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15.2.11

ज़रा सोचें...

मैंने देखा...




क्या आपने कभी सोचा है कि कोई इन्सान दुसरे इंसान के बच्चे को दूध पिला सकता है?
मैंने ने तो ऐसा नहीं देखा है।
आखिर क्यूँ?
क्यूँ कि मानवता का तकाजा अब नहीं रहा। इंसानियत मरने लगी है। मरते मानवीय संवेदना के इस दौर में ये कुतिया इस बन्दर के बच्चे को दुलार, पुचकार और दूध पिला कर इंसानों के मुह पर तमाचा जड़ रही है।
आखिर कबहम समझेंगे दूसरों का दर्द, तड़प और तकलीफ।

यहाँ साहिर लुधियानवी कि याद आ रही है...

कभी खुद पे, कभी हालत पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

खुदा हाफिज़...


आपके दुआओं का तालिब...
एम अफसर खान सागर

1 comment:

ब्रजकिशोर सिंह said...

har jiv men khuda hai iska isase bada kya praman ho sakta hai?