नेपाल में माओवादियों के आने से निश्चित ही नेपाल पर भारत का प्रभाव कम हुआ है। चीन अपनी फॉरवर्ड डिफेंस पॉलिसी के तहत नेपाल और पाकिस्तान में अपना दखल बढ़ाना चाहता है। इसमें माओवादी सरकार चीन की मदद भी कर रही है। नेपाल में माओवादी संगठन भारत विरोध की बुनियाद पर ही खड़े हुए हैं। प्रचंड ने कई बार सुगौली समझौते का हवाला देकर कहा कि नेपाल आज भी भारतीय उपनिवेशवाद के अधीन है। बिहार में कोसी नदी के तांडव से हुई बर्बादी और काठमांडू स्थित पशुपति नाथ मंदिर में भारतीय मूल के पुजारियों की बर्खास्तगी को लेकर हुए विवाद में भी उनकी इसी मानसिकता की झलक मिलती है।
दोनों देशों की जनता का एक सहज-स्वाभाविक संबंध वर्षों से बना हुआ है। इसपर किसी भी प्रकार से आंच नहीं आनी चाहिए। भारतीय विदेश नीति के लिए भी एक चुनौती है कि वह नए नेपाली नेतृत्व को कैसे उसके भ्रम से निकालें। सबसे पहले हमें वहां की सभी पार्टियों को भरोसे में लेना चाहिए तथा नेपाल की सरकार को अपनी चिंता से दृढ़ता पूर्वक अवगत कराना चाहिए। लग रहा है भारतीय विदेश नीति के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण दौर है। इसका सामना बुद्धिमानी के साथ करना होगा।
19.2.09
नेपाल में भारत फेल होने के कगार पर .....
Labels: मार्कंडेय राय
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