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14.6.08

चार लाइनें

पेश-ए-खिदमत हैं चार लाइनें.....


यशवंत जी को मिल गया गूगल जी से चैक,
इसके पीछे है सभी हम मित्रों का बैक।
चैक प्राप्ति की यात्रा को लगे न कोई चेक,
समय तेरा अनुकूल है दांव बड़े तू फेंक।।


-Maqbool


2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

निज कर क्रिया रहीम कहि सुधि भावी के हाथ,
पांसे अपने हाथ हैं दांव न अपने हाथ......
भाईसाहब, लगे तो हैं बस आप सबका सहयोग और शुभेच्छा चाहिये.

Anonymous said...

मकबूल भैये,

तभी तो दद्दा ने सभी को मुसम्मी का ओफ़र भी दे दिया है, जाइये ओर पी आइये ओर हमे भी बताइयेगा मुसम्मी का स्वाद। और हां

बैक वाली बात पर रहिये कायम,
विजय रथ पर सवारी नहीं
ये आगाज़ है, आवाज़ है,
बुलन्दी का शिखर हमे नहीं चाहिये
सच का साथ ओर सच की आवाज़
ये ही है हमारी मंज़िल
इसी में है भडास कि आत्मा

जय जय भडास