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7.3.08

पंकज राग की कविता , खास भड़ास के लिए

होना
उसका चेहरा वीभत्स है
लिखावट बडी भद्दी है
उसकी सोच बेढंगी है
और उदगार असभ्य
वह वर्षों से किनारे खड़ा है
जहाँ-जहाँ उसका अक्स झिलमिलाता है
वह जगह पानी पानी हो जाती है
इसमे कुछ बेमुरव्वत भी नही
जहाँ जमीन को ठौर न मिले ,
वहाँ पानी ही पानी सही
अब जो-जो होना है , हो जाने दो .......


पंकज राग चर्चित युवा कवि हैं .अभी पुणे फ़िल्म एंड टेलीविजन संस्थान के निदेशक है . फिल्मी गीतों पर इनकी किताब, धुनों की यात्रा , राजकमल से छपकर चर्चित हो चुकी है . आप पसंद करेंगे तो इनकी कुछ और कविताएँ दी जाएंगी

4 comments:

Sanjeet Tripathi said...

ह्म्म, पंकज राग की "दिल्ली : शहर दर शहर"
पढ़िए अगर नही पढ़ी हो तो!

अनुराग अमिताभ said...

बहुत शानदार पंडित जी पकंज राग की कविताओं से भडास को मिलवाया,कवि होना बडी बात नहीं,जमाने की ठोकरें,मोहब्बते,सफलता सफलता पाप पुण्य सब आपके कवि बन् सकते हैं।
लेकिन पकंज राग की कविताऐं उनके अतिव्यसत,IAS की नंपुसक नौकरी करते हुऐ निकलतीं हैं।आप IAS अधिकारी हैं और कला के मंदिर भारत भवन को भी ,सम्हाल चुके हैं।
आप अशोक बाजपेयी की परेपरा को आगे बढा रहें है।

Anonymous said...

HARE BHAIYA RACHNA ACHHI HI NAHI BAHUT SUNDAR LAGI .DHANYAVAD.....

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी ,कुछ पल मौन रह कर इस कविता को जीकर देखा ,आत्मा की गहराई तक पहुंच रखती है...
पंकज जी को प्रभू और पैना करदे कि हमारे भीतर के नपुंसक हो चुके भोंथरेपन को छांट सकें..