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19.2.11

वेदों में उच्छ्वसित ईश्वर के निःश्वास सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ हैं और वैदिक आस्था से युक्त होने के चलते मुझे अन्य धर्मग्रंथों से या अन्य किसी स्रोत से मिलते किसी ज्ञान या विचार को प्राप्त करने की मनाही नहीं है । अपितु , ऐसा करने का सुझाव है । 'आनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः । ' - वेद । वेद को उद्दात्त ,अनुद्दात एवं स्वरित के चिह्नों से युक्त करके लिखने का नियम है पर वैसे टाइप कर पाने की मेरी असमर्थता को मित्रगण माफ़ करेंगें । परन्तु , किसी भी ज्ञान और विचार को अंगीकृत करते समय यह आवश्यक है कि उसे स्वविवेक और वेद सम्मतता की कसौटी पर कस लिया जाय । 'सक्तुमिव तितउना....... । '-वेद । यह मंत्र कहता है कि जैसे चलनी से चाल कर सत्तू का प्रयोग करते हैं वैसे ही ज्ञान प्राप्त करने में भी करें । इसी बात को दूसरे शब्दों में कबीर ने यूँ कहा है , " साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देय उडाय ॥ "
अतः मित्रों से यह अनुरोध है कि(४) राष्ट्रहित एवं विश्वहित में वेदोक्त तरीके से सर्वतः ज्ञान का संग्रह करें ।

4 comments:

Shikha Kaushik said...

aisi post padhkar man aanand se bhar jata hai .sarthak post .

Dr Om Prakash Pandey said...

dhanywaad shikhaji !

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर पोस्ट है मुझे लगता है कि वेदों का संक्षिप्त ग्यान तो बचपन से ही शुरू हो जाना चाहिये तभी हम एक सुडढ राष्त्र की कलप्ना कर सकते हैं लेकिन त्रास्दी ये है कि ये जन मानस के लिये आसानी से उपल्ब्ध नही है। आज कल कुछ स्वार्थी तत्व स्वार्थी साधू संत केवल अपना नाम ऋाटवा कर ही धर्म का उपदेश दे रहे हैं आज उन गुरोकुलों की जरूरत है जहाँ वेदों की शिक्षा दी जा सके ताकि लोग अच्छा ग्यान प्राप्त कर सकें। धन्यवाद। शुभकामनायें।

Dr Om Prakash Pandey said...

dhanywaad kapilaji!main sanskrit ewam angreji ka chhatra raha hoon tatha aaj bhi hoon . vedon ka kuchh ati awashyak ewam asani se bodhgamy honewala sandesh main is blog par bhejta rahoonga .