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28.2.11

याचना नहीं अब रण होगा-ब्रज की दुनिया

 

anna
मित्रों,भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लडाई अब निर्णायक मोड़ पर आ गयी है.३० जनवरी को रामलीला मैदान से जो शंखनाद किया गया था आज उसने उसी ऐतिहासिक मैदान पर विराट रूप ग्रहण कर लिया है.बाबा रामदेव व अन्ना हजारे के नेतृत्व में लाखों भारतवासियों ने इस ऐतिहासिक मैदान से भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अहिंसक जनयुद्ध छेड़ने का ऐलान कर दिया है.
मित्रों,रामायण में एक प्रसंग है कि राम सागर से मार्ग प्रदान करने की विनती करते हैं.लगातार तीन दिनों के अनुनय-विनय के बाद जब धीरोदात्त राम को कोई परिणाम निकलता नहीं दिखता तब वे ब्रह्मास्त्र का संधान करते हैं और तब समुद्र त्राहि-त्राहि करता हुआ राम के श्रीचरणों में आ गिरता है.
हमने भी पिछले ६४ सालों में बहुत अनुनय-विनय किया.विश्वास किया नेताओं के भाषणों पर कि भ्रष्टाचार को समूल नष्ट किया जाएगा.लेकिन आश्वासन आश्वासन बने रहे,घोषणाएं घोषणाएं बनी रहीं.हम ठगाते रहे और नेता-अफसर मालामाल होते रहे.एक विदेशी बैंकों में धन जमा करता रहा तो दूसरा देसी बैंकों के लौकरों में सोने की ईटें.अब याचना करते-करते हमारे हाथ थक गए हैं और वोटिंग मशीन का बटन दबाते-दबाते ऊंगलियाँ ऐंठने लगी हैं.
मित्रों,अब हम व्यवस्थापक नहीं बदलेंगे.हमें नहीं चाहिए एक के बाद एक भ्रष्टाचार के आगे मजबूर हो जानेवाले या इस महाभोज में शामिल हो जानेवाले प्रधानमंत्री.एक राजा और दो-चार कलमाड़ी को कुछ दिनों के लिए जेल भेज देने से भ्रष्टाचार नहीं मिटनेवाला,क्योंकि हमारा कानून और तंत्र सत्ता का मुखापेक्षी है.हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसे कानून बनाने होंगे व ऐसा तंत्र (सिस्टम) स्थापित करना होगा जिसमें भ्रष्टाचारियों के खिलाफ स्वचालित तरीके से कार्रवाई हो.जनता को धोखा देने के ख्याल से केंद्र सरकार ने भी एक लोकपाल बिल बनाया है.इसके अंतर्गत एक बार फिर से सतर्कता आयोग की तरह ही लोकपाल को भी सिर्फ सिफारिशी अधिकार दिया गया है.अगर यही करना है तो फिर सी.वी.सी. से अलग किसी लोकपाल नामक संस्था बनाने की जरुरत ही क्या है?साथ ही सांसदों और मंत्रियों पर मुकदमा चलने के लिए भी इसमें लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री से अनुमति लेने का प्रावधान किया गया है.लेकिन जब गुनाहगार खुद प्रधानमंत्री या लोकसभा अध्यक्ष हो तब?तब यह सरकार प्रायोजित लोकपाल कुछ भी नहीं कर पाएगा सिवाय मुंह ताकते रहने के.
इसलिए देश की कुछ जानी-मानी  देशभक्त हस्तियों ने अलग से जन लोकपाल विधेयक तैयार किया है जिसमें व्यवस्था की गयी हैं कि ९ सदस्यीय लोकपाल संस्था के सदस्य जनता द्वारा सीधे चुने जाएँ और सीधे तौर पर जनता के प्रति ही जवाबदेह भी हों.देश जनता का है,संविधान और संसद जनता का है और जनता के लिए है.इसलिए इसमें कोई अनहोनी नहीं है यदि जनता ही सीधे लोकपालों का चुनाव करे.इस लोकपाल को दंडात्मक अधिकार होगा.वह भ्रष्टाचारियों पर मुकदमा चलाएगा.उनकी संपत्ति जब्त करेगा और सजा भी दिलवाएगा.उसके दायरे में सभी लोग होंगे,पूरा भारत होगा;भंगी से लेकर राष्ट्रपति तक हर कोई होगा.
लेकिन हमारी सरकार इस बिल को स्वीकार करने को तैयार नहीं है.वह देश को लाचार लोकपाल देकर काम निकाल लेना चाहती है.लेकिन जनता को अब किसी भी तरह का झुनझुना नहीं चाहिए.जनता अब किसी भी तरह के और किसी भी तरह से भुलावे में नहीं आनेवाली.उसे तो जो चाहिए सो चाहिए ही और चाहिए तो बस जन लोकपाल.
आज ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जनता-जनार्दन ने अपने विराट रूप का प्रदर्शन किया है,५ अप्रैल से युद्ध शुरू होगा और इस महाभारत में जनता अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण बनेंगे प्रखर गांधीवादी अन्ना हजारे.आगे-आगे अन्ना होंगे,उनके पीछे होंगे बाबा रामदेव,किरण बेदी,स्वामी अग्निवेश,अरविन्द केजरीवाल आदि और उनके पीछे होगा पूरा भारत;राम,मोहम्मद,ईसा और गोविन्द के सभी अनुयायी.इस भ्रष्ट सरकार में शामिल लोगों ने अगर आज की रैली का दूरदर्शन पर दूरदर्शन किया होगा तो वे अवश्य भारत के आकाश में हो रही सितारों की गुफ्तगू और उनके इशारों को समझ गए होंगे.
देश के नीति-निर्माता समझ गए होंगे कि देश की जनता क्या चाहती है.अब यह उन पर निर्भर है कि वे सहूलियत से जन लोकपाल की जनाकांक्षा को स्वीकार कर लेते हैं या ढीठ धृतराष्ट्र व दुर्योधन की तरह रणभूमि को आमंत्रण देते हैं.अगर इस बार रण सजाया गया तो सरकार की हार पूर्वनिश्चित है क्योंकि विराट जनता के आगे न तो कोई तोप काम करती है और न ही बदूकें.मिस्र,ट्यूनीशिया और लीबिया के हालात इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं.स्वतंत्रता का यह दूसरा संग्राम बड़ा भीषण होगा और दूरगामी प्रभावों वाला होगा.याचना का समय अब बीत चुका है.रामरुपी जनता ने सत्याग्रह ब्रह्मास्त्र का संधान कर लिया है.याचना नहीं अब रण होगा,संघर्ष बड़ा भीषण होगा.जय चंद्रशेखर आजाद,जब भारत.

4 comments:

तदात्मानं सृजाम्यहम् said...

भाई साब, वो तो सब ठीक है, समझ में आ रहा है कि लाखों लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैं, भ्रष्टतंत्र को उखाड़ फेंकेंगे। किंतु, आगे के लिए क्या कोई ठोस रणनीति है। कौन से लोग सत्ता में आएंगे, किन्हें कुर्सी पर बिठाया जाएगा। जो लोग आगे आएंगे, उनके बाबत फैसले कौन करेगा। क्या वे पारदर्शी और ईमानदार ही होंगे। जनता पर कैसे भरोसा करोगे कि वो सही को ही चुनेगी। स्वाद के लिए तो लोग जहर भी फांक लेते हैं-ऐसे में भ्रष्टाचार को गले लगाना तो कहीं ज्यादा आरामदायक है। खतरा बड़ा है किंतु मजेदार तो है। और इस बात की भी क्या गारंटी है कि छद्म और पाखंड से भरे लोग कहीं भ्रष्टाचार का चेहरा नया नहीं कर देंगे। यदि मान लिया जाए कि गैरिक वस्त्रधारी राजनीति करेंगे, तो उनकी शुद्धता की गारंटी कौन देगा। तमाम गैरिकवेशधारी जब जनजन का मन छल रहे हैं, उन्हें धोखा दे रहे हैं, सेक्स रैकेट चला रहे हैं, नशे की प्रसाद बांट रहे हैं, ऐसे में कोई उनपर भरोसा कैसे करे। सत्ता का मद पीने के बाद कहीं यह और विकृत रूप न अख्तियार कर ले। ​

Shikha Kaushik said...

sangharsh to jaree rahna hi chahiye .shandar aalekh .

M. Afsar Khan said...

aapke jajbe ko salam

tension point said...

@ तदात्मानं........ भाईसाहब क्या यही सब सोच कर अंग्रेजों के विरुद्ध हमारे क्रांतिकारी और अन्य नेता अपना बलिदान देने को राजी होते थे ? या ये सोच कर कि अंत में तो मरना ही है व्यक्ति अपने भले के लिए काम करना छोड़ देता है ?

देश भक्तों का अभियान ।
भारत स्वाभिमान ॥