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21.2.11

परचे की जांच से क्या हासिल हो जाएगा?

दीप दर्शन सोसायटी के मुद्दे पर छपे परचे को लेकर विधानसभा में हुए हंगामे के बाद हालांकि विधानसभा अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत ने उसे जांच के लिए गृहमंत्री को सौंप दिया है, मगर उसकी जांच से कुछ हासिल हो जाएगा, इसको लेकर संदेह ही है।
सर्वप्रथम तो पुलिस को यह जांच करनी होगी कि वह परचा आखिर छपा कहां है, जो कि बेहद कठिन काम है। आपको याद होगा कि पिछली सरकार में विधानसभा के पटल पर रखी गई वह सीडी, जिसके कारण तत्कालीन न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन को इस्तीफा देना पड़ा था, उसी का पता सीआईडी सीबी नहीं लग पाई कि वह कहां तैयार हुई और किसने तैयार करवाई थी, तो क्या परचा किसने और कहां छपवाया, यह पता लगाना आसान काम है? रहा सवाल परचे को छपवाने  वाले और उसकी मंशा का तो, यह पूरी तरह से साफ है कि उसे उसी ने छपवाया होगा, जिसे दीप दर्शन सोसायटी को सस्ते में जमीन आवंटन के कारण पेट में दर्द हुआ होगा और मामले को गंभीर बनाने के लिए मुख्यमंत्री के पुत्र को लपेटा और जयपुर में सत्ता के गलियारों में बंटवाया होगा ताकि मुख्यमंत्री खुद को बचाने के लिए दबाव में आ कर जमीन का आवंटन रद्द कर दें। हुआ भी यही। मुख्यमंत्री ने अपने आप को व अपने परिवार को पाक साफ साबित करने के लिए तुरत-फुरत में जांच करवाए बिना आवंटन रद्द कर दिया। मजे की बात ये है कि आवंटन रद्द होने के बाद अब मामले की जांच की जा रही है। परचे की जांच भी अब शुरू होगी। कुछ लोग तो यह तक बताते हैं कि यह अजमेर नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष पद हासिल करने को लेकर हो रही खींचतान की वजह से वजूद में आया। खैर, जिसने परचा छपवाया, उसका तो मकसद पूरा हो ही गया। हां, बाद में गहलोत विरोधी लॉबी व जयपुर के कई पत्रकारों ने परचे को खूब जांचा-परखा, मगर उन्हें मात्र परचे को आधार बना पर हमला करना उचित नहीं लगा। 
रहा सवाल भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी का उस परचे को विधानसभा के पटल पर रखने का तो यह पूरी तरह से साफ है कि उनका मकसद तो अजमेर के विपक्षी विधायक होने के नाते महज हंगामा करना था। उन्हें उस परचे के बारे में कुछ भी नहीं पता। खुद उन्होंने ही कहा कि उनके पास तो डाक से आया था। अर्थात खुद विपक्षी विधायक तक को यह पता नहीं कि परचे में वैभव गहलोत का नाम क्यों और किस आधार पर छापा गया है? यदि उन्हें पता होता तो जरूर कुछ बोलते। उनकी सबसे बड़ी चूक ये हुई कि वे परचे और दीप दर्शन सोसायटी के खिलाफ की गई शिकायत के बीच अंतर्संबंध स्थापित नहीं कर पाए, जिसकी वजह से आवंटर रद्द किया गया। और इसी का परिणाम यह रहा कि कुछ देर तक हंगामा होने के बाद आसन की ओर से जांच का आश्वासन दिए जाने के साथ ही मामला ठंडा पड़ गया। और जांच का क्या होना है, यह भी सभी जानते हैं।
यदि यह मान लिया जाए कि मात्र अजमेर नगर सुधार न्यास अध्यक्ष पद को लेकर हुई टांग-खिंचाई की वजह से परचा छपवाया गया तो जाहिर है कि इस परचे को किसी कांग्रेसी ने ही छपवाया होगा और संभव है मुख्यमंत्री को अपने सूत्रों से उसका पता भी लग चुका होगा कि कारसतानी किस की थी। अब कम से कम वह तो न्यास सदर नहीं बन सकता, जिसके लिए उसने इतनी मशक्कत की।
वैसे बताया जाता है कि परचा 10, जनपथ, दिल्ली तक भी भेजा गया, मगर कांग्रेस सुप्रीमो ने उस पर कोई गौर नहीं किया।

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