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8.2.11

कोई क्षेत्र नही छोड़ा भ्रष्टाचारीयो ने

कोई क्षेत्र नही छोड़ा भ्रष्टाचारीयो ने
दिनांक – 8 फरवरी 2011
आज देश का एक और घोटाला हमारे सामने हैं। भारतीय अनुसंधान संघठन ( इसरो ) और एक निजी कंम्पनी ( देवास मल्टीमीडिया सर्विसेज ) के बीच हुए एक समझौता मे एस-बैंड स्पेक्ट्रम के अनियंत्रित प्रयोग के अधिकार द्वारा पहुंचया गया। भ्रष्टाचारी के इस दौर में भारतीय शासक वर्ग का पतन होकर भ्रष्टाचारी, टैक्सचोरों और घूसखोरों से लेकर मिलावट खोरों तक का गिरोह पूरे राष्ट्र में सक्रिय हैं। राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय गिरोहबंदी से हजारों करोड़ रुपये डकारते चले जा रहे हैं। मामला बोफोर्स कांड से शुरु होकर आज तक एक के बाद एक घोटाले होते चले आ रहे हैं। इन सभी की हमें जानकरी है। आज की परीस्थितियों में उन सब का उल्लेख करना निरर्थक होगा। लेकिन इसके अलावा स्वयंसेवी संगठनों के धांधलेबाजों द्वारा ट्रस्ट एवं न्यासों की स्थापना पर एक नजर डालना भी बहुत जरुरी है। इनमें से कई एक जैसे- जवाहरलाल नेहरु मेमोरियल फण्ड, कमला नेहरु हास्पिटल ट्रष्ट, राजीव गांधी फाउण्डेशन और भी देश के अनेकों एन.जी.ओ और ट्रष्ट इसमें शामिल हैं। ऐसे संस्थानों को कई तरह के कर रियायतों के बजह से समय-समय पर भारी दान मिलता रहता है। इनके दानदाताओ में विदेशों से लेकर भारतीयों तक से भारी सहायता प्राप्त कर वे वही ऐतिहासिक उद्देश्य पूरा कर रहे हैं। इसके अलावा देश के भ्रष्टाचारियों द्वारा जैसे रिलायन्स, हर्षद मेहता, जे.के, जैसे अनेकों संस्थान व लोग हैं। जिस बजह से इनमें धन प्रचुर मात्रा में हैं। हमारे देश में ऐसे अनेकों संस्थाने गैरसरकारी संगठनों के रुप में पंजीकृत हैं। अधिक्तर ऐसे संगठनों एवं संस्थानों के न्यासों की समाज में बहुप्रचारित श्रेष्ठ उद्देशो कथित गतिविधियां– शिक्षा, स्वास्थ सेवा, सांस्कृतिक उत्थान, बच्चों का विकास, आदिवासियों के जीवन स्तर का सुधार इत्यादि। इन सभी का घोषित उद्देश्य जो कि एक सूक्ष्म स्तरीय योजनओं द्वारा समाज के अहम मुद्दे विकास से जुड़ा है। लेकिन इनका वास्तविक उद्देश्य केवल साम्राज्यवादी देशों के व्यापारिक हितों की रक्षा एवं पोषण करना मात्र है। अधिक्तर स्वयंसेवी संगठनों की गतिविधियां आज कल धन कमाने के उपजाउ क्षेत्र भर रह गए हैं समाज के उत्थान या धार्मिक विश्वासों से उनका कोई लेना देना नहीं है। हमारे यहां किसी धार्मिक संगठन पर जब-जब चर्चाएँ हुईं, तब-तब अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पूंजी द्वारा धर्म के राजनीति के रुप में हुई है। वास्तव में सरकार सम्पूर्ण विकास का काम खुद न करके इन स्यंमसेवी संस्थानों से कराती रहती है। इन्ही में से कई एक एन.जी.ओ के संचालक, जो शासन द्वारा विकास कर्यों पर खर्च किये जाने वाले धन को शासन में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों से मिलीभगत कर धन को अपने एन.जी.ओ के लिए अनुमोदित करा लेते हैं। फिर उस धन के मालिक खुद बन जाते हैं, और उस धन का कमीशन अधिकारी देने के बाद बचे रुपयों का एक मोटा हिस्सा अपने जेब में रख लेते हैं। इसके बाद बाकी बचे रुपये से जैसे तैसे प्रोजेक्ट समाप्त कर अपने एकाऊनटेन्ट से हिसाब किताब में लीपा-पोती करवा कर चाटर्ड एकाऊनटेन्ट से उस पर हस्ताक्षर करा लेते हैं और प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अन्तिम माह 31 मर्च के बजाए अप्रैल, मई तक धन का लेखाजोखा शासन में जमा करके एक मोटी रकम हजम कर निश्चिन्त हो जाते हैं। फण्ड को पास करते वक्त अधिकारी एन.जी.ओ मालिक से सौदेबाजी करता है, जिसमें 5 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक का कमीशन पहले ही लेकर धन को निर्गत कर देते हैं उसके बाद अब बारी एन.जी.ओ. मालिक की, शिक्षा देने के नाम पर कुछ शहर के मलिन बस्तियों के या गाँवों के बच्चों को एक जगह इक्कठा कर किसी एक नौजबान बेरोजगार युवक से बच्चो को A,B,C,D या क,ख,ग, दो-तीन दिनों तक पढ़ाकर बच्चों में टाफियाँ बटवा दिया जाता है। और इस तरह अपने काम की इतीश्री कर लेते हैं इसी तरह प्रोजेक्ट का काम साल दर-साल चलते रहते हैं। एक प्रोजेक्ट का काम समाप्त होते-होते दूसरे अन्य प्रोजेक्ट को शासन में बैठे अधिकारियों से मिलीभगत कर उस प्रोजेक्ट पर खर्च होने वाते रुपये को अग्रिम निकलवा लेते हैं। यह अलग बात है कि देश में अभी तक हुए और हो रहे भ्रष्टाचारों में यह भ्रष्टाचार बहुत बड़े नहीं तो छोटे भी नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि सभी N.G.O इस तरह नहीं चल रहे हैं कुछ एक स्यंमसेवी संस्थाएं अच्छे ढंग से काम कर रहे हैं, यदि देश की कुल N.G.O में से आधे भी सही तरह से काम करे तो सही अर्थों में समाज का कल्याण होगा।

2 comments:

सुनील गज्जाणी said...

नमस्कार !
भ्रष्टाचार देश को किस दिशा की और ले जा रहा है ये एक चिंतन का नहीं किसी एक्शन का समय है , अगर कोई कठोर नियम नहीं बनाये नहीं गए तो देश मेरा देश है महान है नहीं भ्रष्टाचार है महान कहना पड़ेगा , एक आम आदमी के साथ मंत्री के साथ संतरी को भी सोचना आवश्यक है , नहीं तो जिस प्रकार जन संख्या में हम अवल होते जा रहे है वैसे ही इस में भी हो जायेगे !
सादर

अजित गुप्ता का कोना said...

देश में जितनी योजनाएं हैं, उतने ही भ्रष्‍टाचार हैं। आप कहीं भी हाथ डालिए आपके हाथ कीचड़ से ही भरे हुए मिलेंगे। आज जितने भी एनजीओ हैं वे सब सरकारी धन पर ऐश कर रहे हैं और यदि इनके मालिकों को देखा जाए तो सब ही सेवानिवृत्त अधिकारी मिलेंगे।