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23.2.11

भैरवी......(राज शिवम)

भव का जो कारण है,वही भैरवी है।ये रक्षिका के साथ जीव का परम हितैषी है।जीवन में कहा चूक हो गई तथा आसुरी शक्ति का दमन हो,सदमार्ग पर कैसे चला जाये,ये जाँचती है,परखती है,साधक को उचित मार्ग पर चलाती भी है।भरण पोषण के साथ,संकट से परे रख कर साधक को साधना मार्ग पर आगे बढ़ाती है।भय से मुक्त कर के भव बंधन से मुक्त कराती है।इस सृष्टि में हमेशा जीव के उद्धार के लिए क्रियाशील रहती है।गोपणीय मार्ग से आश्चर्यजनक रुप से अपने साधक का मार्ग प्रशस्त करती है।
साधक के विकट समस्या का भी निदान करती है।इनकी साधना से जीव को ज्ञान के साथ भाव प्रकट हो जाता है।ये साधक के हर स्थिती में सहायक होती है,ताकि श्रद्धा,विश्वास टुटने ना पाये।ये ऐसी लीला रचा देती है,साधक को स्वप्न लोक में,ध्यान में कई दिव्य अनुभूति कराती रहती है,और उसी अनुभूति के साथ साधक आगे बढ़ जाता है।ये साधक के उदर पालन के साथ उसकी रक्षा भी करती है,ताकि कोई दुष्ट शक्तियाँ साधक के समक्ष अवरोध ना खड़ा करे।ये प्यारी माँ है,इनकी आँखों से हमेशा करुणा बरसती रहती है।इन्हे "त्रिपुरा भैरवी" भी कहा जाता है।

क्रमशः अगले पोस्ट में माँ छिन्नमस्तका की महता पर प्रकाश डाला जायेगा...

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