रविकुमार बाबुल
आपको याद होगा, भेड़ का क्लोन तैयार कर, ईश्वर को मात देकर एक भेड़ अपने अस्तित्व में आ चली थी...। यह देख समूची दुनिया स्तब्ध थी, ईश्वर को पूजने वाले सशंकित थे, तो नास्तिकों का परचम फिर लहलहरा उठा था। जी... प्रकृति जब नाराज होती है तब तमाम आपदाएं आती है और आपको याद होगा भुज का वह हृदयविदारक दृश्य भी, जब वहां जलजला आया था और पूरा शहर ही मिट-सा चला था, जी....ऐसा ही प्रशासनिक जलजला इन दिनों मध्यप्रदेश के ग्वालियर में आया हुआ है, चारों तरफ तोड़-फोड़ जारी है। प्रशासनिक नुमाइंदे न कुछ सुनने को तैयार है और न ही इस मसले पर कुछ कहने को। गरीबी हटाने के लिये गरीबों को मार दो जैसे जुमले की तर्ज पर उनका एक लक्ष्य है कि जब दुकान या मकान ही नहीं बचने देगें या रहने देगें विकास के नाम पर, तो क्या खाक अतिक्रमण करेंगे यह भविष्य में? जी... कानून के दायरे में दिखते बने रहने की असफल कोशिश के साथ ही कानून को दर-किनार कर, विकास का जो बीज बोया जा रहा है, जब वह अंकुरित होगा या कहें प्रस्फुटित होगा तो आज को लेकर कल कई जायज सवाल खड़े कर इस समूचे विकास को ही नाजायज करार देने का दुस्साहस जुटायेगा?
जी... जंगल कहते किसे हैं या जंगल-राज होता क्या है? इसे जानने या समझने के लिये शायद अब आप को जंगल जाने की जरुरत ही न पड़े? जंगल में दौड़ते किसी मदमस्त युवा नर-हाथी की तरह जो भी रास्ते में आये उसे रौंद दो, मिटा दो का सा दृश्य अगर शहर में जब दिख चला है तो फिर जंगल को जानने के लिये किसी जंगल की जरुरत रह ही कहां जाती है? हां, इसे आप विकास कह सकते है पर हम जंगल राज कहेगें?
इन दिनों जिस तोड़-फोड़ की बुनियाद पर विकास की अट्टालिकाएं खड़ी करने का दुस्साहस प्रशासन ने जुटाया हुआ है, उसी विकास की हर एक ईंट कुछ सवाल के जबाव भी विकास के तमाम मसीहाओं से जानना चाहती है? जी... जब महकमा सरकारी था... , नियम भी सरकारी थे..., अनुमति भी सरकारी अधिकारियों ने दी हो... तब फिर जो सार्वजनिक (पब्लिकली) सवाल उभरता है कि अतिक्रमण के लिये दोषी कौन है या किसे माना जाये?
जी, दोषी किसे माने? जी... जनाब वह जिसने सरकारी गली को लीज पर दे दिया या वह जिसने लीज ली, यक-बा-यक अतिक्रमणकर्ता कैसे हो गया नगर का वह हर व्यक्ति जिसने मकान/दुकान मालिक बनने के लिये जिस भूमि या प्लॉट के मालिकाना हक का पंजीयन रजिस्ट्रार से करवाया? वह नगर पालिक निगम जिसने भवन निर्माण के लिये अनुज्ञापत्र जारी किया (नक्शा पास किया), प्लॉट या भवन अतिक्रमण कर बना था तो वैध तरीके से नगर पालिक निगम ने पानी और मंडल ने बिजली कैसे मुहैया करवा दी, अतिक्रमण की इसी सपत्ति पर ही अग्निशमन विभाग ने एन.ओ.सी कैसे जारी कर दी? जी... जनाब, इन्हीं अतिक्रमणकर्ता ने फिर कारोबार करने के लिये प्रदूषण विभाग की एन.ओ.सी. और सरकारी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये लघु उद्योग निगम और राष्ट्रीयकृत बैंक ने अनुदान और ऋण लेकर अपने कारोबार को पल्लवित कैसे कर लिया? जी... तलाशेगें तो कई और महकमे तथा सवाल स्वीस बैंक में खुले खातों के आंकड़ों की तरह बढ़ते ही जायेंगे? जी...जनाब अतिक्रमण के वास्तविक गुनाहगारों में आपके पूर्ववर्ती अधिकारियों/ कर्मचारियों के लिखे नाम का शिलालेख मिल जायेगा, शर्त यह होगी खोज ही नहीं, नजरिया भी निष्पक्ष हो आपका?
सवाल उठता है या तो इन सभी सरकारी महकमों के पदों पर अतिक्रमण करके आज तलक जो लोग बैठे थे वह सब भ्रष्ट थे या उन्हें चाकरी करनी थी अपना कर्तव्य नहीं निभाना था? अगर नहीं तो जिसे आज अतिक्रमण कह कर तोड़ा जा रहा है वह समूची कार्यवाही ही गलत है और सवालों के घेरे में भी? जी... विभिन्न पदों पर बैठे लोगों ने अपने पदों का दुरूपयोग अगर नहीं किया होता तो आज अतिक्रमण की ऐतिहासिक कार्यवाही को अंजाम नहीं देना पड़ता अगर इसे अतिक्रमण कहा जा सकता है तब? वैसे देखा जाये तो जो भी अतिक्रमण हुये है उसे हटाकर अतिक्रमणकर्ता उसका खामियाजा आर्थिक नुकसान उठाकर भुगत ही रहा है, पर जनाब कार्यवाही वह भी पूरी ईमानदारी के साथ उन सभी पूर्ववर्ती अधिकारियों/ कर्मचारियोंं पर भी होनी चाहिये जो समय-समय पर निजी हित साधने या स्वार्थ के लिये आंखे मूंद कर अपनी मूक स्वीकृति और अनुमति अतिक्रमण को देते रहे हैं, और अगर ऐसा विकास के बहाने नहीं किया जा सकता है तो आज की कार्यवाही कल फिर कई सवाल खड़े करेगी?
जी... सवाल कई है... विकास के बहाने किसके हित सध रहे है, यह भी देखना होगा? मसलन पुराने किरायेदारों का कब्जा खत्म हो जाये और भवन मालिक सकून में रहे इस कार्यवाही को भी अतिक्रमण की आड़ में अंजाम दिया जा रहा है, जी... जनाब देखियेगा चाहे गये सवालों से मुंह चुराकर और व्यक्ति विशेष के हित में कार्यवाही कर उसी पगडंडी पर आप मत चल निकलियेगा, जिस पर अतिक्रमण के कंकड़-गिट्टी बिछाकर आपके पूर्वोत्तर अधिकारी कर्मचारी आगे चलकर आज सफलता और रसूख के हाई-वे पर जा पहुंचे है?
आपको याद होगा, भेड़ का क्लोन तैयार कर, ईश्वर को मात देकर एक भेड़ अपने अस्तित्व में आ चली थी...। यह देख समूची दुनिया स्तब्ध थी, ईश्वर को पूजने वाले सशंकित थे, तो नास्तिकों का परचम फिर लहलहरा उठा था। जी... प्रकृति जब नाराज होती है तब तमाम आपदाएं आती है और आपको याद होगा भुज का वह हृदयविदारक दृश्य भी, जब वहां जलजला आया था और पूरा शहर ही मिट-सा चला था, जी....ऐसा ही प्रशासनिक जलजला इन दिनों मध्यप्रदेश के ग्वालियर में आया हुआ है, चारों तरफ तोड़-फोड़ जारी है। प्रशासनिक नुमाइंदे न कुछ सुनने को तैयार है और न ही इस मसले पर कुछ कहने को। गरीबी हटाने के लिये गरीबों को मार दो जैसे जुमले की तर्ज पर उनका एक लक्ष्य है कि जब दुकान या मकान ही नहीं बचने देगें या रहने देगें विकास के नाम पर, तो क्या खाक अतिक्रमण करेंगे यह भविष्य में? जी... कानून के दायरे में दिखते बने रहने की असफल कोशिश के साथ ही कानून को दर-किनार कर, विकास का जो बीज बोया जा रहा है, जब वह अंकुरित होगा या कहें प्रस्फुटित होगा तो आज को लेकर कल कई जायज सवाल खड़े कर इस समूचे विकास को ही नाजायज करार देने का दुस्साहस जुटायेगा?
जी... जंगल कहते किसे हैं या जंगल-राज होता क्या है? इसे जानने या समझने के लिये शायद अब आप को जंगल जाने की जरुरत ही न पड़े? जंगल में दौड़ते किसी मदमस्त युवा नर-हाथी की तरह जो भी रास्ते में आये उसे रौंद दो, मिटा दो का सा दृश्य अगर शहर में जब दिख चला है तो फिर जंगल को जानने के लिये किसी जंगल की जरुरत रह ही कहां जाती है? हां, इसे आप विकास कह सकते है पर हम जंगल राज कहेगें?
इन दिनों जिस तोड़-फोड़ की बुनियाद पर विकास की अट्टालिकाएं खड़ी करने का दुस्साहस प्रशासन ने जुटाया हुआ है, उसी विकास की हर एक ईंट कुछ सवाल के जबाव भी विकास के तमाम मसीहाओं से जानना चाहती है? जी... जब महकमा सरकारी था... , नियम भी सरकारी थे..., अनुमति भी सरकारी अधिकारियों ने दी हो... तब फिर जो सार्वजनिक (पब्लिकली) सवाल उभरता है कि अतिक्रमण के लिये दोषी कौन है या किसे माना जाये?
जी, दोषी किसे माने? जी... जनाब वह जिसने सरकारी गली को लीज पर दे दिया या वह जिसने लीज ली, यक-बा-यक अतिक्रमणकर्ता कैसे हो गया नगर का वह हर व्यक्ति जिसने मकान/दुकान मालिक बनने के लिये जिस भूमि या प्लॉट के मालिकाना हक का पंजीयन रजिस्ट्रार से करवाया? वह नगर पालिक निगम जिसने भवन निर्माण के लिये अनुज्ञापत्र जारी किया (नक्शा पास किया), प्लॉट या भवन अतिक्रमण कर बना था तो वैध तरीके से नगर पालिक निगम ने पानी और मंडल ने बिजली कैसे मुहैया करवा दी, अतिक्रमण की इसी सपत्ति पर ही अग्निशमन विभाग ने एन.ओ.सी कैसे जारी कर दी? जी... जनाब, इन्हीं अतिक्रमणकर्ता ने फिर कारोबार करने के लिये प्रदूषण विभाग की एन.ओ.सी. और सरकारी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये लघु उद्योग निगम और राष्ट्रीयकृत बैंक ने अनुदान और ऋण लेकर अपने कारोबार को पल्लवित कैसे कर लिया? जी... तलाशेगें तो कई और महकमे तथा सवाल स्वीस बैंक में खुले खातों के आंकड़ों की तरह बढ़ते ही जायेंगे? जी...जनाब अतिक्रमण के वास्तविक गुनाहगारों में आपके पूर्ववर्ती अधिकारियों/ कर्मचारियों के लिखे नाम का शिलालेख मिल जायेगा, शर्त यह होगी खोज ही नहीं, नजरिया भी निष्पक्ष हो आपका?
सवाल उठता है या तो इन सभी सरकारी महकमों के पदों पर अतिक्रमण करके आज तलक जो लोग बैठे थे वह सब भ्रष्ट थे या उन्हें चाकरी करनी थी अपना कर्तव्य नहीं निभाना था? अगर नहीं तो जिसे आज अतिक्रमण कह कर तोड़ा जा रहा है वह समूची कार्यवाही ही गलत है और सवालों के घेरे में भी? जी... विभिन्न पदों पर बैठे लोगों ने अपने पदों का दुरूपयोग अगर नहीं किया होता तो आज अतिक्रमण की ऐतिहासिक कार्यवाही को अंजाम नहीं देना पड़ता अगर इसे अतिक्रमण कहा जा सकता है तब? वैसे देखा जाये तो जो भी अतिक्रमण हुये है उसे हटाकर अतिक्रमणकर्ता उसका खामियाजा आर्थिक नुकसान उठाकर भुगत ही रहा है, पर जनाब कार्यवाही वह भी पूरी ईमानदारी के साथ उन सभी पूर्ववर्ती अधिकारियों/ कर्मचारियोंं पर भी होनी चाहिये जो समय-समय पर निजी हित साधने या स्वार्थ के लिये आंखे मूंद कर अपनी मूक स्वीकृति और अनुमति अतिक्रमण को देते रहे हैं, और अगर ऐसा विकास के बहाने नहीं किया जा सकता है तो आज की कार्यवाही कल फिर कई सवाल खड़े करेगी?
जी... सवाल कई है... विकास के बहाने किसके हित सध रहे है, यह भी देखना होगा? मसलन पुराने किरायेदारों का कब्जा खत्म हो जाये और भवन मालिक सकून में रहे इस कार्यवाही को भी अतिक्रमण की आड़ में अंजाम दिया जा रहा है, जी... जनाब देखियेगा चाहे गये सवालों से मुंह चुराकर और व्यक्ति विशेष के हित में कार्यवाही कर उसी पगडंडी पर आप मत चल निकलियेगा, जिस पर अतिक्रमण के कंकड़-गिट्टी बिछाकर आपके पूर्वोत्तर अधिकारी कर्मचारी आगे चलकर आज सफलता और रसूख के हाई-वे पर जा पहुंचे है?
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