कहते हैं चौरासी लाख योनिओं से गुजर कर मानव शरीर पाती है आत्मा, और मानव योनी हीं एक मात्र कर्म योनी है जिसमे आत्मा मोक्ष प्राप्त करके हमेशा के लिए परमात्मा को पा सकती है बाकी सारी योनियाँ तो भोग योनी है जो केवल पूर्व के कर्मों का फल भोगने के लिए होती हैं | अक्सर आत्मा मानव शरीर पाकर अपने मकसद को भूल जाती है और सांसारिक माया मोह में पड़ कर फिर से जीवन मरन के चक्र में पड़ जाती है |
इस कविता में मैंने आत्मा को एक प्रेमी के रूप में दर्शाया है जो की अपनी मोक्ष रुपी प्रेमिका को सांसारिक मोह में पड़ कर भूल चूका है |
हजारों बेडिओं में तू जकड़ा है
ह्रदय द्वार लगा कड़ा पहरा है
पलकों में ..मधुस्वप्न सा लिए
अँधेरे में निमग्न सा जीरहा हैं
न फ़िक्र है तुझे इन बेडिओं की
न चिंता हीं तुझे इस तिमिर की
दुष्यंत सा भूला ... हुआ क्यों हैं
कुछ याद कर उस शाकुंतल की
राज पाट में क्यों भ्रमित हुआ है
भोग में आकंठ.. तू डूबा हुआ हैं
मिथ्याडम्बर में खोया हुआ सा
नेपथ्य में प्रीत को भूला हुआ हैं
अरे देखो उसको कोई तो जगाओ
ईश्वर से उसका.. परिचय कराओ
सच्ची प्रीत.. वो जो भूला हुआ है
कोई उसको. याद तो अब दिलाओ
कह दो उसे बेडिओं को तोड़ दे वो
स्वप्न से जागे मोहपाश तोड़ दे वो
अपनी शाश्वत प्रियतमा को पाकर
जगत के सारे.... बंधन तोड़ दे वो
4 comments:
राज पाट में क्यों भ्रमित हुआ है
भोग में आकंठ.. तू डूबा हुआ हैं
मिथ्याडम्बर में खोया हुआ सा
नेपथ्य में प्रीत को भूला हुआ हैं
सुन्दर सन्देश देती रचना। बधाई आलोकिता जी।
Dhanyawaad Vandna ji aur nirmala ji aap dono ka protsahan badhane ke liye
यही शाश्वत सत्य है और इसी से मानव अनभिज्ञ है ……………इस भाव को बहुत ही सुन्दरता से उभारा है।
Beautiful and inspiring creation . Quite motivating indeed . I genuinely liked it.
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