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5.2.09

वसंत आ गया

कैसे छिपोगे
कैसे छिपापाओगे
अपने आने का संदेश
तुम्हारी चुलबुली शरारतें
इशारा कर देती हैं
तुम्हारे आगमन का
लाख छिपोगे फिर भी
गगन करेगा चुगली
भवरे, तितलियाँ और कोपलें
करेंगी तुम्हारा स्वागत
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
गाव की पगडंडियों से
चली सरिता को
रोक पाओगे
पीली ओध्रनी में
इठलाती हवाओं को
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
मधुर मिलन की प्यास
जो कराएगी तुम्हारा अहसास
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
पत्तियों को चूमती
ओस को
मुंडेर पर बैठे
पंछियों के शोर को
जो गुनगुनायेंगे
प्रिया के संदेश को
हो जाओ सचेत
ऋतुराज आ गया
ऋतुराज आ गया ऋतुराज आ गया
वसंत छा गया
दीक्षांत तिवारी
हिंदुस्तान, आगरा
मीठीमिर्ची.ब्लागस्पाट.कॉम

3 comments:

gyanendra kumar said...

wah wah... maza aa gaya mitra. padne ke baad basant ka ehsas hone laga hai.
sandeep tiwari.

Anonymous said...

wah mere laal dixant,
aapne kar diya kai kaviyon ka ant,
lagta h dil pe chot khai h pyare, tabhi to jubhan pe shabd aa rahe h nyare.
vo pari kahan se laoo,
teri dulhan jise banaoo

badhai ho pyare

dr. bhanu pratap singh

हिन्दी के लिक्खाड़ said...

wah mere laal dixant,
aapne kar diya kai kaviyon ka ant,
lagta h dil pe chot khai h pyare, tabhi to jubhan pe shabd aa rahe h nyare.
vo pari kahan se laoo,
teri dulhan jise banaoo

badhai ho pyare

dr. bhanu pratap singh