दुष्यंत के एक शेर से मै अपनी बात शुरू करता हूं ॥
यहां तो सि्र्फ गूंगे आैर बहरे लोग बसते हैं,
खुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा।
भडा़स हम पढे लिखे सो काल्ड मीडिया के लोगों का ब्लाग हैं। मै लंबे समय से इस पर आता रहा हूं किंतु मुझे निराशा ही हाथ लगी। हम सब यहां आते अपने मन की बात कहते एवं गायब हो जाते है। कहने वाले की बात से किसी को कोई सरोकार नहीं। कोंई हंगामा नही। पढने वाले के मन मे कोई लहर नही उठती। कोई प्रतिक्रिया नही नजर आती। किसी की अच्छी गजल या कविता है तो कोई बधाई देने वाला नही , कोई अच्छा लेख आया तो कोई ताली बजाने वाला नहीं । हम सब गूंगे तो हैं नही। यहां हमें अपने विचार व्यक्त करने है, किंतु हम लिखने वाले ही दूसरों के विचार पर चुप्पी साधेगें तो कैसे होगा । एसा क्यों
कई लेख ,कविता देखता हूं किंतु उस पर कोई टिप्पणी न पा निराशा ही हाथ लगती है। ५७५ सदस्यो वाले ब्लाग के लेख पर यदि २५ _३० टिप्पणी न हो तो इसे क्या कहा जाएगा। यह महफिल है, पढे लिखो की वजम है,मेरा अनुरोध है कि बजम में कलाम पढने वालो की होसला अफजाही नही होगी, तो यह गूंगो की पंचायत सी ही लगेंगी। अपने लेख के साथ, दूसरों के लेख पर अपनी टिप्पणी देकर हमें अपनी जींवंतता का परिचय देना चाहिए ।
गजल के शेर मे दोष हो तो उसे इंगित किया जाए ताकि हमारा साथी उसमें सुधार कर सके। किसी की कविता हो तो उसे क्षेत्र के जानकारों की टिप्पणी मेरी राय में जरूर आनी चाहिए
18.2.09
यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं
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