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16.2.09

यादें

हर एक पल में हम जीतें हैं, हर एक पल मरते हैं।
ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।
कितने बसंत हैं देख चुके, कितने सावन में भीग चुके।
फ़िर भी है मन में प्यास भरी और राह उसी की तकते हैं।
ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।
है नींद नही इन आंखों में पर रात सुहानी लगती है.
कुछ बचा नही अब जीवन में बस याद से साँसें चलती हैं।
जिस राह से ख़ुद को अलग किया उसकी चाह क्यों करते हैं
ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।
एक दिन जीवन थम जाएगा, हम दूर कहीं खो जायेंगे।
चलता रहेगा सबकुछ यूँ ही पर हम न नजर आयेंगे।
कोई याद करे न करे मुझको मेरी यादों में सब बसते हैं।
हर एक पल में हम जीते हैं हर एक पल मरते हैं।
ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।
संदीप तिवारी, आगरा
http://www.ssapne.blogspot.com/

2 comments:

gyanendra kumar said...

bahut khoob

mazaa aa gaya

musaffir said...

kya baat hai aagra me aaj kl har tarf kaviyon ki bahar hai.
bahoot khub likh rahe ho. likhte raho. meri subhkamnayein saath hain.