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25.2.09

लैला-मंजनू की आखिरी पनाहगाह


लैला-मंजनू का नाम कौन नहीं जानता! ये नाम तो अमर प्रेम का प्रतीक बन गया है। लैला-मंजनू के आत्मिक प्रेम पर कई फ़िल्म बन चुकी हैं। लैला-मंजनू कैसे थे? कहाँ के रहने वाले थे? इनके परिवार वाले क्या करते थे? कौन जानता है। लेकिन ये बात सही है कि इन दोनों प्रेमियों ने अपनी अन्तिम साँस श्रीगंगानगर जिले में ली। श्रीगंगानगर जिले के बिन्जोर गाँव के निकट लैला-मंजनू की मजार है। दोनों की मजार पर हर साल जून में मेला लगता है। मेले में नवविवाहित जोडों के साथ साथ प्रेमी जोड़े भी आते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि बँटवारे से पहले पाकिस्तान साइड वाले हिंदुस्तान से भी बहुत बड़ी संख्या में लोग मेले में आते थे। मेले के पास ही बॉर्डर है जो हिंदुस्तान को दो भागों में बाँट देता है। राजस्थान का पर्यटन विभाग इस स्थान को विकसित करने वाला है। लैला-मंजनू की मजार को पर्यटन स्थल बनाने के लिए दस लाख रुपये खर्च किए जायेंगें।अगर इस स्थान का व्यापक रूप से प्रचार किया जाए तो देश भर से लोग इसको देखने आ सकते हैं। मजार सुनसान स्थान पर है ,इसलिए आम दिनों में यहाँ सन्नाटा ही पसरा रहता है।
लैला -मंजनू की इसी मजार के बारे में जी न्यूज़ चैनल पर प्राइम टाइम में आधे घंटे की स्टोरी दिखाई गई। सहारा समय भी इस बारे में कुछ दिखाने की तैयारी कर रहा है।

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