उस आदमी को मैंने पहली बार इतना विचलित और घनघोर चिंतन में डूबे देखा। जो व्यक्ति असीम सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ हो, उसके माथे पर अपने परिवार और भविष्य को लेकर संशय की सलवटें देखना मन द्रवित कर देने वाला क्षण था।
अमिताभ बुधौलिया ‘फरोग’
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अविनाशजी की बात जो उनके ब्लॉग मोहल्ला पर प्रकाशित हुई है...
क्या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्म हो जाता है?
मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्हें मैं अपने कुछ दोस्तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।मैं दुखी हूं। दुख का रिश्ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी कथित पीड़िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्वेश्चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। कथित पीड़िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित कमेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्त मन में हजारों किस्म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्लॉग पर विष्णु बैरागी ने लिखा, ‘इस किस्से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्जुब नहीं...’, और इसी किस्म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्मविश्वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्त्री पक्ष के साथ है - इस वक्त मैं यही कह सकता हूं।
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अविनाशजी की बात जो उनके ब्लॉग मोहल्ला पर प्रकाशित हुई है...
क्या सचमुच एक झूठ से सब कुछ ख़त्म हो जाता है?
मुझ पर जो अशोभनीय लांछन लगे हैं, ये उनका जवाब नहीं है। इसलिए नहीं है, क्योंकि कोई जवाब चाह ही नहीं रहा है। दुख की कुछ क़तरने हैं, जिन्हें मैं अपने कुछ दोस्तों की सलाह पर आपके सामने रख रहा हूं - बस।मैं दुखी हूं। दुख का रिश्ता उन फफोलों से है, जो आपके मन में चाहे-अनचाहे उग आते हैं। इस वक्त सिर्फ मैं ये कह सकता हूं कि मैं निर्दोष हूं या सिर्फ वो लड़की, जिसने मुझ पर इतने संगीन आरोप लगाये। कठघरे में मैं हूं, इसलिए मेरे लिए ये कहना ज्यादा आसान होगा कि आरोप लगाने वाली लड़की के बारे में जितनी तफसील हमारे सामने है - वह उसे मोहरा साबित करते हैं और पारंपरिक शब्दावली में चरित्रहीन भी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं और अभी भी कथित पीड़िता की मन:स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा हूं।मैं दोषी हूं, तो मुझे सलाखों के पीछे होना चाहिए। पीट पीट कर मुझसे सच उगलवाया जाना चाहिए। या लड़की के आरोपों से मिलान करते हुए मुझसे क्रॉस क्वेश्चन किये जाने चाहिए। या फिर मेरी दलील के आधार पर उसके आरोपों की सच्चाई परखनी चाहिए। लेकिन अब किसी को कुछ नहीं चाहिए। कथित पीड़िता को बस इतने भर से इंसाफ़ मिल गया कि डीबी स्टार का संपादन मेरे हाथों से निकल जाए।दुख इस बात का है कि अभी तक इस मामले में मुझे किसी ने भी तलब नहीं किया। न मुझसे कुछ भी पूछने की जरूरत समझी गयी। एक आरोप, जो हवा में उड़ रहा था और जिसकी चर्चा मेरे आस-पड़ोस के माहौल में घुली हुई थी - जिसकी भनक मिलने पर मैंने अपने प्रबंधन से इस बारे में बात करनी चाही। मैंने समय मांगा और जब मैंने अपनी बात रखी, वे मेरी मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे थे। बल्कि ऐसी मन:स्थिति में मेरे काम पर असर पड़ने की बात छेड़ने पर मुझे छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया गया।ख़ैर, इस पूरे मामले में जिस कथित कमेटी और उसकी जांच रिपोर्ट की चर्चा आ रही है, उस कमेटी तक ने मुझसे मिलने की ज़हमत नहीं उठायी।मैं बेचैन हूं। आरोप इतना बड़ा है कि इस वक्त मन में हजारों किस्म के बवंडर उमड़ रहे हैं। लेकिन मेरे साथ मुझको जानने वाले जिस तरह से खड़े हैं, वे मुझे किसी भी आत्मघाती कदम से अब तक रोके हुए हैं। एक ब्लॉग पर विष्णु बैरागी ने लिखा, ‘इस किस्से के पीछे ‘पैसा और पावर’ हो तो कोई ताज्जुब नहीं...’, और इसी किस्म के ढाढ़स बंधाने वाले फोन कॉल्स मेरा संबल, मेरी ताक़त बने हुए हैं।मैं जानता हूं, इस एक आरोप ने मेरा सब कुछ छीन लिया है - मुझसे मेरा सारा आत्मविश्वास। साथ ही कपटपूर्ण वातावरण और हर मुश्किल में अब तक बचायी हुई वो निश्छलता भी, जिसकी वजह से बिना कुछ सोचे हुए एक बीमार लड़की को छोड़ने मैं उसके घर तक चला गया।मैं शून्य की सतह पर खड़ा हूं और मुझे सब कुछ अब ज़ीरो से शुरू करना होगा। मेरी परीक्षा अब इसी में है कि अब तक के सफ़र और कथित क़ामयाबी से इकट्ठा हुए अहंकार को उतार कर मैं कैसे अपना नया सफ़र शुरू करूं। जिसको आरोपों का एक झोंका तिनके की तरह उड़ा दे, उसकी औक़ात कुछ भी नहीं। कुछ नहीं होने के इस एहसास से सफ़र की शुरुआत ज़्यादा आसान समझी जाती है। लेकिन मैं जानता हूं कि मेरा नया सफ़र कितना कठिन होगा।एक नारीवादी होने के नाते इस प्रकरण में मेरी सहानुभूति स्त्री पक्ष के साथ है - इस वक्त मैं यही कह सकता हूं।
11 comments:
लगता है लेखक अपनी भावनाओं में बहकर कुछ ज्यादा ही भावुक हो रहा है,
जितना समझ में आया वो ये की अविनाश निर्दोष हैं, (लेखक की नजर में)
किस्से बयान कर रहे हो भाई, सब जानते हैं आपको भी और इन्हें भी
बुधोलिया जी...
आप अविनाश को मक्खन क्यों लगा रहे हैं, नहीं पता लेकिन सच ये भी है.....विरोध ब्लाग पर प्रकाशित हुआ है, इसे यहां दे रहा हूं ताकि आप लोगों को भ्रमित न कर सकें...
बलात्कार के आरोप के मामले में माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के फोर्थ सेमेस्टर की एक छात्रा ने विरोध को को एक मेल भेजा और फ़ोन पर बात की .भोपाल का दौरा कुछ महीने पहले कांचीपुरम जाते हुए किया था. तब कई छात्र छात्राए मिलने आए थे .फोर्थ सेमेस्टर की एक छात्रा ने जो कहा उसके कहे को हम जस का तस दे रहे है.
अविनाश माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में गेस्ट फेकल्टी के रूप में आते थे । उनको बुलाया तो इसलिए जाता था की पत्रकारिता के उनके लंबे अनुभवों को सुनकर उभरते हुए पत्रकार व्यवहारिक पत्रकारिता के बारे में सीखेंगे लेकिन अविनाश का लगभग हर लेक्चर विद्यार्थियों को पत्रकारिता के बिल्कुल अलग व्यवहार के बारे में बताता था जिसमे अविनाश कभी अपनी लव स्टोरी को विश्व की महान -तम प्रेम कहानी के रूप प्रर्दशित करते तो कभी पत्रकारिता में अपने लंबे सफर में अपने कांडों की बात करते । इस दौरान अविनाश लड़कियों को हसाने वाले ... ज्यादा नज़र आते थे । पत्रकारिता की जो थोडी बहुत बात होती थी वो केवल इसलिए ताकि उन्हें अगलालेक्चर लेने का मौका मिल जाए । अपनी इस तरह की शैली से उन्होंने कई विद्यार्थियों में लोक- प्रियता भी पा ली थी । लेकिन उनके लेक्चर में विद्यार्थियों की संख्या लगातार घटने लगी थी और लड़कियों को तो उनसे जैसे हिकारत से होने लगी थी . इसीलिए उनका लेक्चर क्लास में कम चाय के ठेले पर ज्यादा होता था . ऑफिस में आ कर मिलने का न्योता तो जैसे उनकी जुबां पर था । अक्सर शाम को महफिले जमाने का भी उन्हें खूब शौक था । ख़ुद को पत्रकारिता से नादान जाताना उन्हें बखूबी आता था । अविनाश ने जो कुछ किया है उसके बाद भी कुछ लोग उनके साथ खड़े हो सकते हैं ये बात चौकाती है क्यूंकि विश्वविद्यालय में जिसने भी अविनाश का लेक्चर किया है वो उनके बारे में अंदाजा लगा सकता है, अविनाश चूंकि बड़े पत्रकार हैं इसलिए विद्यार्थियों को नौकरी के सपने भी दिखाते रहे हैं ....हो सकता है की अविनाश के तथा कथित समर्थक भी इसी सपने में जी रहे हों । अविनाश अभी भी इसी आधार पर विश्वविद्यालय में और बाहर भी एक लॉबी तैयार करने में लगे हैं ,इस मामले में भास्कर समूह का दबाव भी हो तो कोई बड़ी बात नही , विश्वविद्यालय में इस घटना के बाद से अजीब सा माहौल है । क्लास में खड़े होकर बड़ी बड़ी बातें करने वाला और ख़ुद को मित्र बताने वाला व्यक्ति ऐसा कर सकता है ,इस बात ने सबसे ज्यादा झटका तो ख़ुद अविनाश को महान समझने वाले विद्यार्थयों को दिया है , अविनाश ने जो किया उसके बाद अब शायद कोई भी लड़की अपने शिक्षक के साथ घर नही जायेगी । अविनाश kehte हैं की लड़की का maansik santulan ठीक नही है , शायद इसलिए kyunki वो लड़की अविनाश की तरह नकली नही है , seedha होना शायद paagal होना है ।इसे लिखने का मकसद उस पीडा को दर्शाना है जो हम सब झेल रहे है. इस तरह के मामले में फौरन लड़की को चरित्रहीन घोषित करने की मुहीम भी छिड़ जाती है.वे बड़े पत्रकार है और उनके साथ बड़े लोग है .हमारा भी तो कोई साथ दे.
ब्लाग जगत की रंडियां आजकल कुछ ज्यादा ही हल्ला मचा रही हैं। गली-गली में मुंह काला कराने वाली रंडियां दूसरों के चरित्र का सर्टिफिकेट देने लगी हैं। इन रंडियों से पूछो कि किससे किससे मराया है। भारत में पुरुष स्त्री के साथ संभोग करे या स्त्री पुरुष के साथ करे, फंसता है आखिर में पुरुष ही। आजकल किस तरह लड़कियां सीना ताने लड़के फांसने के लिए घूमती रहती हैं, ये सभी को पता है। अविनाश का मन मचल गया होगा तो क्या दिक्कत.....
टिप्पदी लिखने वाले शायद तू ये भी नही मानेगा की तुझे जनम देने वाली माँ भी एक औरत है,
तुम जैसे भडुओं के सहारे ही अविनाश जैसे लम्पट दूसरों की माँ बहनों को बुरी नजर से देखते हैं,
लड़कियों कलिए इतनी गन्दी और घटिया भाषा का प्रयोग करके तुने ये भी साबित कर दिया है कि तू जिसका
खैर ख्वाह बन रहा है वो भी इतना ही या इससे भी कही अधिक घटिया होगा. तुझे अविनाश के पुरूष होने के नाते हर महिला से सम्भोग करने का लाइसेंस जारी करने को किसने अधिकार दिया है. अगर इतना बेकल हो रहा है तो ले जा उसे अपने घर और कर उसकी सारी इक्छा पूरी.
आपलोग जिस व्यक्ति की सफाई छाप-छापकर उसके लिए सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं, वो किसी भी तरह सहानुभूति या समर्थन का पात्र नहीं है। जो लोग उसे करीब से जानते हैं, उन्हें पता है कि वो इसी तरह का आदमी है। पटना में भी उसपर ऐसे ही बलात्कार की कोशिश का आरोप लगा था। जहां तक साज़िश वाली बात का सवाल है तो आप ब्लॉगर लोग अपने को कुछ ज्यादा ही महान समझने लगे हैं। 110 करोड़ लोगों के देश में आपको 200 लोग पढ़ते और जानते हैं और आप सोचने लगते हैं कि आप इतने बड़े और नामचीन हो गए हैं कि कोई आपको फंसाने के लिए कॉल गर्ल्स भी भेज सकता है। जिस ब्लॉगर पर ये आरोप लगा है वो इतनी बड़ी हस्ती नहीं है कि उसे फंसाने के लिए कोई दुश्मन किसी लड़की या कॉल गर्ल का इस्तेमाल करेगा, न ही कोई आम हिन्दुस्तानी लड़की या छात्रा अपना करियर और इज्जत दांव पर लगाकर उसके खिलाफ कैंपेन चलाएगी। इस तरह की बातें करना एक तरह से उस छात्रा का उल्टा चरित्रहनन है। आप किस आधार पर कह सकते हैं कि आपके ब्लॉगर भाई पवित्र हैं और वो लड़की चरित्रहीन। वो लड़की अभी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही है, आखिर वो क्यों किसी को बदनाम भर करने के लिए अपना करियर और इज्जत दांव पर लगा देगी। चूंकि आप ब्लॉगर लोग इस तरह के मामलों में चटखारे लेने के आदी हो गए हैं, इसलिए अपने ब्लॉगर भाई के लिए सहानुभूति बटोरने में लगे हैं। वरना सोचिए वो लड़की भी किसी की बहन है, किसी की बेटी है। अगर हमारी-आपकी बहन या बेटी के साथ ऐसा हो जाए, तो भी क्या हम ऐसी ही संवेदनहीनता दिखाएंगे, जैसी कि आरोप लगाने वाली लड़की के साथ कई ब्लॉगों पर दिखाई जा रही है? ये बड़े अफसोस की बात है कि आपलोग परोक्ष रूप से एक चरित्रहीन, कुंठित, भ्रष्ट और बेईमान आदमी का बचाव कर रहे हैं। उसके पिछले चैनल एनडीटीवी के लोग भी बताते हैं कि वो ऐसा ही था। बाहर वह ऐसे बताता था, जैसे चैनल की एडिटोरियल टीम के टॉप ब्रास में था वो, लेकिन एनडीटीवी के अंदर के लोग बताते हैं कि पूरे चैनल तो छोड़िए, वहां के आउटपुट डेस्क के पहले दस लोगों में भी नहीं था वो। उसकी बेशर्मी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उसे नौकरी से निकालने की नोटिस दी जा रही थी, उन दिनों भी वह दूसरों को नौकरी दिलाने के ख्वाब दिखाता रहता था। आखिर वहां से उसे बेइज्जत करके निकाला गया। प्रभात खबर के लिए काम करते हुए देवघर में भी उसका यही हाल था। आखिर क्यों उसी के खिलाफ साजिश होती रहती है? उसने कौन सा ऐसा तीर मार लिया है? टोटल आठ-नौ साल का करयिर है उसका। हां, वह आत्म-प्रचार करने, सुर्खियां बटोरने और दूसरों को गुमरहाह करने की कला में जरूर माहिर है। आप लोग ऐसे झूठे, मक्कार, भ्रष्ट, कुंठित और चरित्रहीन व्यक्ति के लिए सहानुभूति बटोरने का काम करेंगे, इसकी उम्मीद नहीं थी।
जो लोग अविनाश को जानते हैं, वो जानते हैं कि वो एक घटिया आदमी है। इस मामले में साज़िश वाली थ्योरी में इसलिए दम नहीं है, क्योंकि खुद उसने अपनी सफाई में माना है कि उसने लड़की को दफ्तर बुलाया और उसे घर छोड़ने का ऑफर दिया और घर जाकर छोड़ा भी। क्या साज़िश करने वाला उसके दिमाग में बैठकर साजिश कर रहा था, जो उसने लड़की को बुलाया और फिर उसे छोड़ने का ऑफर दिया? सच तो ये है कि अविनाश ऐसा ही है। चूंकि आपलोग उसे उसके ब्लॉग के माध्यम से जानते हैं इसलिए उसके लिए सहानुभूति हो रही है और चूंकि आपलोग उस लड़की को नहीं जानते, इसलिए उसकी मनस्थिति का अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे। कुछ मित्रों ने उस लड़की के चरित्र पर भी टिप्पणी की है। वो यह भूल रहे हैं कि आरोप लगाने वाली लड़की वह कोई वेश्या या कॉल गर्ल नहीं, बल्कि देश के एक महत्वपूर्ण पत्रकारिता संस्थान में पढ़ रही छात्रा है। क्या उसे अपनी इज्जत और करियर का ख्याल नहीं होगा? आखिर वह क्यों किसी को फंसाने के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगा देगी? यह आपलोगों की स्त्रीविरोधी मानसिकता बोल रही है, जो स्त्रियों को सिर्फ भोग की वस्तु समझती है। अविनाश के पैरोकार उसे वामपंथ और स्त्रीवाद से जोड़ रहे हैं। आखिर कितना जानते हैं वो अविनाश को? क्या उन्हें पता है कि वो किस दर्जे का अय्याश और कुंठित आदमी है? क्या उन्हें उसका पुराना इतिहास मालूम है? क्या उन्हें पता है कि पिछले दफ्तरों में उसने क्या-क्या गुल खिलाए और किन हालात में पिछले दफ्तरों से भी उसे निकाला गया? आखिर उसी के खिलाफ क्यों होती रहती हैं साजिशें? क्या दास इतना महान और नामचीन व्यक्ति है कि उसके खिलाफ इस स्तर की साजिश होगी? दास के वकीलो, आपलोग भी या तो उसी जैसे हो या फिर भोले हो या अनभिज्ञ हो। सच ये है कि दास बहुत गंदा आदमी है। पहले भी उसपर बलात्कार की कोशिश के आरोप लगे हैं। अभी वह इतना बड़ा नहीं हुआ है कि उसे फंसाने के लिए बार-बार लड़कियों को मोहरा बनाया जाएगा। जहां तक उस लड़की के पुलिस में नहीं जाने का सवाल है तो आप जानते हैं कि वह क्यों नहीं गई होगी। वह निश्चित रूप से उस फजीहत और परेशानी से बचना चाहती होगी, जो सबको पता है कि पुलिस में एक बार चले जाने पर तमाम औरतों को झेलनी पड़ती है। उसके पुलिस में नहीं जाने को अविनाश का ढाल मत बनाओ, उसे उस लड़की की मजबूरी के तौर पर देखो।
आप लोगों की आंखें खोलने वाली एक समाचार बता रहा हूं। अविनाश को ब्लागिंग की वामपंथी लाबी बचाने में लगी हुई है और अविनाश लड़की को चरित्रहीन साबित करने में जुटा हुआ है। ये वही अविनाश है जो ब्लागिंग में हर किसी को चरित्रहीन, दोगला, भ्रष्ट, पतित, अराजक आदि साबित करने में जुटा रहता है। पिछले दिनों इस आदमी को जब यह लगा कि मोहल्ला से बड़ा ब्लाग भड़ास बनता जा रहा है और भड़ास मोहल्ले के निर्देश पर काम कर नहीं रहा है तो उसने भड़ास और यशवंत सिंह के खिलाफ सुनियिजोति तरीके से अभियान चलाया। भड़ास को बैन कराने के लिए ब्लागवाणी के मैथिली और गूगल के बाबा के यहां मेल कराया और दबाव बनाया। जब उससे असफल हुआ तो यशवंत को बलात्कार का आरोपी बनाकर दुनिया का सबसे निकृष्ट और चरित्रहीन आदमी साबित करने की कोशिश की। इसके बावजूद जब भड़ास और यशवंत का कुछ नहीं बिगड़ा, उल्टे अविनाश को भड़ासियों के अभियान के चलते एनडीटीवी की नौकरी से हाथ धोना पड़ा तो भोपाल पहुंच गया। वहां इसने मायाजाल फैलाया और खुद को सबसे बड़ा संपादक साबित करने की कोशिश में जुट गया। लंगोट का ढीला अविनाश देवघर, रांची और पटना की तरह भोपाल में भी लड़कियों को फंसाने और उनके साथ सोने के लिए जाल बिछाना शुरू किया। लेकिन हर लड़की एक तरह की नहीं होती। पत्रकारिता की उस छात्रा ने अविनाश के वहशीपन की जब पोल खोल दी तो इन महोदय को तुरंत नौकरी से निकाल दिया गया। नौकरी से हाथ धोया अविनाश अब अपने चरित्र पर लगे दाग को धोने में जुट गया है। मुझे लगता है कि यशवंत भी अविनाश के चरित्र धोने के अभियान में मिला हुआ है। यशवंत भले ही इसे अपनी महानता समझे लेकिन मैं यह सलाह देकर जा रहा हूं कि सांप अगर फंदे में आ गया है तो उसका सिर पूरी तरह नहीं कुचलोगे तो वो स्वस्थ होकर एक दिन तुम्हे ही डसने के लिए मौके का इंतजार करने लगेगा।
हे भरासियों जगो और अविनाश दास की सच्चाई को बयान करो। पूरा देश देख रहा है कि अविनाश के बलात्कार करने के मामले में भड़ास कोई स्टैंड नहीं ले रहा है। ये जो बुधौलिया फरोग है इसकी इमेज भोपाल में कितनी खराब है, ये भोपाल वालो से पूछो। ये अविनाश का चमचा उसके बचाव में पोस्ट डाल रहा है और तुम लोग इसे भड़ास पर ही छाप रहे हो। धिक्कार है तुम्हें भड़ासियों.....
Friday, February 20, 2009
किसी स्त्री को चरित्रहीनता का सर्टिफिकेट देने से पहले अपने गिरेबान में भी झाँक लें
अविनाश पर कथित आरोप के बाद काफी लोग तो कुछ सुनने कहने आ ही नही रहे क्योंकि उन्हें यह व्यर्थ की झाय झाय से ज़्यादा कुछ नही लगता। वे भी बुद्धिमान हैं,तटस्थ रहने वाले। लेकिन जो लोग सामने आ रहे हैं उनमें से भी अधिकांश मोहल्ला की कमेंट मॉडरेशन के बाद केवल अविनाश के हक मे बोलने आ रहे हैं। (और न भूले की अविनाश जी कभी इस बात पर दम्भ करते थे की मोहल्ला पर कमेंट मॉडरेशन नही लगाया जाता चाहे किसी अनीषा,नलिनी किसी के भी लिए भद्दी बातें कमेंट मे लिखीं जाएँ उन्हें मोहल्ला पर पड़े रहने से अविनाश को कोई फर्क नही पड़ता) आज से पहले अविनाश ने हमेशा गालियों का फेवर ही किया है,और यह दम्भ भी भरा कि देखो हम तो गाली खाते भी है और देते भी हैं यह तो आम आदमी की भाषा का स्वाभाविक हिस्सा है तो अपनी खोखली सफाई वाली पोस्ट पर अब गालियों का खयाल करके मोडरेशन क्यों लगा दिया गया? अब जो कमेंट्स वहाँ आ रहे हैं - ज़रा ऐसे कमेंट्स के स्वरूप पर विचार किया जाए तो साफ दिखाई दे रहा है कि इन समर्थक पुरुषों के लिए औरत मात्र की कोई इज़्ज़त नही है। इन कमेंट्कारों से क्या यह जवाब मिलेगा कि पैसे और पॉवर के लिए उनकी बहने बेटियाँ भी इतनी आसानी से किसी मैनेजमेंट का मोहरा बनने को तैयार हो जाएंगी ? यदि हाँ तो मान लेना चाहिए कि हमेशा लड़की ऐसे केसों मे चरित्रहीन ही होती है ,पुरुष साफ होता है,चाहे वह इस केस की पीड़िता हो या किसी की भी बेटी, बहन, पत्नी या माँ !
अविनाश के पास तो फिर भी एक बड़ा मंच है, यह बड़ा सा ब्लॉग संसार है , आप जैसे छिछोरे टिप्पणीकार हैं .....फिर भी वह अपनी बात न कह पाने की असमर्थता दिखा रहा है......किसी ने उसे अपनी सफाई देने से नही रोका......तब भी आप सब उस “लड़की”, जो आप सब के हिसाब से पहले से ही बदचलन मान ली गयी है,उसके पास कोई ब्लॉग नही है ,न ही अविनाश की तरह की लॉबियिन्ग ही है। दर असल लड़की के पास न पैसा है , न कॉंटेक्ट्स हैं , न लॉबियिंग है , न शोहरत है , न ही वह भविष्य मे आपके किसी काम आ सकती है, न ही एजुकेशन ही पूरी है।
अपने विद्यार्थी जीवन मे ही वह लड़की अविनाशों को फँसाने लग गयी है,यह बात ऐसे आराम से कह दी जा रही है जैसे आप सभी को उसने फँसाया हो और आप उसकी हरकतों से वाकिफ हों।अभी उस लड़की के आप खिलाफ हैं और अविनाश के साथ हैं क्योंकि अविनाश आपका दोस्त है और लड़की कुछ नही। लेकिन अपनी बहन-बेटी-पत्नी की बात आएगी तो एक आदमी अपने करीबी से करीबी दोस्त क्या भाई पर भी विश्वास नही करेगा ।
.सहानुभूति जताना अलग बात है और किसी लड़की के चरित्र पर उंगली उठाना अलग बात...जब अविनाश कह रहे हैं कि वे उसे घर तक छोड़ने गए थे...और आप बता रहे हैं कि ...इस तरह की ...लड़कियां ऐसा करती हैं। भोपाल में रहते हुए अविनाश उसे जानते थे और घर छोड़ने लायक समझते थे, इसीलिए घर तक गए। मगर आप उसे चरित्रहीन बता रहे हैं....आपको कैसे पता ? यानी गड़बड़ है...कहीं पर..
एक कमेंट कहता है कि - जिन लोगों के खिलाफ अविनाश काम कर रहे थे और जिनकी आंखों में चुभ रहे थे उनके पास और हथकंडे भी कहां थे, पार पाने के लिए .................
.हमें बताया जाए कि वे ऐसा कौन सा काम कर रहे थे कि हिन्दी पत्रकारिता के मसीहा मान लिए गए हैं , या मसीहा बनने का रास्ता भी शायद यहीं से होकर गुज़रता है।
जिस देश मे हमेशा से यौन उत्पीड़न के मामलों को दबाया जाता हो ,जहाँ नॉयडा गैंग रेप पुलिस क्या देश भर मे खबर बन जाने के बाद भी ठप्प पड़ा हो ,जहाँ एक महिला पुलिस अधिकारी (के पी एस गिल केस) को इंसाफ पाने मे 18 वर्ष का समय लग गया हो वहाँ एक छात्रा के झूठे इल्ज़ाम मात्र से, जाँच समिति की रिपोर्ट से पहले ही अविनाश जी सम्पादकत्व गँवा बैठे हैं यह हमारे लिए वाकई हैरानी की बात है और इसे पचाना मुश्किल है। भास्कर समूह अपनी इज़्ज़त के डर से सच बयान नही करेगा , लड़की अपनी इज़्ज़त के डर से बाहर नही बोलेगी, विश्वविद्यालय अपनी इज़्ज़त के डर से भेद नही खोलना चाहेगा..........अविनाश किसके डर से चुप हैं ?अपने अन्दर का भय तो नही ? कंही तो कुछ गडबड है।
इसका क्या सबूत है कि अविनाश को बात कहने का मौका नही दिया गया और प्रबन्धन ने उन्हें यूँ ही चलता कर दिया? हमे नही लगता की अविनाश को हटाने के लिए किसी प्रबन्धन को उनके खिलाफ षडयंत्र करना पड़े और वह भी किसी लड़की को मोहरा बनाकर। यह एक निजी कम्पनी है , जब चाहेंगे हटा देंगे , इम्प्लॉयी को हटाने के लिए प्रबन्धन को वजहों की कमी नही होती ! इसके लिए इतनी बड़ी प्लानिंग की कतई ज़रूरत नही थी वो भी एक लड़की को खाम्खाह बदनाम करना पडे | यूँ भी प्रबन्धन पर आप मुकदमा कर ही सकते हैं । दीन-हीन बनने की बजाए अब भी चेत जाना ज़रूरी है।
इनके समर्थन मे पूरी विश्वास के साथ खड़े 70 लोग भूल रहे हैं कि अपना मतलब साधने के लिए इन्होंने प्राईवेट चेटों को खुब पब्लिक किया और कई बार उस व्यक्ती (इनमे कई महिलाएँ भी है) के आग्रह करने पर भी उसे नही हटाया।
18/2/09 को 6:37 पर विवेक द्वारा भड़ास पर लिखे गए कमेन्ट को पढ़ कर लगता है की अविनास दास से विवेक का कोई खास रिश्ता है या फिर वो ख़ुद भी अविनास दास की तरह लड़कियों की जिन्दगी से खेल कर उन्हें रंडी का नाम देते हैं और विवेक शायद ये भूल गए है की उनके भी घर में माँ, बहन और बेटियाँ हैं और कल अगर अविनास दास ने यही कृत्य उनके घर की लड़कियों के साथ किया होता तो शायद विवेक को बुरा नही लगता. कुछ तो शर्म करो विवेक इस तरह से बिना सच्चाई जाने किसी भी लड़की के चरित्र को उछालना ठीक नही है.दूसरी बात विवेक ने कही की आज की लड़कियां सीना ताने लड़को को फ़साने के लिए घूमती हैं तो शायद विवेक को इस बात का अनुभव अपने ही घर से हुआ है.
एक नामचीन ब्लॉगर - पत्रकार पर एक छात्रा ने लगाया छेड़छाड़ का आरोप ,नौकरी से देना पड़ा इस्तीफा
ब्लॉग की दुनिया में कोई ऐसा नहीं जो उन्हें न जानता हो । बहुत पुराने ब्लॉगबाज हैं वो । एक अखबार के संपादक भी हैं । उन पर एक लड़की ने लगा दिया है बलात्कार की कोशिश का आरोप। एक पत्रकारिता संस्थान में पढ़ने वाली उस लड़की ने अपने कुलपति को लिखित शिकायत दी है कि वो ब्लॉगर - पत्रकार एक दिन उसे घर छोड़ने के बहाने उसके घर तक पहुंचा , फिर उसके साथ जोर -जबरदस्ती की । पत्रकारिता संस्थान की छात्रा की मानें तो बहुत मुश्किल से उस दिन वो ब्लॉगर -पत्रकार के चंगुल से बच सकी । दूसरी तरफ ब्लॉगर - पत्रकार का कहना है कि ये इल्जाम सरासर झूठा है । ये पूरा मामला है भोपाल का । जिन पर आरोप लगा है उनका नाम है अविनाश दास । अविनाश दास भोपाल के डीबी स्टार अखबार में संपादक के पद पर थे । कल ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा है । दैनिक भास्कर ग्रुप के इस टेबलायड अखबार के संपादक अविनाश दास पर माखनलाल पत्रकारिता संस्थान की एक छात्रा ने संगीन आरोप लगाए हैं । उस लड़की ने माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युतानंद मिश्रा को लिखित शिकायत भी दी है । अविनाश दास से उस छात्रा की मुलाकात माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के गेस्ट लेक्चर के दौरान हुई थी । उसी दौरान कई छात्रों से अविनाश दास का परिचय हुआ । उनमें से कुछ छात्र उनसे मिलने - जुलने लगे । उसी में वो छात्रा भी थी । अब अचानक एक छात्रा द्वारा सनसनीखेज इल्जाम लगाए जाने के बाद भोपाल की पत्रकारिता जगत में हड़कंप मचा है । छात्रा का कहना है कि अविनाश दास ने एक दिन उसे फोन करके दफ्तर बुलाया , कुछ देर बातचीत के बाद अविनाश दास ने उसे घर तक छोड़ने का आफर दिया । छात्रा इसके लिए तैयार नहीं हुई लेकिन बार - बार कहने के बाद वो अविनाश दास के साथ घर तक जाने को तैयार हो गई । घर पहुंचकर अविनाश दास ने भीतर चल कर चाय पिलाने को कहा फिर वो घर के भीतर तक गए और उसी दौरान उन्होंने छात्रा के साथ छेड़खानी और जोर- जबरदस्ती करने की कोशिश की ।
छात्रा के मुताबिक उसके विरोध के बाद अविनाश दास उसे छोड़कर चले गए । उसके बाद उस लड़की ने अविनाश दास को एसएमएस किया , अविनाश दास ने भी उन्हें एसएमएस किया । मामला करीब एक हफ्ते पुराना है । 13 फरवरी को लड़की ने कुलपति को लिखित शिकायत की । छात्रा चाहती थी कि विश्वविद्यालय इस मामले में दखल दे और अविनाश दास के संस्थान को उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए बाध्य करे । तभी से इस मामले ने तूल पकड़ा । माखनलाल पत्रकारिता संस्थान कुछ छात्रों ने इस मामले में तल्ख तेवर अख्तियार किए । कुछ छात्रों ने दैनिक भास्कर के मैनेजमेंट के मिलकर अपना विरोध दर्ज कराया । उनका कहना था कि किसी भी हाल में आरोपी के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए । कहा तो ये भी जा रहा है कि वो लड़की अपने दोस्तों के साथ सोमवार को अखबार के मालिकों से मिली। उससे पूरी जानकारी लेने के बाद सोमवार की रात को ही दैनिक भास्कर प्रबंधन की तरफ से अविनाश दास से इस्तीफा ले लिया ।
दूसरी तरफ अविनाश दास लोगों को अपनी सफाई दे रहे हैं । उनका कहना है कि उन्हें फंसाया गया है। दफ्तर के भीतर और बाहर हुई साजिश के शिकार हो गए हैं । उन्होंने न तो उस लड़की के साथ कोई छेड़खानी की है , न ही कोई जोर -जबरदस्ती की है । उनका ये भी कहना है वो छात्रा खुद उस दिन उनके दफ्तर आई थी , उसे छोड़ने उसके घर तक जरूर गए थे लेकिन बाकी बातें बेबुनियाद है । उनका कहना है कि लड़की मानसिक रूप से बीमार है और किसी के बहकावे में आकर उनका चरित्रहनन कर रही है । इस बीच पता चला है कि भोपाल के कई पत्रकार अविनाश के पक्ष में भी खड़े हो रहे हैं । उनका कहना है कि कुछ लोग अविनाश को फंसाने का खेल रहे हैं । फंसने - फंसाने के इस खेल में उनके संस्थान के एक - दो वरिष्ठ पत्रकारों के नाम लिए जा रहे हैं । जबकि लड़की के साथियों का कहना है पूरी बात सच है । उस लड़की के पास मौजूद एसएमएस इस बात का सबूत है ।
अविनाश दास जाने - माने पत्रकार हैं । डीबी स्टार में संपादक के तौर पर ज्वाइन करने से पहले अविनाश दास दिल्ली में एनडीटीवी में आउटपुट एडिटर थे । उसी दौरान उन्होंने मोहल्ला नाम से एक ब्लॉग शुरू किया था । ब्लॉग की दुनिया में अविनाश का ब्लॉग बहुत चर्चित है । दिल्ली आने से पहले अविनाश झारखंड में प्रभात खबर में थे । एनडीटीवी में भी उन्हें किसी विवाद की वजह से छोड़ना पड़ा था । अब अविनाश दास नई परेशानियों में घिर गए हैं । हालांकि जानकारी के मुताबिक अभी तक लड़की ने एफआईआर दर्ज नहीं करवाया है ।
माफ कीजिएगा, मैं घटना के बहुत दिन बाद अविनाश दास की सफाई पर टिप्पणी कर रहा हूं-
यदि कोई संपादक से मिलने आया और उसकी तबियत खराब हो तो संपादक खुध उठकर उसे घर छोड़ने चल दे, यह बात गले नहीं उतर रही।
संपादक संस्थान की कार से उसे छुड़वा सकता था, अपने किसी सहयोगी से बोल कर आटो करवा सकता था, लेकिन अविनाश खुद ही अपनी कार या स्कूटर से उसे छोड़ने चल दिए, क्यों। क्या अविनाश इसका जवाब देंगे।
भास्कर में जिस तरह काम का दबाव रहता है, उसमें संपादक के पास इसकी गुंजाइश तो रहती नहीं कि वो अपनी पत्नी को घर छोड़ आए
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