बड़े दिनों की शांति के बाद फिर बौधिक जुगाली करनेवाले चिपचिपे और पिलपिले किस्म के लोग इनदिनों व्यस्त हैं इस मुहीम में की ब्लॉग की दुनिया का जानवर ( माफ़ करें इससे बेहतर शब्द मैं इस्तेमाल नहीं कर सकता ) यानि बहुतों का भाई सखा और अन्नदाता अविनाश घटिया है या नहीं, अभी बहुत वक़्त नहीं हुआ जब मुझे , यशवंत जी और दूसरे ब्लाग्गरों को बाकायदा इस '' जानवर'' से मोर्चा लेना पड़ा था, कहानी बड़ी है वक़्त कम है,
इस बार भी ये जानवर चर्चा में हैं हमेशा की तरह अपनी हरकतों की वजह से, हरकतें जिनसे न पत्रकारिता का भला होना है न पत्रकारिता बिरादरी का, हाँ पूरी पत्रकारिता बिरादरी का भरोसा जरुर दांव पर है, कैसे... माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्विद्यालय के पत्रकारिता के छात्रों की एक साथी और शायद कल की होनहार पत्रकार को पत्रकारिता के बेहतरीन सबक देने के बजाय अपनी बाजारू कारीगरी से न सिर्फ वरिष्ठ पत्रकारों के प्रति इन नौनिहालों के मन में ढेर
सारी आशंकाएं भर दी हैं बल्कि अपनी ''जिस किस्म की भी हरकत हो'' उससे जिस बिरादरी का झंडाबरदार होने की कोशिश ये जानवर करता रहा है उसे न सिर्फ इस बार फिर शर्मिंदा किया है बल्कि पत्रकारों के पतन की एक और कहानी जो अक्सर दब जाया करती हैं जाहिर किया है, और जाहिर होने के बाद कईयों के निशाने पर भी है,
व्यक्तिगत रूप से कुछ ईमेल और मेल के आदान प्रदान के बाद इस '' जानवर'' को मैंने बहुत पहले ही खारिज कर दिया था, कईयों ने किया, इसकी नीचता का गवाह भी मैं हूँ की किस तरह हमको अपने ब्लॉग के जरिये ये धमकी देता रहा की आप मुझसे माफ़ी मांगे वरना साइबर क्राइम का मुकदमा आपके खिलाफ कर दूंगा, जब मैं अपने रिपोर्टर मित्रों के जरिये बाकायदा साइबर क्राइम सेल में पड़ताल कराई तो पता चला की ऐसी कोई रिपोर्ट तो दूर कोई शिकायत तक हमारे पास दर्ज नहीं है कहना था साइबर क्राइम सेल प्रभारी का, किसी को मापने के हजार पैमाने नहीं होते, इसकी कमीनगी मेरे सामने थी, खैर ....इस बार पत्रकारिता की एक छात्र ने छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज करायी है इस जानवर के खिलाफ, इस मौके पर कई बरसाती मेढक किस्म के लोग जिन्हेंअविनाश के पिछले रिकॉर्ड को लेकर पूरा भरोसा है की सेटिंग और चालबाजी में माहिर ये जानवर फिर कहीं न कहीं अपनी गोटी फिट कर लेगा और जल्द किसी संस्थान के मलाईदार पद पर बैठा होगा वो इस मौके पर इसके साथ खड़े होकर सहानुभूति दर्ज कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे, आखिर अविनाश के बुरे वक़्त में वो खड़े होंगे तोः उनके बुरे वक़्त में भी अविनाश खडा होगा ही, डीबी स्टार में भी अपने कई चप्पुओँ को इसने फिट ही किया है खैर......
लिजलिजे वामपंथियों का बैठकों में चाय और दारु गटकते हुए क्रांति करने और पैसेवाले घरों के लड़के और लड़कियों को विचारों की चासनी चटाकर उनका और उनके धन और शरीर और संसाधनों का शोषण करना जेएनयू में हजारों बार देखा है, अविनाश भी कुछ नया नहीं कर रहा इधर से उधर से किसी भी मुद्दे पर विचारों का मुलम्मा चढाकर नए लौंडोंको बरगलाता और हाशिये पर पड़े गुमनाम से चरित्रों को कृतार्थ करने का काम करता रहा है, अफ़सोस हर बार अविनाश का नाम चर्चा में आता है लेकिन किसी न किसी बुरे कर्म के चलते, शायद इस जैसों को पीट-पीटकर बचपन में सिखाया गया हो की की बेटा नाम '' बदनाम'' होकर भी होता है, प्रभात खबर में हरिवंश ने इसे बहार का रास्ता दिखाया, '' हरिवंश'' गलत थे, एनडीटीवी प्रबंधन गलत था अभी भास्कर प्रबंधन भी गलत है वजह की ब्लॉग में चौधराहट दिखानेवाले चौधरी अविनाश को इन सबने बाहर का रास्ता जो दिखाया,
शर्मनाक सिर्फ इतना है की अपनी-अपनी वजहों से अपने अपने हितों को सुरक्षित रखने की गरज से कुछ वामपंथी निठल्ले ओर अविनाश जैसी सोच रखनेवाले उसको सिर्फ इसलिए पाक-साफ़ घोषित करने में जुटे हैं क्यूंकि अगर एक छात्र के साथ छेड़छाड़ करनेवाले अविनाश की ये हरकत भी अगर दबा दी जाती है उनके लिए अच्छी खबर होगी जो इस जैसी हरकतों को अंजाम देने के सपने संजोये बैठे हैं, दो पत्रकारिता संस्थानों में पढाने के साथ साथ पिछले ६ साल से टीवी, रेडियो ,प्रिंट में घूमने के बाद भी इस किस्म के एक भी आरोप न लगने को अपनी उपलब्धियों में ही शुमार करना चाहूँगा, लेकिन इधर जिस तरह से एक विवादित चरित्र के जानवर( दूसरो के मामले में आदमी समझें) को कुछ बेशर्म बचाने में लगे हैं उसपर वाकई शर्म के सिवाय क्या भेजूं इनको, साहित्य में एक परंपरा सी हो गयी है की बिना दारूबाजी व एक आधे स्कैंडल के कोई साहित्यकार नहीं माना जाता या यूँ कहें की साहित्यकार बनाने या वामपंथी विचारक होने के लिए इस किस्म की वीभत्स हरकतें को अंजाम देना एक अनिवार्यता सी बनती जा रही है उससे भी शर्मनाक ये की ऐसी हरकतों को अंजाम देनेवालों को बेहद निरीह व कुचक्रों का शिकार बेचारा घोषित करवा दिया जाता है ताकि कुछ साझा हित साधकर बड़े सलीके ओर करीने से ऐसी शर्मनाक हरकतों के आगे किये जाने का रास्ता खुला रह सके, शायद तभी पत्रकारिता में कई कमीनगी को अंजाम देने के बाद ये घटिया जानवर बेहद मासूमियत से अपने किये पर पर्दा कुछ यूँ डालता है'' मेरी सहानुभूति उस लड़की व मेरे आलोचकों के साथ है''
प्राकृतिक न्याय में भरोसा रखने के कारण उम्मीद करता हूँ की अविनाश नामके जानवर को प्रकृति अपने तरीके से दंड देगी व इसे फिर से खुद को बेगुनाह साबित करने ओर शब्दों के साथ हेरफेर करके खुद को बचने का मौका नहीं मिलेगा, आमीन
( माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के वे छात्र जिनका हौसला डिगा है, उनसे अनुरोध की अपनी शानदार-जुझारू परंपरा को जारी रखें )....शुभकामनाएं.....
20.2.09
घटिया, घिनौना और शर्मनाक..यानि अविनाश..
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