबिक ही है. आपको बधाई.
जय जय भड़ास