....... आप सब हार जायें ....आपको जनता के धन में से एक ठेला भी नही दिया जाना चाहिए । .....आप इसके हकदार नही है .....आप जनता को मुर्ख बना रहे है .....आप उनका अपमान कर रहे है ।
ये शाप है व्यथित लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी का ।
आज संसद लोकतंत्र के मन्दिर के रूप में अपनी पहचान खोता जा रहा है ....लगता है ....वहां मछली का बाजार लगा है । गंभीर चर्चा की बात तो छोडिये ,किसी भी तरह की चर्चा होना मुस्किल हो गया है
हमारे जन प्रतिनिधि कैमरे के सामने कुतों की भाँती भौकने का कोई भी अवसर नही छोड़ते ।
सोमनाथ जी ने सही कहा .....हंगामा करने वालों को एक फूटी कौडी भी नही देना चाहिए ।
.....पर हमारे आदरणीय सांसदों को इससे क्या लेना .....वे तो कसम खाए बैठे है ....हम तो हुडदंग करेगे ही ...
संसद से सम्बंधित कोई नियम कानून बनने के सवाल पर तो उनकी जबान बंद हो जाती है ........
ऐसे हम और आप जैसे लोग सोमनाथ जी की तरह व्यथित हो अपनी भडास ही निकाल सकते है ......
20.2.09
मछली का बाजार.......संसद
Labels: मार्कंडेय राय
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3 comments:
यही है भारतीय लोकतंत्र का चहेरा
यही है भारतीय लोकतंत्र का चहेरा
पुष्प कुलश्रेष्ठ jee thanks for coomment.
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