बहुत दिनों से सोंच रहा था कि मैं भी कोई सीधी बात करूँ। पर जब भी सोंचता हर बात टेढी नजर आती। आख़िर यहाँ सीधा है ही क्या? जब धरती ही सीधी नही, हमारी जबान सीधी नही, रास्ते सीधे नही, तो बात सीधी कैसे हो सकती है। मुझे तो सब कुछ टेढा नजर आता है। तो चलिए कुछ "टेढी बात" ही की जाए । हो सकता है मेरी टेढी बात आप लोगों के भेजे में सीधे तरीके से आ जाए।
बात कुछ ही दिनों पहले की है। आदतन अपनी छुट्टी की शाम कुछ दोस्तों के साथ दिल्ली के चर्चित इलाके साकेत में व्यतीत कर रहा था। हम ४ दोस्त एक छोटे से बिअर बार में थे। कुछ मस्ती थी और कुछ शरारत। हाथों में ग्लास था और दिमाग में हफ्ते भर की थकान। कुल मिलकर माहौल अच्छा था। लोग थिरक रहे थे। लडकियां लड़को के गले में बाहें डाल कर झूम रही थी। पता नही खुमारी शराब की थी या माहौल का। खैर इधर उधर टेढा घुमा दिया आप लोगों को अब सीधे सीधे मुद्दे पर आता हूँ।
अचानक ही माहौल शांत हो गया। एक लड़का (कम से कम ६' लंबा और उतना ही चौडा होगा) एक लड़की के साथ जबरदस्ती करने को तत्पर था। हो सकता है वो लड़की उसके बाप की जागीर हो। मुझे नही पता। लड़की अपनी बचाव को चिल्लाती रही पर हम सब लोग (तकरीबन १०० से भी ज्यादा) चुपचाप तमाशा देखते रहे। अब हम जैसे सभ्य लोगों को शोभा भी तो नही देता झगडे झन्झट पे पड़ना। खैर मेरी एक दोस्त ने वेटर से कहा क्यों नही वो लोग बिच बचाव कर रहे है तो वेटर का बड़ा jenune सा जवाब था "लड़की धंधे वाली ही तो है चुप चाप उसके साथ चली क्यों नही जाती? ज्यादा नखरे दिखा रही है" बात तो सीधी सी ही थी... सच ही तो है हमारे देश में ऐसे लोगों को अपनी इक्छा रखने की आजादी सिर्फ़ सविधान में ही है। हम भी यही सोंच रहे थे ख़म-ख्वाह में इस लड़की के कारण हमारी पार्टी ख़राब हो रही है। जल्दी से जल्दी हम उस बला के टलने का इन्तेजार कर रहे थे। पर लगता था जैसे इतनी जल्दी कुछ होने वाला नही था। पता नही कहाँ से एक सजान युवा को समाज सुधारने का शौक चढ़ गया। वो बिच बचाव के लिए आ गया। पहले तो उसने पहले वाले सजान को समझाया। और कुछ कर भी नही सकता था, शरीर में तो वो उसका सिर्फ़ आधा था। पर पहले वाले के भेजे में बात आई नही और उसने चुप चाप इससे बिच से हट जाने की धमकी दी वरना वो उसका बहुत कुछ बिगाड़ सकता था। पर इस गधे के भेजे में भी बात सीधी तरीके से आई नही और उसने लड़की का हाथ पकड़ा और वहां से उशे चुप चाप ले जाने लगा। अब पहले वाले को ये अपनी बेइज्जती लगी और उसने भी धो डाला उस लड़के को। अब बात दो लड़को के मार-पिट पर आ गई थी तो बार वालो को बिच में आन पड़ा। पहले वाले सज्जन चिल्लाते हुए, गलियाँ देते हुए वहां से चले गए। खैर अच्छी बात इतनी थी वो लड़की बच गई, पर बचने वाला लड़का नही। उशे शायद ज्यादा ही मार पड़ी थी। ख़ुद से खड़ा भी नही हुआ जन रहा था। एक और सज्जन पुरूष ने जब उशे उठाने में मदद करनी चाही तो उसने मना कर दिया और "i never take help from eaunh (neutrals). you hundreds of people was watching the drama only. no one came here to safe this girl. you all are neutrals and your manliness is looking only on bed only. तुम सब सिर्फ़ बिस्तर पर मर्द हो। और मैं हिजडो से मदद नही लेता"
बात उसने कितनी सीधी कही थी। पल भर में उसने हम सब को हिजडा साबित कर दिया। सच ही तो है हम १०० लोग मिलकर एक को नही रोक सके थे। उस १ ने हम १०० को हिजडा बना दिया।
आख़िर बात सीधी ही तो है। हम हिजडे ही तो है। हर जगह हर पल कुछ न कुछ ग़लत होता रहता है पर हम छु चाप रहते है। घर आ कर उसकी कहानियाँ सुनाते है, पर करते कुछ नही। अब और कितनी सीधी बात बताऊँ। एक छोटी से कहानी सुना दी आप लोगों को। सीधी सी बात बता दी सीधे तरीके से शायद आप लोगों की समझ में आ जाए। बात अगर ठेधि कह दी हो तो माफ़ कीजियेगा।
23.2.09
I never take help from eaunch
Labels: Khamoshi
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